क्या कहता है भारतीय संविधान का आर्टिकल 15? समझें आसान भाषा में…

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क्या कहता है भारतीय संविधान का आर्टिकल 15?

भारतीय संविधान में समानता का बहुत महत्व दिया गया है। समानता का अधिकार उन 6 मौलिक अधिकारों में से एक है, जो भारत के हर नागरिक को प्राप्त हैं। संविधान में साफ कहा गया है कि किसी भी आधार पर भेदभाव को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

भारतीय संविधान में आर्टिकल 14 से 18 तक समानता या समता के अधिकारों का वर्णन किया गया है। इसके हर एक अनुच्छेद में समता के मौलिक अधिकार के अंतर्गत आने वाले विभिन्न अधिकारों का वर्णन किया गया है। इन्हीं में शामिल है अनुच्छेद या आर्टिकल 15।


संविधान के आर्टिकल 15 में देश के हर एक नागरिक को ‘सामाजिक समता का अधिकार’ दिया गया है। इस आर्टिकल में सामाजिक समता के हर एक पहलू के बारे में बताया गया है कि किन- किन आधारों पर भेदभाव करना सामाजिक समता के मौलिक अधिकार का उलंघन्न माना जाएगा। संविधान के आर्टिकल 15 में नागरिकों को सामाजिक समानता का अधिकार देते हुए कहा गया है कि राज्य अपने नागरिकों के बीच धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी भी आधार पर भेदभाव नहीं करेगा।

आर्टिकल 15 ‘सामाजिक समता का अधिकार’

आर्टिकल 15 के खंड (1) और खंड (2) में अधिकारों का वर्णन है, जबकि खंड (3) और (4) में अपवादों का वर्णन किया गया है।

आर्टिकल 15 (1): राज्य, किसी नागरिक के विरुद्ध केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करेगा।


आर्टिकल 15 (2): कोई नागरिक केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमे से किसी के आधार पर –

  • दुकानों, सार्वजानिक भोजनालयों, होटलों और सार्वजानिक मनोरंजन के स्थानों में प्रवेश, या
  • पूर्ण या आंशिक रूप से राज्य निधि से पोषित या साधारण जनता के प्रयोग के लिए समर्पित कुओं, तालाबों, स्नानघाटों, सड़कों और सार्वजानिक समागम के स्थानों के उपयोग के सम्बन्ध में किसी भी निर्योग्यता, दायित्व, निर्बन्धन या शर्त के अधीन नहीं होगा।

आर्टिकल 15 (1) एवं 15 (2) के अपवाद

आर्टिकल 15 (1) और 15 (2) में दिए गए सामान्य नियमों का अपवाद आर्टिकल 15 (3) में और 15 (4) में दिया गया है।

आर्टिकल 15 (3):  इस आर्टिकल में पहला अपवाद दिया गया है जिसके कहा गया है कि, ‘इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को स्त्रियों तथा बालकों के लिए कोई विशेष उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी।’ जिसका मतलब है राज्य स्त्रियों तथा बालकों के संबंध में विशेष उपबंध कर सकता है।

आर्टिकल 15(4): इस खंड को संविधान के प्रथम संशोधन अधिनियम, 1951 द्वारा जोड़ा गया था। इसमें कहा गया है, ‘इस अनुच्छेद की या अनुच्छेद 29 के खण्ड (2) की कोई बात राज्य को सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े हुए नागरिकों के किन्हीं वर्गों की उन्नति के लिए या अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) के लिए कोई विशेष उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी।’

आर्टिकल15 (5): इस खंड को संविधान के 93वें संशोधन अधिनियम, 2005 द्वारा जोड़ा गया। इसमें कहा गया है, ‘इस आर्टिकल की कोई बात या आर्टिकल 19 के खंड (1) के उपखंड (6) राज्य को नागरिकों के किसी सामाजिक और शैक्षिणिक रूप से पिछड़े वर्गों या अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति की उन्नति के लिए, जहां तक ऐसे विशेष उपबंध उनके शिक्षा संस्थाओं में प्रवेश से सम्बंधित हैं, जिसके अंतर्गत प्राइवेट संस्थायें हैं, चाहें राज्य द्वारा सहायता प्राप्त हों या बिना सहायता प्राप्त हों, अनुच्छेद 30 के खंड (1) में निर्दिष्ट अल्पसंख्यक वर्ग की शिक्षा संस्थाओं से भिन्न हैं, विधि द्वारा विशेष उपबन्ध करने से निवारित नहीं करेगी।’

अन्य मौलिक अधिकारों की तरह आर्टिकल 15 में दिए गए सामाजिक समता के आधार के उलंघन्न पर कोई भी नागरिक कोर्ट जा सकता है।

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