बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा (JP Nadda) ने आज अपनी नई टीम की घोषणा की। यूं तो इस टीम में कई नए चेहरों को जगह मिली। लेकिन पार्टी के नए कोषाध्यक्ष के पद को लेकर सबसे ज्यादा चर्चा होना तय है। दरअसल इस बार ये पद राजेश अग्रवाल को सौंपा गया है, तो चलिए एक नज़र इस बात पर ड़ालते है कि आखिर कोषाध्यक्ष के लेकर पिछले दिनों से इतनी उत्सुकता क्यों रही।
जब अगस्त 2014 में अमित शाह पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने तब उन्होंने पार्टी कार्यकारिणी का नए सिरे से गठन किया था। इस नवगठित टीम में कोषाध्यक्ष का पद खाली रखा गया था। जबकि वित्तीय वर्ष यानी 2016-17 में 1034 करोड़ रुपये की कुल आमदनी के साथ बीजेपी देश की सबसे अमीर राजनीतिक पार्टी का तमगा हासिल किया था।
इस साल पार्टी की कुल आमदनी में करीब 81 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है मगर एक चौंकाने वाली ये रही कि जिसके कंधे पर पार्टी के लिए फंड इकट्ठा करने और सभी तरह के आय-व्यय का लेखा-जोखा रखने की जिम्मेदारी होती है उसके नाम का किसी को भी कोई अता-पता नहीं है कि आखिर वो शख्स है कौन।
अगर आप पार्टी की वेबसाइट पर जांच पड़ताल करेंगे तो ये भी आसानी से मालूम किया जा सकता था कि अपने कोषाध्यक्ष के बारे में न तो अपनी वेबसाइट पर किसी नाम का उल्लेख किया है और न ही चुनाव आयोग को सौंपी गई ऑडिट रिपोर्ट में कोषाध्यक्ष का नाम लिखा है।
साल 2016-17 के ऑडिट रिपोर्ट के मुताबिक कोषाध्यक्ष के स्थान पर फॉर लिखकर किसी का हस्ताक्षर किया हुआ है जो स्पष्ट नहीं है। हालांकि, ऑडिट रिपोर्ट पर दो अन्य हस्ताक्षरी चार्टर्ड अकाउंटेंट वेणी थापर और पार्टी के महासचिव रामलाल के दस्तखत जरूर हैं।
जब ‘द वायर’ ने इस बारे में कई लोगों से जानने की कोशिश की, तब पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी ने द वायर को बताया कि बीजेपी द्वारा चुनाव आयोग को सौंपा गया डिक्लरेशन गलत है। आयोग को चाहिए कि वो डिक्लरेशन स्वीकार करने की बजाय पार्टी को नोटिस जारी कर उससे कोषाध्यक्ष के बारे में उनसे सवाल पूछे।
एक अन्य पूर्व सीईसी ने नाम न छापने की शर्त पर तब कहा कि आयोग द्वारा साल 2014 में जारी राजनीतिक दलों के वित्तीय पारदर्शिता के दिशा-निर्देश के मुताबिक सभी पार्टी को अपने कोषाध्यक्ष की जानकारी देना अनिवार्य है। इसके बावजूद भी बीजेपी ने अपने कोषाध्यक्ष के बारे में कोई जिक्र नहीं किया। वहीं चुनाव आयोग ने भी इसकी सुध नहीं ली।
जबकि असल में होना ये चाहिए था कि आयोग को इस बाबत संज्ञान लेना चाहिए था और पार्टी विशेष से पूछना चाहिए कि क्यों कोषाध्यक्ष या उसकी हैसियत वाले पदधारी का विवरण उपलब्ध नहीं कराया गया है। चुनाव आयोग के दिशा निर्देशों के अनुसार एक राष्ट्रीय राजनीतिक दल को उनके कोषाध्यक्ष का नाम बताना होता है, ऐसा करना ज़रूरी होता है।
हालांकि इस मामले के सामने आने के बाद देश के विभिन्न मीडिया संस्थानों के तमाम पत्रकारों ने बीजेपी के प्रवक्ताओं से इस पर स्पष्टीकरण मांगा, लेकिन उनकी ओर से कोई जवाब नहीं दिया गया। लेकिन इसमें सबसे हैरानी की बात ये कि चुनाव आयोग ने भी इस बात को पूरी तरह से नजरंदाज किया।