Dr Bhagwan Das Death Anniversary: कोई कितना बुद्धिमान हो सकता है? कोई महज 18 साल की उम्र में अगर अपना पोस्ट ग्रेजुएशन पूरा कर ले तो उसे आप क्या कहेंगे? ऐसे ही एक बुद्धिमान हमारे देश में हुए थे डॉक्टर भगवान दास।
भगवान दास ने 18 साल की उम्र में अपना पोस्ट ग्रेजुएशन पूरा कर लिया था। 23 साल तक आते आते इन्होंने कई किताबें लिख डालीं।
आगे चल कर इंडियन नेशनलिस्ट मूवमेंट से भी जुड़े। ब्रिटिश भारत में सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली भी गए। काशी विद्यापीठ की स्थापना इन्होंने ही की थी। आगे चल कर इन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न (Bharat Ratn) से भी नवाजा गया।
भारतरत्न डॉक्टर भगवान दास का जन्म 12 जनवरी 1869 को काशी में हुआ था। शुरूआती पढ़ाई काशी में ही हुई।
आगे चल कर इन्होंने पत्रकारिता भी की। भगवान दास ने संस्कृत भाषा को बचाने का तब तक प्रयास किया जब तक वो जीवित थे।
भगवान दास वैदिक संस्कृति को वापिस लाना चाहते थे। इन्हें अन्य कई भाषा का भी ज्ञान था जैसे अंग्रेजी, फ़ारसी आदि। पढ़ाई खत्म करने के बाद इन्होंने कलेक्टर की नौकरी भी की। कुछ वक्त के बाद इन्होंने नौकरी छोड़ कर राजनीति से जुड़ने का फैसला किया। इंडियन नेशनल कांग्रेस से भी जुड़े आगे चल कर। इन्होंने कई वर्षों तक कांग्रेस (Congress) को अपना योगदान दिया।
भगवान दास जात पात और धर्म में बिल्कुल विश्वास नहीं रखते थे। इनका कहना था कि इंसान को कर्म के आधार पर पहचाना जाना चाहिए न कि धर्म के आधार पर। धर्म को लेकर भगवान दास जी कहते थे।
“सभी धर्मो में यह माना गया है कि परमात्मा सबके हृदय में आत्मा रूप से मौजूद है। सब भूतों, सब प्राणियों के भीतर में बैठा है। सबके आगे, सबके पीछे, “मैं’ ही है। सभी धर्मो में तीन अंग हैं, ज्ञान, भक्ति और कर्म। उसूली “अकायद’ यानी ज्ञानकांड और, “हकीकत’ की बातें तो सब मजहबों में एक हैं ही, “इबादत्त” यानी भक्तिकांड ओर “तरीकत” की बातें भी एक ही हैं और “मामिलात यानी कर्मकांड या “शरियत की ऊपरी, सतही बातें भी एक या एक सी हैं। यह बात सभी मजहबवाले मानते हैं कि खुदा है और वह एक है, वाहिद है, अद्वितीय है। यह भी सब मानते हैं कि पुण्य का फल सुख और पाप का फल दु:ख होता है। व्रत, उपवास, तीर्थयात्रा, धर्मार्थ दान ये भी सब मजहबों में हैं। सभी धर्मो’ में तीन अंग हैं, ज्ञान, भक्ति और कर्म। उसूली “अकायद” यानी ज्ञानकांड और, “हकीकत’ की बातें तो सब मजहबों में एक हैं ही, “इबादत्त’ यानी भक्तिकांड और “तरीकत’ की बातें भी एक ही हैं और “मामिलात’ यानी कर्मकांड या “शरियत’ की ऊपरी, सतही बातें भी एक या एक सी हैं। सभी धर्मो में धर्म के चार मूल माने गए हैं : त्रुटि, स्मृति, सदाचार और हृदयाभ्यनुज्ञा। खुदा को ला-मकान और निराकार कहते हुए भी सभी उसके लिए खास खास मकान बनाते हैं, मंदिर, मस्जिद और चर्च आदि के नाम से।”