Arunachal Pradesh Statehood Day 2021 Date and Significance: स्थापना दिवस पर जानिए अरुणाचल का इतिहास और यहाँ की महत्वपूर्ण बातें

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Arunachal Pradesh Statehood Day 2021 Date and Significance: आज ही के दिन यानि 20 फरवरी, 1987 को अरुणाचल प्रदेश का गठन हुआ था।अरुणाचल प्रदेश (Arunachal Pradesh) भारतीय संघ का 24वां राज्य है, जो पश्चिम में भूटान (West Bhutan) से, पूर्व में म्यानमार से, उत्तर तथा पूर्वोत्तर में चीन से और दक्षिण में असम (Assam) के मैदानों से घिरा है।

अरुणाचल प्रदेश (Arunachal Pradesh) को विश्व के सर्वाधिक उत्कृष्ट, विविधतापूर्ण तथा बहुभाषी जनजातीय क्षेत्रों में से एक क्षेत्र के तौर पर जाना जाता है। अरुणाचल पूर्वोत्तर क्षेत्र का सबसे बड़ा राज्य है (क्षेत्रवार)। यह पूरा क्षेत्र वर्ष 1873 से अलग-थलग था जब अंग्रेजों ने यहाँ मुक्त आवाजाही बंद कर दी थी। वर्ष 1947 के बाद अरुणाचल पूर्वोत्तर सीमावर्ती एजेंसी (Arunachal Northeast Border Agency) का हिस्सा बन गया।


साल 1962 में चीन के आक्रमण से इसका नीतिगत महत्व सामने आया, और बाद में भारत सरकार ने असम के चारों ओर के सभी क्षेत्रों को राज्य का दर्जा देते हुए एजेंसी का विभाजन कर दिया।अरुणाचल प्रदेश (Arunachal Pradesh) का उल्लेख साहित्य में मिलता है जैसे कलिका पुराण और महाभारत तथा रामायण महाकाव्य (Ramayana epic) में। यह मान्यता है कि ऋषि व्यास ने यहाँ साधना की थी और रोइंग के उत्तर में पहाड़ियों पर स्थित दो गांवों के पास बिखरे ईंट की संरचना के अवशेष भगवान कृष्ण की सहचरी रुक्मणी का महल था। छठे दलाई लामा का जन्म भी अरुणाचल प्रदेश (Arunachal Pradesh) की धरती पर हुआ था।

इस भूमि को अब विश्व के एक जैवविविधता विरासत स्थल के रूप में प्रशंसा मिलनी शुरू हुई है, जहां ऊंचे पहाड़ों वाली विस्तृत भौगोलिक विविधता है और जहां की जलवायु स्थितियों में ऊष्णकटिबंधीय से शीतोष्ण तथा पहाड़ी तक की विविधता है, और जहां सहगामी जीवन के साथ वनस्पति तथा जीवों की बहुत सारी किस्में है।अरुणाचल प्रदेश घने सदाबहार वनों तथा विभिन्न धाराओं, नदियों तथा घाटियों और कुल क्षेत्र के 60% से अधिक क्षेत्र में स्थित वनस्पति तथा जीवों की सैंकड़ों-हजारों प्रजातियों से संपन्न है। इसकी नदियां मछली पकड़ने, नौका विहार और राफ्टिंग के लिए आदर्श हैं और इसका भूभाग ट्रैकिंग, हाइकिंग और एक शांत वातावरण में छुट्टियाँ मनाने के लिए उपयुक्त है।

ऊपरी क्षेत्र सभी प्रकार के साहसिक पर्यटन को प्रोत्साहित करने के लिए आदर्श भूक्षेत्र उपलब्ध कराते हैं और ऐसे अवसरों की खोज में रहने वाले पर्यटकों के लिए सर्वाधिक उपयुक्त हैं। यहाँ पक्षियों की 500 से अधिक प्रजातियाँ रिकॉर्ड की गई हैं, जिनमें से कई अत्यधिक खतरे में हैं और इस राज्य के लिए सीमित हैं, जैसे सफ़ेद पंखों वाली बतख, स्क्लेटर, मोनल बंगाल फ्लोरियन आदि। विशाल आकार के पेड़, प्रचुर मात्रा में बेल तथा लताएँ और बेंत तथा बांस की बहुतायत अरुणाचल को सदाबहार बनाते हैं।


भारत में पाई जाने वाली ऑर्किड की लगभग एक हजार प्रजातियों में से 500 से अधिक अकेले अरुणाचल में पाई जाती हैं। कुछ ऑर्किड दुर्लभ हैं और इन्हें लुप्तप्राय श्रेणी में वर्गीकृत किया गया है।

यहाँ का वन्य जीवन भी इतना ही समृद्ध तथा विविध है,जिनमें हाथी, बाघ, तेंदुआ, जंगली बिल्ली, सफ़ेद लंगूर, लाल पांडा, कस्तूरी और “मिथुन” (Bos Forntails) जंगली तथा अर्द्ध पालतू दोनों स्वरूप में विद्यमान है) शामिल हैं। यहाँ की भूमि उत्तर-दक्षिण की ओर की श्रेणियों से गुजरते हुए उत्तरी सीमा के साथ-साथ हिमालय पर्वत श्रेणी के साथ अधिकतर पर्वतीय है।

ये राज्य को पाँच नदी घाटियों में विभाजित करते हैं-

कामेंग,सुबनसिरी,सियांग,लोहित और तिरप। ये सभी हिमालय से हिम-पोषित होती हैं और असंख्य नदियां तथा छोटी नदियां भी इसी प्रकार पोषित होती हैं। इन नदियों में सबसे शक्तिशाली सियांग है जिसे तिब्बत में सांग्पो कहा जाता है, और जो असम के मैदानों में दिबांग तथा लोहित के इसके साथ जुडने के बाद ब्रह्मपुत्र बन जाती है। प्रकृति ने यहाँ के लोगों को सुंदरता की एक गहरी समझ दी है जो उनके गीतों, नृत्य और शिल्प में अभिव्यक्त होती है।

इस राज्य में 26 प्रमुख जनजातियाँ और बहुत सी उप जनजातियाँ निवास करती हैं। इनमें से अधिकतर समुदाय जातीय रूप से समान हैं और एक मूल से निकले हैं परंतु एक-दूसरे से भौगोलिक रूप से अलग होने के कारण इनकी भाषा, पहनावे और रिवाजों में कुछ विशिष्ट विशेषताएँ आ गई हैं।

पहला समूह तवांग और पश्चिम कामेंग जिले के मोन्पा और शेर्दुक्पेन हैं। ये महायान बौद्ध मत की लामा परंपराओं का अनुसरण करते हैं। मेम्बा और खाम्बा सांस्कृतिक रूप से इनके समान होते हैं जो उत्तरी सीमा के साथ ऊंचे पहाड़ों में रहते हैं; राज्य के पूर्वी भाग में निवास करने वाले खांप्ति और सिंगपो हिनायान बौद्ध मत को मानने वाले बौद्ध हैं।

लोगों का दूसरा समूह आदि, आका, आपातानी, बांगनी, निशिंग, मिशमी, मिजी, तंगसा आदि, जो सूर्य तथा चंद्रमा नामत: दोनयी पोलो और अबोतानी की पूजा करते हैं, जो इनमें से अधिकतर जनजातियों के मूल पूर्वज हैं। इनकी धार्मिक प्रथाएँ प्रमुख रूप से कृषि के चरणों अथवा चक्रों के अनुसार हैं।

तीसरे समूह में नोकटे और वांचो शामिल हैं, जो तिरप जिले में नागालैंड के साथ स्थित क्षेत्र के हैं। ये मेहनती लोग हैं जिन्हें उनके संरचित ग्रामीण समाज के लिए जाना जाता है जिसमें वंशानुगत ग्राम प्रमुख अभी भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। नोकटे लोग वैष्णव मत के प्रारंभिक स्वरूप को भी मानते हैं।

सामाजिक और सांस्कृतिक विरासत

अरुणाचल की पूरी जनसंख्या को उनके सामाजिक-राजनैतिक धार्मिक संबंधों के आधार पर तीन सांस्कृतिक समूहों में विभाजित किया जा सकता है। यहाँ तीन धर्मों का पालन किया जाता है। कामेंग और तवांग जिले में मोन्पा और शेर्दुक्पेन, जो उत्तर में तिब्बतियों से मिले, बौद्ध धर्म की लामा परंपरा को अपनाया, जबकि लोहित जिले में खांप्ति महायान बौद्ध मत को मानते हैं। दूसरा समूह तिरप जिले के नोकटे और वांचो का है, जिनके दक्षिण में असम के लोगों से लंबे संबंधों के कारण उन्होंने हिन्दू धर्म अपना लिया।

ये लोग अपने शिकारों के सिर एकत्रित करने की प्रथा से जुड़े हैं। तीसरे समूह में आदि, आका, अपातानी, निशिंग आदि शामिल हैं – जो कुल जनसंख्या का एक प्रमुख हिस्सा है, जो अपनी पुरातन मान्यताओं और प्रकृति तथा डोनयी-पोलो (सूर्य तथा चंद्रमा) की पूजा की देशी संकल्पनाओं को बनाए रखे हुए हैं।

अपातानी, हिल मिरी और आदि लोग बेंत तथा बांस की आकर्षक वस्तुएँ बनाते हैं। वांचो लोग उनके द्वारा लकड़ी तथा बांस पर नक्काशी करके बनाई गई मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध हैं।

त्योहार लोगों के सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा हैं। त्योहार सामान्यत: कृषि से संबंधित होते हैं और या तो भगवान को धन्यवाद देने के लिए अथवा अच्छी फसल हेतु प्रार्थना करने के लिए प्रथागत उल्लास से जुड़े होते हैं। कुछ महत्वपूर्ण त्योहार हैं आदि लोगों के मोपिन और सोलुंग, मोन्पा और शेर्दुक्पेन लोगों का लोस्सार और हिल मिरी लोगों का बूरी-बूट, अपातानी लोगों का द्री, तगिन लोगों का सी-डोनयी, निशिंग लोगों का न्योकुम, ईदु मिशमी लोगों का रेह, मिशमी लोगों का तमलादु, नोकटे लोगों का लोकु, तंगसा लोगों का मोल, खांप्ति और सिंगपो लोगों का संकेन, मिजी लोगों का खान, तगिन के अकास लोगों का नेची दौ, वांचो लोगों का ओजियले, खोवा लोगों का क्ष्यात-सोवाई, निशिंग लोगों का लोंगते यूल्लो ।

अलोंग, अन्नीनि, भिस्मकनगर (पुरातात्विक स्थल), बोमडिला(2530 मीटर की ऊंचाई पर हिमालय के भूक्षेत्र और बर्फ से ढकी पर्वत श्रेणियों का एक मनोरम दृश्य दिखाता है), चांगलोंग, दोपरिजो, इटानगर (राजधानी, ऐतिहासिक ईटा किले के उत्खनित अवशेषों और आकर्षक गंगा झील [गेकर सिनयी] के साथ) पासीघाट, मलिनिथन (पुरातात्विक स्थल), सेस्सा (ऑर्किड उद्यान),नामधापा (चांगलांग जिले में वन्य जीव अभयारण्य),परसुरामकुंड (तीर्थ स्थल),तवांग (12,000 फुट की ऊंचाई पर 400 वर्ष पुराना बौद्ध मठ, जो प्रसिद्ध टोर्ग्वा त्योहार से संबंधित है, देश का सबसे बड़ा मठ है और 6ठे दलाई लामा का जन्म स्थान है),जाइरो,तिपी (7500 से अधिक ऑर्किड वाला ऑर्किड उद्यान),आकाशीगंगा (ब्रह्मपुत्र का विहंगम दृश्य),ताली घाटी (पर्यावरणीय पर्यटन),रोइंग और मियाओ।

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