बिहार : बुजुर्ग प्रोफेसर भरते हैं कागज के फूलों में जान

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पटना, 29 अक्टूबर (आईएएनएस)| अगर कोई कुछ नया करने की जिद ठान ले तो उसके लिए कुछ भी मुश्किल नहीं रह जाता। बिहार के भागलपुर में रहने वाले 70 वर्षीय प्रोफेसर संजय कुमार झा ने कागज से करामात दिखाने की जो ठानी, तो उसे करके ही दम लिया। यही वजह है कि उनके हुनर को सराहने वालों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पूर्व राष्ट्रपति जाकिर हुसैन और लोकप्रिय गायिका आशा भोसले तक शुमार हैं।

प्रो. संजय को लोग पहलवान, प्रोफेसर और कागज के फूलों वाले कलाकार के रूप में जानते हैं। भागलपुर शहर में उनकी पहचान एक ऐसे उम्रदराज व्यक्ति की है, जो कहीं भी बैठ जाता है और अपने झोले से कागज-कैंची निकालकर उसे मोहक आकार देने लगता है।


संजय कहते हैं कि 50 साल की अथक मेहनत के बाद वह इस मुकाम पर पहुंचे हैं। वह कागज से ऐसा गुलाब बनाते हैं कि असली और नकली में फर्क करना मुश्किल हो जाता है।

उन्होंने आईएएनएस को बताया, “14-15 साल की उम्र में मैंने एक दिन मुहल्ले में देखा कि एक व्यक्ति लोगों को कागज का फूल बनाकर दिखा रहा था। मैंने जब उससे उसकी इस कला के बारे में पूछा तो उसने टाल दिया। इसके बाद मैंने इस कला को सीखने की जिद ठान ली। यहीं से कागज का फूल बनाने का मेरा सफर शुरू हुआ।”

प्रो. संजय ने बताया, “युवा अवस्था में सुबह अखाड़े में, दोपहर स्कूल, कॉलेज और शाम कागजों से खेलने में बीतती थी। कागज जब आकार लेता था, तब लोगों की वाहवाही भी मिलती थी। मगर मेरी जिद थी कि ऐसा बनाऊं कि नकली और असली में फर्क न लगे।”


प्रो. संजय ने कॉलेज की प्रयोगशाला की मदद से सबसे पहले गुलाब के लिए रंग बनाने शुरू किए। कई साल प्रयोग करने के बाद उन्हें गुलाब का रंग मिल गया।

उन्होंने बताया, “भागलपुर विश्वविद्यालय में वनस्पति विज्ञान विभाग का अध्यापक बन जाने के बाद रिसर्च की मेरी दुनिया बड़ी हो चुकी थी। मैं चाहता था कि जो गुलाब बनाऊं, उसकी पखुंड़ियों को मसलने के बाद वैसा ही रस निकले, जैसा असली गुलाब में होता है। आकार तो आ गया था, लेकिन टेक्सचर और रंग पर भी काम करना था।”

प्रो. संजय ने बताया कि इस काम में उनके बड़े भाई तथा पटना स्कूल ऑफ आर्ट के प्राचार्य उदय कांत झा और मुंबई में व्यावसायिक आर्ट के चर्चित नाम अक्कू झा ने मदद की। कई साल की लगातार मेहनत के बाद लोगों ने वो गुलाब देखा, जिसमें सुगंध भी थी और रंग भी।

वह कहते हैं कि कई प्रतियोगिताओं में निर्णायकों ने भी धोखा खाया। मुंबई में झा ने अपना बनाया गुलाब प्रख्यात गायिका आशा भोसले को भेंट किया। वह मानने के लिए तैयार ही नहीं थी कि उनके हाथ में जो गुलाब है, वो प्रकृति की देन नहीं, किसी हुनरमंद हाथों का कमाल है।

पूर्व राष्ट्रपति जाकिर हुसैन भी उनके हुनर पर फिदा थे। प्रो. झा को इस सफलता के लिए अमेरिका के ‘हवाई स्टेट’ की ओर से सम्मानित किया गया है और फेलोशिप भी दी गई है। अहमदाबाद के आईआईएम ने भी उनको सम्मान दिया है। गुलाब के बाद उन्होंने कागजों से कुकुरमुत्ते, कागजों के पंख, कागजों से बने पेड़-पौधे, गार्डन, कलम, कई पौधों की बोनसाई बनाई, जिस देखकर एकबारगी यकीन नहीं होता।

उनके बनाया गया एक बोनसाई पटना के बिहार संग्रहालय में रखा गया है। संग्रहालय के दौरे के क्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कागज के बनाए गए इस बोनसाई की तारीफ कर चुके हैं।

प्रो. संजय ने कहा, “विभाग से सेवानिवृत्त होने के बाद वक्त ज्यादा मिलता है, इसलिए कुछ नया करने में जुटा हूं।” उन्होंने इस कला में महारथ हासिल करने में पत्नी के योगदान को भी माना।

अपनी कला दिखाते हुए 70 वर्षीय झा कहते हैं, “देखिए, गुलाब बन गया। पखुंड़ियों में रस आ गया। टेक्सचर आ गया। पत्तियां और डालियों को भी आकार मिल गया, लेकिन कांटे नहीं हैं।”

प्रो. संजय को कला के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए मुंगेर में परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती 17 नवंबर को आचार्य लक्ष्मीकांत मिश्र राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित करेंगे।

 

(इस खबर को न्यूज्ड टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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