Solar Eclipse 2019: इस साल तीन सूर्य ग्रहणों का क्या होगा प्रभाव? जानें इसका वैज्ञानिक और धार्मिक महत्व

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सूर्य ग्रहण (Solar Eclipse) और चंद्र ग्रहण (Lunar Eclipse) सच्ची खगोलीय घटनाएं हैं। ब्रह्मांड में सभी ग्रह और उपग्रह गति करते हैं। उपग्रह ग्रह की प्रक्रिमा करते हैं और ग्रह सूर्य की इसी चक्र के फलस्वरूप ग्रहण लगता है।

ग्रहण का आध्यात्म एवं विज्ञान दोनों ही क्षेत्रों में काफी महत्व है। ग्रहण का वर्णन शास्त्रों में भी किया गया है। कई लोग इस पर विशवास नहीं करते थे, लेकिन आज यह वैज्ञानिकों द्वारा एक सत्यापित खगोलीय घटना है ।विज्ञान के अलावा अगर धार्मिक रूप से बात करें, तो शास्त्रों में सूर्य ग्रहण के दिन होनेवाली घटनाओं के बारे में विस्तार से बताया गया है। इसके पहलुओं को लेकर कई रोचक गाथाएं भी बताई गई है।


वर्ष 2019 में होंगे तीन सूर्य ग्रहण

इस वर्ष भी तीन सूर्य ग्रहण होंगे। आज इस साल का दूसरा सूर्य ग्रहण है, जो कि पूर्ण सूर्य ग्रहण है। यह ग्रहण भारत में नहीं दिखाई देगा। यह 10:25 बजे शुरू होगा और 2 घंटे 41 मिनट तक यह सूर्य ग्रहण चलेगा, जिसमें पूरे 4 मिनट, 33 सेकेंड तक पूर्ण सूर्य ग्रहण रहेगा। इस वर्ष का पहला सूर्यग्रहण 6 जनवरी को लग चुका है। साल का तीसरा और अंतिम सूर्य ग्रहण 26 दिसंबर को होगा। यह 8:17 से 10:57 तक रहेगा और यह ग्रहण भारत में दिखेगा।

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विज्ञान के अनुसार कैसे लगता है ग्रहण?

वैज्ञानिकों ने इस घटना का पूरा वर्णन दिया है कि ग्रहण कैसे लगता है। दरअसल, ब्रह्मांड में सूर्य, ग्रह, उपग्रह आदि मौजूद हैं। ग्रह निरंतर रूप से सूर्य की प्रक्रिमा करते हैं। ग्रहों के अलग- अलग उपग्रह भी हैं, जो उस ग्रह की प्रक्रिमा करते हैं। पृथ्वी सूर्य की प्रक्रिमा करती है और चंद्रमा, जो कि पृथ्वी का उपग्रह है, पृथ्वी की प्रक्रिमा करता है।

इस प्रक्रिमा में सूर्य और पृथ्वी के बीच में जब चंद्रमा आ जाता है, तो पृथ्वी पर कुछ समय के लिए एक साया सा फैल जाता है, क्योंकि सूर्य की रौशनी पूरी तरह से पृथ्वी पर नहीं पहुंच पाती। इस घटना को ‘सूर्य ग्रहण’ कहा जाता है। यह आमतौर पर अमावस्या के ही दिन होता है।

वेदों के अनुसार सूर्य ग्रहण

वेदों में भी सूर्य ग्रहण का वर्णन किया गया है। वेदों के अनुसार, प्राचीनकाल में हमारे ऋषि-मुनियों को ग्रह नक्षत्रों की हर घटना की पल-पल की जानकारी रहती थी। महर्षि अत्रि ग्रहण का ज्ञान देने वाले पहले आचार्य माने जाते हैं। ग्रहण के इस चमत्कार को ऋग्वेद के एक मंत्र में उल्लेखित किया गया है, जिसका आशय है- हे सूर्य! राहु ने आप पर आक्रमण कर आपको अन्धकार से ढंक दिया है। इस वजह से मनुष्य आपको पूरी तरह से देख नहीं पाने से हतप्रभ एवं चिंतित हैं। और तब महर्षि अत्रि अपने ज्ञान से छाया को हटाकर सूर्य का उद्धार करते हैं।

ज्योतिष शास्त्र में सूर्य ग्रहण का मह्त्व

विज्ञान में जहां सूर्य ग्रहण एक सत्यापित खगोलीय घटना है, वहीं ज्योतिष शास्त्र में भी सूर्य या चंद्र ग्रहण का बहुत महत्व है। इसे प्रकृति का दिव्य एवं अलौकिक चमत्कार माना गया है। ज्योतिषों के अनुसार यह ग्रहों और उपग्रहों की गतिविधियों को स्पष्ट करता है।

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ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, सूर्य ग्रहण तब लगता है, जब चंद्रमा द्वारा आंशिक या पूर्ण रूप से सूर्य के लिए अवरोध उत्पन्न किया जाता है। ग्रहण के लिए चंद्रमा का पृथ्वी और सूर्य के बीच आना आवश्यक है। शास्त्रों में ग्रहण के लिए कुछ बातें जरूरी बताई गई हैं, जैसे कि उस दिन अमावस्या हो, चंद्रमा का रेखांश राहु या केतु के पास हो और चंद्रमा का अक्षांश शून्य के करीब हो।

सूर्य ग्रहण की पौराणिक कथा

सूर्य ग्रहण का संबंध राहु-केतु और उनके द्वारा अमृत पाने की कथा से है, जिसका वर्णन मत्स्य पुराण में किया गया है। माना जाता है कि समुद्र मंथन में जब अमृत-कलश निकला, तब भगवान विष्णु मोहिनी रूप धारण कर चालाकी से देवताओं को ही अमृत पिला रहे थे। इसी बीच स्वरभानु नामक दैत्य अमृत पीने की लालच में वेष बदलकर सूर्य और चंद्रमा के बीच में बैठ गया। भगवान विष्णु ने उसे पहचान लिया, लेकिन तब तक स्वरभानु के कंठ तक अमृत की बूंदे जा चुकी थीं। भगवान विष्णु ने तभी अपने सुदर्शन चक्र से उसका सिर काट दिया, लेकिन अमृत पीने के कारण वह मरा नहीं। उसी दैत्य का सिर राहु और धड़ केतु कहलाया। तभी से मान्यता है कि जब भी सूर्य और चंद्रमा पास आते हैं। राहु-केतु के प्रभाव से ग्रहण लग जाता है।

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महाभारत में सूर्य ग्रहण वर्णन

इतिहास का सबसे बड़े धर्मयुद्ध ‘महाभारत’ में भी इसका वर्णन किया गया है। महाभारत के साथ सूर्य ग्रहण का एक विशेष संबंध माना जाता है। कहा जाता है महाभारत शुरू होने के दिन सूर्यग्रहण लगा हुआ था। इसके साथ युद्ध के मध्यकाल और अंतिम दिन पर भी सूर्यग्रहण लगा हुआ था।

माना जाता है 3 ग्रहणों के कारण ही महाभारत का युद्ध इतना भीषण था।

ज्योतिषों की मानें तो एक साल में तीन या उससे अधिक ग्रहण शुभ नहीं हैं। इससे प्राकृतिकआपदाओं और सत्ता परिवर्तन की संभावना रहती है। साथ ही लोगों के जीवन में कष्ट बढ़ जाता है और आर्थिक स्थिति खराब होती है।


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