जन्मदिन विशेष : महात्मा गांधी के नाम से अलग भी है ‘बा’ कस्तूरबा गांधी की पहचान

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जन्मदिन विशेष : महात्मा गांधी के नाम से अलग भी है कस्तूरबा गांधी 'बा' की पहचान

महात्मा गांधी को जिस तरह पूरे देश में बापू के नाम से जाना जाता है, उसी तरह गांधी की पत्नी होने के नाते, और कांग्रेस में एक मजबूत महिला प्रतिनिधि होने के चलते, पूरा देश सशक्त कस्तूरबा को “बा” पुकारता था। गुजराती में बा का अर्थ होता है मां।

कस्तूरबा गांधी का जन्म 11 अप्रैल, 1869 को गुजरात के पोरबंदर जिले में हुआ। कस्तूरबा गांधी के पिता गोकुलदस कपाड़िया थे। कस्तूरबा गांधी को अधिकांश लोग केवल महात्मा गांधी की पत्नी के रूप में  ही जानते हैं, जबकी  कस्तूरबा के जीवन की ऐसी कई उपलब्धियां भी हैं जिनसे कि वे खुद की एक अलग पहचान रखने का माद्दा रखती हैं।


छोटी सी  उम्र में हो गई थी शादी

कस्तूरबा गांधी एक महान समाज सेविका थीं। महज़ 13 साल की उम्र में उनकी  शादी महात्मा गांधी से हो गई थी। शादी के वक़्त दोनों की उम्र काफी कम थी। शादी के वक़्त कस्तूरबा गांधी अनपढ़ थीं और उन्हे ठीक से अक्षरों का ज्ञान भी नहीं था। कस्तूरबा गांधी को साक्षर बनाने का जिम्मा खुद महात्मा गांधी ने लिया और उन्होने कस्तूरबा गांधी को बुनियादी शिक्षा- जैसे लिखना और पढ़ना सिखाया। हालांकि कस्तूरबा घरेलू जिम्मेदारियों के कारण ज्यादा नहीं पढ़ पाईं। लेकिन वो समाज सेवा में पूरे दिल से लग गईं।

कस्तूरबा का घरेलू जीवन

कस्तूरबा ने जब पहली बार साल 1888 में बेटे हीरालाल को जन्म दिया तब महात्मा गांधी देश में नहीं थे। ये वही वर्ष था जब महात्मा गांधी लंदन में वकालत की पढ़ाई करने गए थे। वकालत करके लौटने के बाद गांधी जी को 1892 में दूसरे संतान की प्राप्ति हुई, जिनका नाम मणिलाल रखा गया। 1897 में गांधी दम्पति के तीसरे बेटे रामदास का जन्म हुआ। तीन बेटों के जन्म के बाद कस्तूरबा एक माँ के पात्र में थीं और घरेलू कामकाज में पूरी तरह से रम गईं थीं। वहीं दूसरी ओर गांधी जी के दौर की यह शुरुआत ही थी। गांधी जी के पहले बेटे के जन्म के कारण कस्तूरबा उनके साथ लंदन तो नहीं जा पाईं थीं, पर जब 1897 में महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका जाकर वकालत का अभ्यास करने का निर्णय लिया, तब कस्तूरबा ने उनका परस्पर साथ दिया।

दक्ष‍िण अफ्रीका में अमानवीय हालात के खिलाफ संघर्ष

गरीब और पिछड़े वर्ग के लिए महात्मा गांधी ने काम किया ये तो हम सब जानते हैं, लेकिन ये शायद कम ही लोगों को पता होगा कि दक्ष‍िण अफ्रीका में अमानवीय हालात में भारतीयों को काम कराने के विरुद्ध आवाज उठाने वाली कस्तूरबा ही थीं। सर्वप्रथम कस्तूरबा ने ही इस बात को प्रकाश में रखा और उनके लिए लड़ते हुए कस्तूरबा को तीन महीने के लिए जेल भी जाना पड़ा। जिस महात्मा गांधी से अंग्रेज डरते थे, वो खुद कस्तूरबा गांधी से ऊंची आवाज में कभी बात नहीं करते थे। कस्तूरबा कड़क स्वभाव की थीं और अनुशासन बहुत प्र‍िय था उन्हें।


कस्तूरबा से ‘बा’ बनने की कहानी

साल 1922 में स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ते हुए महात्मा गांधी जब जेल चले गए तब स्वाधीनता संग्राम में महिलाओं को शामिल करने और उनकी भागीदारी बढ़ाने के लिए कस्तूरबा ने आंदोलन चलाया और उसमें कामयाब भी रहीं। 1915 में कस्तूरबा जब महात्मा गांधी के साथ भारत लौंटी तो साबरमती आश्रम में लोगों की मदद करने लगीं। आश्रम में सभी उन्हें ‘बा’ कहकर बुलाने लगे।

कस्तूरबा गांधी का राजनीतिक सफर

गांधी जी साल दर साल राजनीति और देश के लिए अत्यधिक समर्पित हो गए। इस दौरान कस्तूरबा एक स्तंभ की तरह गांधी जी के साथ खड़ी रहीं और उनका लगातार सहयोग किया। उस दौर मे कस्तूरबा गांधी के सिवाय और उंगलियों पर गिनी जा सकें केवल इतनी ही महिलाएं राजनीति और देशसेवा में संलग्न थीं। उस दौर की सोच इस तरह थी कि यदि महिलाएं ये सब कुछ करेंगी तो घरेलू कामों को सही ढंग से नहीं कर पाएंगी, या करना छोड़ देंगी। 2 फरवरी 1944 को कस्तूरबा गांधी ने इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया। लेकिन बा का स्नेह आज भी सभी के दिलों में जीवित है।

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