जन्मदिन विशेष : बावरे से दिखने वाले गुलशन, कलम से शब्द नहीं भावनाएं बयां करते थे

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जन्मदिन विशेष : बावरे से दिखने वाले गुलशन, कलम से शब्द नहीं भावनाएं बयां करते थे

मेरे देश की धरती सोना उगले, यारी है ईमान मेरा, जैसे भावपूर्ण गीतों को कलमबद्ध करने वाले गुलशन बावरा को बॉलीवुड में एक ऐसे गीतकार के तौर पर याद किया जाता है जिन्होंने अपने भावपूर्ण गीतों से लगभग तीन दशकों तक श्रोताओं को अपना दीवाना बनाया।

उनकी अदा ने उन्हें बावरा बना दिया

शायद कम ही लोगों को मालूम होगा कि फिल्मी इतिहास की कई चुनिंदा फिल्मों में अपनी फनकारी का जादू चलाने वाले गुलशन बावरा का असली नाम गुलशन कुमार मेहता था, लेकिन बावरे से दिखने की उनकी अदा ने उन्हें नया नाम गुलशन बावरा दिया था। माना जाता है कि फिल्म ‘सट्टा बाजार’ के निर्माण के दौरान उनको बावरा नाम मिला। फिल्म के डिस्ट्रीब्यूटर शांतिभाई पटेल गुलशन के काम से खासे खुश थे, लेकिन रंग-बिरंगी शर्ट पहनने वाले लगभग 20 साल के युवक की प्रतिभा को स्वीकार नहीं कर पा रहे थे।


छोटी सी उम्र से कविताओं में रूझान

हिन्दी भाषा और साहित्य के करिश्माई व्यक्तित्व गुलशन बावरा का जन्म 12 अप्रैल 1937 को लाहौर शहर के निकट शेखपुरा में हुआ था। महज छह वर्ष की उम्र से हीं गुलशन बावरा का रूझान कविता लिखने की ओर था। उनकी मां विद्यावती धार्मिक कार्यकलापों के साथ-साथ संगीत मे भी काफी रुचि रखती थी।

फिल्मों में अपने अभिनय की भी छाप छोड़ने वाले गीतकार गुलशन को भारत-पाकिस्तान विभाजन के दौरान बलवे के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया था। दंगों के दौरान उन्होंने अपने अभिभावकों की मौत अपनी आंखों के सामने होती देखी, जिसका दर्द पूरे जीवन उनके लिखे गानों में भी दिखाई दिया।

फिल्मों में संघर्ष का दौर

बंबई का सिनेमा जगत हमेशा ही गुलशन को अपनी ओर आकर्षित करता था। दिल्ली में कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने वाले गुलशन फिल्म उद्योग में अपना करियर बनाना चाहते थे, लेकिन मुंबई में किसी को जानते नहीं थे। संयोग से उन्हें मुंबई में एक क्लर्क की नौकरी मिल गई, जिसके बाद 1955 में वह मुंबई आ गए।


गुलशन का इस नौकरी के साथ ही फिल्मों में संघर्ष का दौर शुरू हो गया। संघर्ष के दौरान कल्याणजी-आनंदजी ने गुलशन बावरा को चंद्रसेना का एक गाना लिखने का मौका दिया। गुलशन ने इसका फायदा उठाते हुए ‘मैं क्या जानूं, कहां लागे ये सावन मतवाला रे’ गाकर फिल्मों की दुनिया में अपनी फनकारी का कमाल दिखाया।

कम और अच्छा काम करने में विश्वास

गुलशन हमेशा अच्छा काम करने में विश्वास रखते थे। अपने 42 वर्ष के फिल्मी करियर में गुलशन ने सिर्फ 240 गीतों की रचना की। गुलशन ने एक इंटरव्यू में इस बात को स्वीकार किया था कि वह न तो बहुत ज्यादा काम करने में विश्वास रखते हैं और न ही काम के साथ समझौता करने में।

गुलशन ने कहा था कि मैं बहुत ज्यादा और आक्रामक तरीके से काम में विश्वास नहीं रखता। मैंने अपने समय में एक फिल्म के लिए 90,000 रुपये तक लिए वो भी ऐसे समय में जब कोई व्यक्ति 65,000 रुपये तक में एक बड़ा फ्लैट खरीद सकता था।

अपने काम के प्रति समर्पण के बारे में उन्होंने कहा था कि मैंने कभी अपनी कीमत से समझौता नहीं किया क्योंकि मैंने कभी अपने काम से समझौता नहीं किया।

गुलशन को फिल्म ‘जंजीर’ के ‘यारी है ईमान मेरा’ और ‘उपकार’ के ‘मेरे देश की धरती सोना उगले’ गीतों के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। 7 अगस्त, 2009 को अनोखी प्रतिभा का धनी यह कलाकार हमेशा के लिए दुनिया को अलविदा कह गया और पीछे छोड़ गया अपने गानों का गुलिस्तां।

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