बापू की याद में स्कूली बच्चे लगाते हैं गांधी टोपी

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नरसिंहपुर, 28 सितंबर (आईएएनएस)| महात्मा गांधी का अनुयायी होने का दावा करने वाले नेताओं के सिर पर से भले ही गांधी टोपी गायब हो गई हो, मगर मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले में एक स्कूल ऐसा है, जहां के बच्चे बापू को याद कर गांधी टोपी लगाकर ही स्कूल आते हैं। इतना ही नहीं, ये बच्चे बापू के प्रिय भजन ‘रघुपति राघव राजाराम’ नियमित रूप से प्रार्थना के समय गाते भी हैं।

जिला मुख्यालय से लगभग 10 किलोमीटर दूर है सिंहपुर बड़ा गांव। इस गांव के शासकीय माध्यमिक बालक शाला का नजारा अन्य स्कूलों से जुदा होता है, क्योंकि यहां के हर बच्चे के सिर पर गांधी टोपी जो नजर आती है। यहां पढ़ने वाले पहली से आठवीं तक के हर बच्चे के सिर पर गांधी टोपी होती है, और जब तक वे विद्यालय में रहते हैं, तब तक यह टोपी उनके सिर पर होती है।


विद्यालय के शिक्षक संदीप शर्मा ने आईएएनएस को बताया कि किसी तरह का दस्तावेजीय प्रमाण तो नहीं है, मगर दीवार पर अंकित एक तारीख बताती है कि 3 अक्टूबर, 1945 को महात्मा गांधी इस गांव में आए थे। दीवार पर संदेश भी लिखा है उसी तारीख का। इसमें कहा गया है, “सत्य और अहिंसा के संपूर्ण पालन की भरसक कोशिश करूंगा, बापू का आशीर्वाद।”

स्थानीय लोग बताते हैं कि असहयोग आंदोलन के दौरान गांधी देश में अलख जगाने निकले थे, उसी दौरान उनका यहां आना हुआ था। उसके बाद से ही गांव के लोगों ने गांधी की याद में टोपी लगाना शुरू कर दिया था। इतना ही नहीं, उन्होंने अपने बच्चों को भी यह टोपी लगाने के लिए प्रेरित किया। उसके बाद से ही इस विद्यालय के हर बच्चे गांधी टोपी लगाने लगे।

शर्मा कहते हैं कि गांधी टोपी स्कूल के बच्चों ने कब से लगाना शुरू किया, इसका कोई लिखित में ब्यौरा नहीं है। जो लोग गांवों में हैं, वे सभी यही बताते हैं कि जब स्कूल में पढ़ते थे, तब भी गांधी टोपी पहनकर स्कूल जाते थे। मैंने स्वयं इसी स्कूल से पढ़ाई की है, और तब भी गांधी टोपी लगाकर आता था। इस तरह गांधी टोपी लगाने का सिलसिला अरसे से चला आ रहा है।


राजधानी से लगभग 225 किलोमीटर दूर स्थित नरसिंहपुर जिले के इस विद्यालय में नियमित तौर पर प्रार्थना के साथ ही बापू के प्रिय भजन ‘रघुपति राघव राजाराम’ भी गाया जाता है। स्थानीय लोगों का मानना है कि गांधी की टोपी लगाने से बच्चों मे आत्मविश्वास बढ़ता है और उनमें देशभक्ति का जज्बा जागता है साथ ही गलत आदतों से दूर रहते है।

इस स्कूल की दीवारों पर दर्ज ब्यौरे के अनुसार, इस स्कूल की शुरुआत वर्ष 1844 में हुई थी। लगभग 175 साल पुराने इस स्कूल में कभी उद्योग कक्ष भी हुआ करता था, जिसमें विद्यालय के उपयोग में आने वाली सामग्री उदाहरण के तौर पर टाट, पट्टी, टोपी आदि बनाई जाती थी। इस टोपी को छात्र लगाते थे और बैठने के उपयोग में आने वाली पट्टी भी बनती थी। अब तो चरखा आदि के अवशेष भी नहीं बचे हैं।

सिंहपुर बड़ा विद्यालय को जिले के गांधी टोपी वाले स्कूल के तौर पर पहचाना जाता है। साथ ही बच्चों को गांधी के बताए गए मार्ग पर चलने की शिक्षा भी दी जाती है। आज देश में ऐसे कम ही विद्यालय हैं, जहां बच्चे गांधी के आदर्श और यादों को अपने साथ संजोकर चल रहे हैं।

 

(इस खबर को न्यूज्ड टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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