न्यूयॉर्क | अमेरिका के एक सरकारी आयोग ने असम को कश्मीर मुद्दे से जोड़े जाने के प्रयासों के बीच कहा है कि भारत में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) धार्मिक स्वतंत्रता में गिरावट का एक रुझान पेश करता है।
यूएस इंटरनेशनल कमीशन ऑन रिलीजियस फ्रीडम (USCIRF) ने मंगलवार को जारी एक संक्षिप्त बयान में कहा, “एनआरसी धार्मिक अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने का उपकरण है और विशेष रूप से, भारतीय मुस्लिमों को देशविहीन करने के लिए है, जो भारत के अंदर धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति में गिरावट का एक और उदाहरण बन गया है।”
बयान में कहा गया है कि असम में 19 करोड़ लोगों पर राज्य से बाहर किए जाने का खतरा मंडरा रहा है।
“Close to two million long-time residents of Assam may soon be deemed stateless. They are being stripped of their citizenship without a fair, transparent, and well-regulated NRC process.” – Commissioner @CommrBhargava https://t.co/0dqjPr1360
— USCIRF (@USCIRF) November 19, 2019
यह बयान कश्मीर मुद्दे के बाद एनआरसी का इस्तेमाल करके मानवाधिकार की आड़ में भारत के खिलाफ अमेरिका में चला एक नया राजनीतिक पैंतरा है।
कांग्रेस की दो समितियों के समक्ष कई लोगों ने कश्मीर से विशेष दर्जे को हटाने और वहां प्रतिबंध लगाने के लिए भारत की आलोचना की और उन्होंने असम में लाए गए एनआरसी का मुद्दा भी उठाया।
मानवाधिकारों पर प्रतिनिधिसभा के लैंटोस कमीशन के समक्ष पिछले सप्ताह हुई एक सुनवाई के दौरान यूएसआईसीआरएफ की आयुक्त अनुरिमा भार्गव की कश्मीर पर गवाही के उद्धरणों के साथ एक बयान जारी किया गया है।
अनुरिमा ने जोर देकर कहा था, “इससे भी बुरी बात यह है कि भारतीय राजनीतिक अधिकारियों ने असम में मुसलमानों को अलग-थलग करने और उन्हें देश से बाहर निकालने के लिए एनआरसी प्रक्रिया का इस्तेमाल करने के अपने इरादे से बार-बार अवगत कराया है। और अब राजनेता पूरे भारत में एनआरसी का विस्तार करने और मुसलमानों के लिए पूरी तरह से नागरिकता के अलग मानक लागू करने की मांग कर रहे हैं।”
यूएसआईसीआरएफ के नीति विश्लेषक हैरिसन अकिन्स ने कहा, “सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राष्ट्रीय और राज्य स्तर के नेताओं ने महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल सहित अन्य राज्यों में एनआरसी को लागू कराए जाने के लिए जोर दिया है।”
दस्तावेज में कहा गया है कि जब यह महसूस किया गया कि असम में बड़ी संख्या में बंगाली हिंदुओं को भी एनआरसी से बाहर रखा गया है, तो भाजपा के राजनेताओं ने ‘पुन: सत्यापन’ और सुप्रीम कोर्ट द्वारा पुनर्समीक्षा कराए जाने की बात पर जोर दिया।
बयान में कहा गया कि राज्य और राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर भाजपा के अधिकारियों ने नागरिकता अधिनियम 1955 में संशोधन का प्रस्ताव किया है।
बयान में यूएसआईसीआरएफ के चेयरमैन टोनी पर्किन्स के हवाले से कहा गया, “भारत सरकार की अपडेटेड एनआरसी सूची और उसके बाद की कार्रवाई अनिवार्य रूप से असम के कमजोर मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाने के लिए नागरिकता को लेकर एक धार्मिक परीक्षा जैसा हालात बना रही है। हम भारत सरकार से अनुरोध करते हैं कि वह अपने सभी धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करे जैसा कि भारतीय संविधान में निहित है।”
असम एनआरसी 1951 में अस्तित्व में आया था और यह अव्यवहारिक हो गया और 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे अपडेट करने का आदेश दिया।
नागरिकता अधिनियम का प्रस्तावित संशोधन ईसाई, सिख, बौद्ध, पारसी और जैन जैसे धार्मिक अल्पसंख्यकों की रक्षा करना चाहता है, इसका मकसद इस्लामिक पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से उत्पीड़न या खतरे की आशंका के चलते भागकर भारत आए धार्मिक अल्पसंख्यकों को सुरक्षा प्रदान करना है।