Bakrid 2020: देशभर में आज बकरीद का त्योहार मनाया जा रहा है। बकरीद को ईद-उल-अजहा, ईद-उल-जुहा, बकरा ईद, के नाम से भी जाना जाता है। इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार हर साल बकरीद 12वें महीने की 10 तारीख को मनाई जाती है। यह रमजान माह के खत्म होने के लगभग 70 दिनों के बाद मनाई जाती है।
इस दिन कुर्बानी देने की प्रथा है। यह इस्लाम मजहब के प्रमुख त्योहारों में से एक है। दिल्ली स्थित जामा मस्जिद में लोगों ने शनिवार सुबह नमाज अदा की गई। दिल्ली की जामा मस्जिद में सुबह 6 बजकर 5 मिनट पर नमाज अदा की गई। जामा मस्जिद में नमाज अदा करने आए लोगों ने एक-दूसरे को ईद की मुबारकबाद दी।
आज के दिन नमाज पढ़ने के बाद कुर्बानी दी जाती है। ईद के मौके पर लोग अपने रिश्तेदारों और करीबों लोगों को ईद की दिली मुबारकबाद देते हैं। ईद की नमाज में लोग अपने लोगों की सलामती की दुआ करते हैं। एक-दुसरे से गले मिलकर भाईचारे और शांति का संदेश देते हैं।बकरीद का त्योहार इस्लाम धर्म में काफी महत्व रखता है।
बकरीद का महत्व-
इस्लामिक चंद्र कैलेंडर के बारहवें महीने जु-अल-हज्जा की पहली तारीख को चांद नजर आता है, इसलिए इस महीने के दसवें दिन ईद-उल-अजहा (बड़ी ईद) का त्योहार मनाया जाता है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार, तारीख हर साल बदलती है और पिछली तारीख से 11 दिन पहले इस त्योहार को मनाया जाता है।
इस तरह शुरू हुई कुर्बानी की परंपरा-
पैगंबर हजरत इब्राहिम से इस्लाम धर्म में कुर्बानी देने की परंपर शुरूआत मानी गई है। प्रचलित मान्यताओं के अनुसार इब्राहिम अलैय सलाम को कई भी संतान नहीं थी और जब अल्लाह से काफी मिन्नतों के बाद उन्हें एक संतान हुई तो उसका नाम इस्माइल रखा गया।
इब्राहिम अपने बेटे से बेहद प्यार करते थे। एक रात अल्लाह ने हजरत इब्राहिम के सपने में आकर उनसे उनकी सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी मांगी। उन्होंने एक-एक कर अपने सभी प्यारे जानवरों की कुर्बानी दे दी, लेकिन सपने में फिर अल्लाह से उन्हें अपनी सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी देने का आदेश मिला।
इब्राहिम को उनका बेटा सबसे ज्यादा प्यारा था, लेकिन अल्लाह के आदेश का पालन करते हुए वे अपने बेटे की कुर्बानी देने पर तैयार हो गए और उन्होंने अपने बेटे की कुर्बानी देते समय अपने आंखों पर पट्टी बांध ली और कुर्बानी के बाद जब आंखे खोली तो उनका बेटा जीवित था।
अल्लाह इब्राहिम की निष्ठा से बेहद खुश हुए और उनके बेटे की जगह कुर्बानी को बकरे में बदल दिया. कहा जाता है कि उसी समय से बकरीद पर कुर्बानी की देने की यह परंपरा चली आ रही है। बकरीद के दिन मुस्लिम समुदाय के लोग बकरों की कुर्बानी देकर हजरत इब्राहिम की दी हुई कुर्बानी को याद करते हैं।
बकरों की कुर्बानी के बाद गोश्त के तीन हिस्से किए जाते हैं। जिसमें से पहला हिस्सा परिवार वालों, दूसरा हिस्सा दोस्तों- रिश्तेदारों और तीसरा हिस्सा समाज के गरीब और जरूरतमंद लोगों में बांट दिया जाता है। इस दिन सेवई जैसे कई लजीज पकवान घर-घर में बनाए और खाए जाते हैं।