भारतीय राजनयिकों ने पाकिस्तान को दिया करार जवाब, अन्य भी पीछे नहीं

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नई दिल्ली, 3 अक्टूबर (आईएएनएस)। ईनम गंभीर याद है? तीन साल पहले 2005 बैच की इस भारतीय विदेश सेवा (आईएफएस) अधिकारी ने न्यूयॉर्क में 72वीं संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) सत्र में पाकिस्तान को जमकर लताड़ा था। ईनम ने संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में पाकिस्तान को ऐसा करारा जवाब दिया कि वहां मौजूद हर कोई हैरान रह गया।

उन्होंने अपने भाषण में पाकिस्तान पर पलटवार करते हुए कहा था, “पाकिस्तान अपने छोटे से इतिहास में आतंक का पर्याय बन चुका है। वह जमीन जिसे पाक बनाना था वह अब वास्तव में आतंक की जमीन बन चुकी है।


इससे पहले, संयुक्त राष्ट्र महासभा में प्रधानमंत्री शाहिद खाकान अब्बासी ने भारत पर उनके देश के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त होने का आरोप लगाया था, जिसका गंभीर ने मुंहतोड़ जवाब दिया था।

ईनम गंभीर संयुक्त राष्ट्र में भारत की पहली स्थायी सचिव हैं।

इसके बाद आईएफएस अधिकारियों के 2009 बैच से विदिशा मैत्रा ने भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए पाकिस्तान को करारा जवाब दिया। उन्होंने पिछले साल यूएनजीए में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को उनके पूरे नाम इमरान खान नियाजी के साथ संबोधित किया। उन्होंने पूरे नाम का उपयोग इसलिए किया, क्योंकि वह लेफ्टिनेंट जनरल ए.ए.के. नियाजी ही थे, जिन्होंने 1971 में भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण किया था।


अब न्यूयॉर्क से लेकर जेनेवा, यूएनजीए से लेकर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में न केवल अनुभवी राजनयिकों जैसे टी.एस. तिरुमूर्ति, बल्कि युवा राजनयिक भी भारत का मजबूती से पक्ष रखते हुए पाकिस्तान को करारा जवाब देने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। इनमें देवी कुमम, मिजितो विनीतो, पवन कुमार तुलसीदास बंधे, सेंथिल कुमार सुबामण्यन, विमर्श आर्यन और अनिमेश चौधरी शामिल हैं, जिन्होंने पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय से अपने समकक्षों की रातों की नींद हराम कर दी है।

भारतीय विदेश सेवा के अधिकारियों का यह एक बेहद प्रतिभाशाली समूह है, जो समझदारी से बात करते हैं और ठोस सबूतों के साथ अपने तर्क रखते हैं, जिनका पाकिस्तानी समकक्षों के पास कोई जवाब नहीं होता। इन शानदार राजनयिकों को एक बड़ा धन्यवाद बनता है कि यह भारत की ओर से पाकिस्तान को करारा जवाब देते हैं।

हालांकि, भारत को विश्व स्तर पर पाकिस्तान को बेनकाब करने के लिए कुछ और व्यक्तियों का भी धन्यवाद करना चाहिए। इनमें जुनैद कुरैशी, मलाइज दाऊद, वेरोनिका एकेलुंड, अनिला गुलजार और अमजद अयूब मिर्जा शामिल हैं। यह विदेशी सेवा अधिकारी तो नहीं हैं, लेकिन उन्होंने मानवाधिकारों के हनन पर पाकिस्तान के दोहरे मानदंडों और जम्मू-कश्मीर में सीमा पार आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले कार्यो को उजागर करने में उल्लेखनीय काम किया है।

जुनैद कुरैशी एक कश्मीरी लेखक हैं। इसके साथ ही वह एम्स्टर्डम आधारित थिंक-टैंक यूरोपियन फाउंडेशन फॉर साउथ एशियन स्टडीज (ईएफएसएएस) के निदेशक भी हैं। उन्होंने पिछले हफ्ते जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के 45वें सत्र में हस्तक्षेप करते हुए दुनिया को समझाया कि कैसे घाटी में सांप्रदायिकता की विचारधारा को लोगों के मन में उतारने के लिए पाकिस्तान पूरी कोशिश कर रहा है।

उन्होंने सत्र में कहा कि 1980 के दशक के बाद से पाकिस्तानी सेना ने जम्मू एवं कश्मीर के युवाओं का इस्तेमाल लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे विभिन्न आतंकवादी संगठनों द्वारा किए जाने वाले हमलों के लिए किया है।

जुनैद कुरैशी ने कहा, “जो हजारों कश्मीरी सहमत नहीं थे, वे इन आतंकवादी हमलों से मारे गए। इसमें भारतीय संविधान को मानने वालों को विशेष रूप से निशाना बनाया गया। आज, अपने विदेश मंत्री के नेतृत्व में पाकिस्तान उस स्वायत्तता की वापसी की मांग कर रहा है, जिसे जम्मू एवं कश्मीर पहले ही भारतीय संविधान के तहत हासिल कर चुका है। वही संविधान जिसके खिलाफ उसने यह छद्म युद्ध शुरू किया था, जिसमें कश्मीरियों का नरसंहार हुआ था।”

उन्होंने कहा, “मैं इस परिषद से विनम्रतापूर्वक आग्रह करता हूं कि इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ पाकिस्तान को ऑडिट के लिए बुलाया जाए और इसे मेरी मातृभूमि के विनाश के लिए जवाबदेह ठहराया जाए।”

इसके साथ ही एक रिसर्च स्कॉलर वेरोनिका ने एक कदम आगे बढ़कर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में पाकिस्तान की सदस्यता पर सवाल उठाते हुए कहा कि कैसे पाकिस्तान जैसा देश आतंकी संगठनों के लिए सुरक्षित पनाहगाह होते हुए एक विश्व मंच पर शांति पर चर्चा कर सकता है। इसके साथ ही अन्य लोगों ने भी विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान को करारा जवाब दिया है।

–आईएएनएस

एकेके/एसजीके

(इस खबर को न्यूज्ड टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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