असम मदरसों को लेकर मुस्लिम धर्मगुरुओं के अपने-अपने तर्क

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नई दिल्ली, 17 अक्टूबर (आईएएनएस)। असम सरकार ने राज्य-संचालित सभी मदरसों और संस्कृत टोल्स या संस्कृत केंद्रों को बंद करने का निर्णय लिया है। जिसके बाद से इस मुद्दे पर एक अलग बहस छिड़ गई है, हालांकि इस मामले पर कुछ मौलानाओं ने इस फैसले का समर्थन किया तो किसी ने इस फैसले को गलत करार दिया है। दरअसल असम के शिक्षा मंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा था कि, “सरकार द्वारा संचालित या फंडेड मदरसों और टोल्स को अगले पांच महीनों के भीतर नियमित स्कूलों के रूप में पुनर्गठिन किया जाएगा। ऐसा इसलिए क्योंकि एक धर्मनिरपेक्ष सरकार का काम धार्मिक शिक्षा प्रदान करना नहीं है। हम धार्मिक शिक्षा के लिए सरकारी फंड खर्च नहीं कर सकते। इसके लिए नवंबर में एक अधिसूचना जारी की जाएगी।”

ऑल इंडिया इमाम ऑर्गनाइजेशन के मुखिया इमाम उमर अहमद इलयासी ने इस मामले पर आईएएनएस से बात की और कहा कि, “मदरसे हो या गुरुकुल, तालीम तो तालीम है। अगर हम मदरसों के अंदर मॉडर्न एजुकेशन देते हैं तो बहुत बेहतर है। मैथ्स, साइंस, इंग्लिश और साथ में दीनी तालीम भी हो यह तो बहुत अच्छी बात है। हालांकि जो बड़े मदरसे हैं उनमें इस तरह की तालीम दी जाती है। लेकिन जो छोटे-छोटे मदरसे हैं उनमें बच्चों को फिलहाल सिर्फ दीनी तालीम ही दी जा रही है।”


उन्होंने कहा, “दीन के साथ दुनिया की तालीम बराबर होनी चाहिए। मैं इस फैसले के हक में हूं, मदरसों के अंदर असली तालीम का होना बहुत अच्छी बात है। सरकार इसमें और सहयोग करे। भारत में करीब साढ़े 7 लाख मदरसे हैं, इन सभी मदरसों में असली तालीम आने से बहुत फायदा होगा। हमारी देश के निर्माण में हिस्सेदारी बढ़ेगी और तभी हम मुख्य धारा से जुड़ेंगे।”

“मदरसों को लाइसेंस तभी मिले जब वह कहें कि हम यह सभी तालीम देंगे। मदरसों के अंदर संस्कृत की भी तालीम होनी चाहिए और गुरुकुल के अंदर अरबी की तालीम भी होनी चाहिए।”

दरअसल असम में दो तरह के मदरसे हैं, एक प्रोविंसलाइज्ड जो पूरी तरह सरकारी अनुदान से चलते हैं और दूसरा खेराजी, जिन्हें निजी संगठन चलाते हैं। हालांकि असम सरकार 600 से अधिक मदरसे चलाती है, जबकि राज्य में करीब 900 प्राइवेट मदरसे चल रहे हैं। साथ ही राज्य में लगभग 100 सरकारी-संचालित संस्कृत आश्रम और 500 प्राइवेट केंद्र हैं।


वहीं राज्य के प्राइवेट मदरसों को लेकर शिक्षा मंत्री का कहना है कि, “सामाजिक संगठन और अन्य गैर सरकारी संगठनों द्वारा चलाए जा रहे प्राइवेट मदरसों को लेकर कोई दिक्कत नहीं है। वे चलते रहेंगे लेकिन प्राइवेट मदरसों को भी एक नियामक ढांचे के भीतर चलाना होगा। इसके लिए जल्द ही हम एक कानून ला रहे हैं।”

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य और प्रमुख मौलाना, मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा कि, “केंद्र सरकार हो या राज्य सरकार हो उसकी ये कॉन्स्टिट्यूशनल जिम्मेदारी है कि बच्चों को अच्छी से अच्छी एजुकेशन दे।”

उन्होंने कहा कि, “मंत्री जी ने बयान दिया है शायद उन्हें ये नहीं मालूम कि मदरसों में सिर्फ कुरान नहीं पढ़ाया जाता है बल्कि कुरान हदीस, इस्लामिक के अलावा कंप्यूटर साइंस और मैथ्स वही पढ़ाई जाती है। इसलिए ऐसे जमाने में जबकि दुनिया एजुकेशन और ज्यादा फैलाने में लगी हुई है वहीं हमारे मुल्क के किसी राज्य में एजुकेशनल इंस्टिट्यूटशन को बंद करने की बात कही जाए ये अपने आप में अफसोस कि बात है।”

“इस तरह का फैसला और इस तरह की बात करना बिल्कुल गलत है। मदरसों में और ज्यादा प्रोफेशनल टीचर्स रखे जाएं, कहीं कोई कमी है तो दूर करने की कोशिश करनी चाहिए।”

–आईएएनएस

एमएसके/एएनएम

(इस खबर को न्यूज्ड टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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