जयंती विशेष: सआदत हसन मंटो पर 6 बार लगे अश्लील साहित्य लिखने के आरोप, बाद में पाकिस्तान से मिला ‘निशान-ए-इम्तियाज’

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जयंती विशेष: सआदत हसन मंटो पर 6 बार लगे अश्लील साहित्य लिखने के आरोप, बाद में पाकिस्तान से मिला 'निशान-ए-इम्तियाज'

अपनी कहानियों से एक अलग पहचान बनाने वाले सआदत हसन मंटो की आज जयंती है। 50-60 के दशक में एक ‘विवादित लेखक’ के तौर पर मशहूर मंटो की कहानियों ने युवाओं को खूब आकर्षित किया। मंटो को उनकी बेबाकी और बिंदासपन के लिए भी जाना जाता है, जो उनकी रचनाओं में साफ झलकती थी।

उर्दू के सबसे बेहतरीन लेखकों में से एक, सआदत हसन मंटो की कहानियां समाज के दोगलेपन पर सीधे सवाल उठाती थी। उन्हें अफसानों का उस्ताद कहा जाता था। मंटो कहानीकार होने के साथ-साथ एक फिल्म और रेडिया पटकथा लेखक और पत्रकार भी थे। एक लेखक के तौर पर मंटो ने 22 कहानी संग्रह, एक उपन्यास, रेडियो नाटकों की पांच सीरीज, रेखाचित्र के अलावा निबंध भी लिखे। मंटो ने हिंदी सिनेमा में भी काम किया।


शुरूआती जीवन

सआदत हसन मंटो का जन्म 11 मई 1912 को लुधियाना में हुआ था। मंटो कश्मीरी मूल के थे और उन्हें इस बात का बहुत नाज करते थे। उन्होंने अपनी शुरूआती शिक्षा अमृतसर के मुस्लिम हाईस्कूल से पूरी की। इसके बाद 1931 में हिंदू सभा कॉलेज में प्रवेश लिया। मंटो एक क्रांतिकारी दिमाग और अतिसंवेदनशील हृदय के व्यक्ति थे। वह महज 7 साल की उम्र में जलियांवाला बाग हत्याकांड से प्रभावित हुए और उन्होंने अपनी पहली कहानी ‘तमाशा’ जालियांवाला बाग पर ही आधारित थी।

मंटो का करियर और उनकी कहानियां


मंटो का पहला मौलिक उर्दू कहानियों का संग्रह ‘आतिशपारे’ 1936 में प्रकाशित हुआ। मंटो अलीगढ़ में अधिक नहीं ठहर सके और एक साल पूरा होने से पहले ही अमृतसर लौट गए और इसके अब्द लाहौर चले गए, जहां उन्होंने कुछ दिन ‘पारस’ नाम के एक अख़बार में काम किया। कुछ दिन के लिए ‘मुसव्विर’ नामक साप्ताहिक का संपादन भी किया। वह 1941 में दिल्ली आकर ऑल इंडिया रेडियो (AIR) में काम कियाv इसी दौरान मंटों के रेडियो-नाटकों के चार संग्रह प्रकाशित हुए। इनमें ‘आओ’, ‘मंटो के ड्रामे’, ‘जनाज़े’ तथा ‘तीन औरतें’ शामिल हैं। इसके बाद 1942 से 1948 तक मुंबई में पत्रिकाओं का संपादन और फिल्मों के लिए लिखना शुरू किया।

उनकी मशहूर कहानियों में टोबा टेक सिंह, खोल दो, घाटे का सौदा, हलाल और झटका, खबरदार, करामात, बेखबरी का फायदा, पेशकश, कम्युनिज्म, तमाशा, बू, ठंडा गोश्त, घाटे का सौदा, हलाल और झटका, खबरदार, करामात, बेखबरी का फायदा, पेशकश, काली सलवार आदि महत्वपूर्ण हैं। मंटो की कई कहानियों पर फिल्में भी बनाई गई, जिनमें काली सलवार मिर्जा- गालिब, शिकारी, बदनाम, अपनी नगरियां और टोबा टेक सिंह शामिल हैं। सोहराब मोदी की ‘मिर्जा गालिब’ जिसकी कहानी मंटो ने लिखी थी। इस फिल्म को 1954 के ‘नेशनल फिल्म अवार्ड’ से नवाजा गया था।

मंटो से जुड़ी कुछ खास बातें

सआदत हसन मंटो के बारे में कहा जाता है कि उन पर 6 बार अश्लील साहित्य लिखने के आरोप लगे, लेकिन साबित नहीं हो पाए। उन पर यह आरोप तीन बार पाकिस्तान बनने से पहले और तीन बार पाकिस्तान बनने के बाद लगे। ये मुकदमे उनके साहित्य ‘बू’, ‘काली शलवार’,’ऊपर-नीचे’, ‘दरमियां’, ‘ठंडा गोश्त’, ‘धुआं’ पर चले थे। बाद में पाकिस्तान ने उन्हें ‘निशान-ए-इम्तियाज’ से नवाजा और उनकी याद में डाक टिकट भी जारी किया।

यह भी कहा जाता है कि मंटो की शराब की लत के चलते कई संपादक मंटो को शराब का लालच दे कर कहानियां लिखवा लेते थे। साथ ही बताया जाता है कि वह एक ही सिटिंग में पूरी कहानी लिख दिया करते थे।

सआदत हसन मंटो का 18 जनवरी, 1955 को निधन हो गया था। उनके जीवन पर आधारित एक फिल्म ‘मंटो’ भी बनाई गई थी। इस फिल्म को नंदिता दास ने डायरेक्ट किया था और नवाजुद्दीन सिद्दीकी इसमें सआदत हसन मंटो के रोल में नजर आए थे।


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