जन्मदिन विशेष : लाइलाज बीमारी से उबरकर ‘कालजयी’ कुमार गंधर्व बनने की कहानी

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जन्मदिन विशेष : लाइलाज टीबी की बिमारी से उबरे, कालजयी कुमार गंधर्व, भजन के उस्ताद

सब कुछ मैं कैसे जान पाऊंगा? कितना ही ध्यान लगाया, कितना ही ज्ञान पाया, संगीत के अगम्य रूप की थाह मैं अब तक नहीं ले पाया हूं। संगीत अमूर्त है, उसके रागों और स्वरों का बोध हो पाना बड़ा दुरूसाध्य है। मैंने बेशक विकट तालों की, लयों की राह पकड़कर खोजने की कोशिश की है, अब तक न तो मैं उसकी थाह ले पाया हूं और न ही छोर तक पहुंच सका हूं”।

पंडित कुमार गंधर्व के इस आत्मकथ्य के साथ पुस्तक कालजयी कुमार गंधर्व की शुरुआत होती है। ये पुस्तक कुमार गंधर्व की बेटी कलापिनी कोमकली और रेखा इनामदार-साने संपादित की है।


भारत के प्रसिद्ध शास्त्रीय गायक कुमार गंधर्व का आज जन्मदिन है। उनका जन्म कर्नाटक के धारवाड़ में 8 अप्रैल 1924 को हुआ। उनका असली नाम शिवपुत्र सिद्धरामैया कोमकाली था। 10 साल की उम्र से ही उन्होंने संगीत समारोह में गाना शुरू किया। अपने गायन से दिल जीतने वाले कुमार 1947 में मध्य प्रदेश के देवास आ गए थे। उनकी शादी भानुमति से हुई जो खुद भी एक गायिका थीं।

एक दौर ऐसा भी आया जब उन्हें टीबी की बीमारी हुई। उस समय टीबी लाइलाज था। लेकिन वो उससे भी उबरे और फिर अपने गायन को और मजबूत किया। कुमार भजन के उस्ताद माने जाते हैं, कबीर के दोहे गाने में उनका कोई सानी हीं था। 12 जनवरी, 1992 को उनका देवास में उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। आज उनके बच्चे मुकुल गंधर्व और कलापिनी दोनों ही गायक हैं।

कुमार गंधर्व के जन्मदिन पर प्रस्तुत है उनके गानों का गुलदस्ता।


उड़ जाएगा हंस अकेला

प्रभु जी गमला

सुनता है गुरु ज्ञानी

राग केदार

राग कल्याण

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