कर्मचारियों के लिए बुरी खबर, छंटनी और कंपनी बंद करने की राह आसान, राज्यसभा ने दी श्रम सुधार विधयकों को मंजूरी

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कर्मचारियों के लिए बुरी खबर, छंटनी और कंपनी बंद करने की राह आसान, राज्यसभा ने दी श्रम सुधार विधयकों को मंजूरी

विवादों के बाद संसद (Parliament) से एक नई खबर आ रही है। बुधवार को संसद में तीन प्रमुख श्रम सुधार विधेयकों को मंजूरी दी गई है। इन विधयकों के तहत कंपनियों को बंद करने की बाधाएं खत्म होंगी और जिन कंपनियों में 300 कर्मचारी होंगे उन कंपनियों को सरकार की इजाजत के बिना कर्मचारियों को निकालने की छूट होगी।

राज्यसभा (Rajysabha) ने ध्वनि मत से औद्योगिक संबंध, सामाजिक सुरक्षा और व्यावसायिक सुरक्षा पर शेष तीन श्रम संहिताओं को पारित कर दिया है। इसके अलावा बीते दिनों 8 सांसदों के निलंबन विराध जारी रहा।


बता दें कि इन तीनों संहिताओं को लोकसभा में मंगलवार को पारित किया गया था और अब इसे राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा जाएगा।

श्रम मंत्री संतोष गंगवार ने इन विधेयकों पर हुई बहस के जवाब में कहा था कि, ”श्रम सुधारों का मकसद बदले हुए कारोबारी माहौल के अनुकूल पारदर्शी प्रणाली तैयार करना है।”

 


इसके अलावा उन्होंने कहा कि 16 राज्यों ने पहले ही अधिकतम 300 कर्मचारियों वाली कंपनियों को सरकार की अनुमति के बिना फर्म को बंद करने और छंटनी करने की इजाजत दे दी है। गंगवार ने आगे कहा कि रोजगार सृजन के लिए यह उचित नहीं है कि इस सीमा को 100 कर्मचारियों तक बनाए रखा जाए, क्योंकि इससे नियोक्ता अधिक कर्मचारियों की भर्ती से कतराने लगते हैं और वे जानबूझकर अपने कर्मचारियों की संख्या को कम स्तर पर बनाए रखते हैं।

 

गंगवार ने आगे जोड़ा कि इस सीमा को बढ़ाने से रोजगार बढ़ेगा और नियोक्ताओं को नौकरी देने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकेगा। उन्होंने कहा कि ये विधेयक कर्मचारियों के हितों की रक्षा करेंगे और भविष्य निधि संगठन और कर्मचारी राज्य निगम के दायरे में विस्तार करके श्रमिकों को सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा प्रदान करेंगे।

 

इस संहितोओं पर चर्चा की शुरूआत करते हुए भाजपा के विवेक ठाकुर ने कहा कि स्थायी संसदीय समिति ने इन तीनों विधेयकों पर विस्तृत चर्चा की। बाद में श्रम मंत्रालय ने भी विभिन्न पक्षों से बातचीत की। एक बड़ा तबका इन विधेयकों के दायरे में आएगा। उद्योगों में श्रम की अहम भूमिका का जिक्र करते हुए उन्होंने इसे प्रगतिशील श्रम सुधार बताया।

 

उन्होंने आगे कहा कि श्रमिक देश की आत्मा हैं और उनके योगदान के बिना उद्योग की कल्पना नहीं की जा सकती। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार श्रमिकों के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध है आत्मनिर्भर भारत के निर्माण के लिए ये विधेयक लाए गए हैं। इसके प्रावधानों से कारोबार करने में आसानी होगी।

 

जेडीयू के आरसीपी सिंह ने तीनों विधेयकों का समर्थन किया और कहा कि कहा कि यह ऐतिहासिक कदम है जिसमें 25 कानूनों को एक संहिता में समाहित किया गया है। पहले सबकी अलग अलग परिभाषा, अलग प्राधिकार आदि होते थे लेकिन अब सबको समाहित किया जाएगा जिससे अच्छा प्रभाव पड़ेगा।

 

भाजपा के राकेश सिन्हा ने इसपर कहा कि इससे सामाजिक समावेशीकरण को बढ़ावा मिलेगा और लैंगिक भेदभाव समाप्त होगा। कुल श्रमिकों में महिलाएं की भी खासी संख्या है अब उन्हें भी समान अधिकार, समान अवसर, समान पारिश्रमिक मिलेगा जिससे महिला सशक्तीकरण को बढ़ावा मिलेगा।

 

केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने भी इसपर कहा कि आजादी के 73 साल बाद मजछूरों को अब न्याय मिल रहा है जिसकी वे प्रतीक्षा कर रहे थे। इन विधेयकों के प्रावधानों के तहत श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी, समय से मजदूरी की गारंटी होगी। इन विधेयकों के तहत श्रमिकों को वेतन, सामाजिक व स्वास्थ्य सुरक्षा मिल सकेगी। इसके अलावा महिलाओं और पुरुषों के बीच के भेद खत्म होगा और उन्हें समान वेतन मिल सकेगा।

 

रामदास आठवले ने इन विधेयकों को क्रांतिकारी बताया और कहा कि इनसे श्रमिकों को न्याय मिल सकेगा जो अब तक उन्हें नहीं मिल सका है। आठवले ने सुझाव भी दिया कि नियमित प्रकृति वाले काम में ठेके पर कर्मचारी नहीं रखे जाने चाहिए।

 

उन्होंने आगे कहा कि न्यायालय ने भी इस संबंध में फैसला किया है। ठेका पद्धति को समाप्त करने के लिए कानून लाना चाहिए। चर्चा में बीजद के सुभाष चंद्र सिंह, अन्नाद्रमुक के एस आर बालासुब्रमण्यम, तेदपा के के रवींद्र कुमार आदि ने भी भाग लिया और श्रमिकों के कल्याण की जरूरत पर बल दिया।

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