सीमा पर युद्ध जैसे हालात, बॉलीवुड में मची ‘पुलवामा’ से पैसे बनाने की होड़

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सीमा पर युद्ध जैसे हालात, बॉलीवुड में मची 'पुलवामा' से पैसे बनाने की होड़

पिछले कुछ दिनों से सीमा पर तनाव है। पुलवामा आतंकी हमले का असर भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्तों पर पड़ा। इस हफ्ते का घटनाक्रम देखें तो दोनों देशों के बीच युद्ध का वातावरण लगभग तैयार हो गया। भारतीय विंग कमांडर अभिनंदन वर्तमान पाकिस्तान के कब्जे में थे और पूरा देश उनकी सकुशल वापसी की कामना कर रहा था। गुरुवार को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने उनको शांति के प्रयास के तहत भारत को सौंपने की बात की और आज वह वतन वापस लौट रहे हैं। इस घटना से सरहद पर शांति कायम होने की उम्मीदें जग गयीं है।

लेकिन, एक तरफ जब ज्यादातर लोग वायुसेना के जांबाजों को सलाम कर रहे हैं और अभिनंदन की वापसी के लिए दुआ कर रहे हैं, उसी समय कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इस मौके का फायदा उठाने में जुटे हैं। 2017 में एक फिल्म आई थी – रईस। इसमें शाहरुख खान का एक डायलॉग बहुत लोकप्रिय हुआ था – कोई भी धंधा छोटा नहीं होता और धंधे से बड़ा कोई धर्म नहीं होता। लगता है बॉलीवुड से जुड़े लोगों ने इस लाइन को काफी गंभीरता से लिया है और देश के लिए नाजुक मौकों को धंधे की तरह देख रहे हैं।


दरअसल, पिछले कुछ दिनों में घटित घटनाओं में फिल्म इंडस्ट्री को नयी फिल्मों के प्लॉट दिख रहे हैं। फिल्म बनेगी तो उसका टाइटल भी होगा। इसलिए फिल्मों के नाम अभी से फाइनल किये जाने लगे हैं। फिल्म निर्माताओं के बीच इन फिल्मों के टाइटल रजिस्टर करवाने की होड़ मची हुई है।

आपको याद दिला दें कि उड़ी हमले के बाद भारत द्वारा किये गए सैन्य कार्रवाई पर हाल ही में एक फिल्म आई थी। उड़ी- द सर्जिकल स्ट्राइक। 45 करोड़ की लागत से बनी इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर गदर मचाते हुए साढ़े तीन सौ करोड़ कमाए। क्या हीरो और क्या निर्माता, सबका भला हुआ। यहाँ से फिल्मकारों ने जनता की नब्ज पकड़ ली। उन्हें देशभक्ति फिल्में बनाकर जनभावनाओं को कमाई में बदलने का फॉर्मूला मिल गया। अब फिल्ममेकर्स इसका प्रयोग पुलवामा हमले और उसके बाद के घटनाक्रम को भुनाने में करना चाहते हैं।

टाइटल रजिस्टर कराने की होड़

हफिंगटन पोस्ट की एक खबर के मुताबिक 26 फरवरी को बालाकोट में एयरफोर्स की एयर स्ट्राइक के बाद मुंबई के अंधेरी स्थित इंडियन मोशन पिक्चर्स प्रोड्यूसर्स असोसिएशन ( IMPPA) के दफ्तर में खूब चहलपहल दिखी। इसके सामने प्रोडक्शन हाउसेज के लोगों की लाइन लगी थी। तकरीबन पांच प्रोडक्शन हाउस के लोग फिल्मों के टाइटल रजिस्टर कराने की कवायद में लगे थे। ये नाम थे सर्जिकल स्ट्राइक 2.0, पुलवामा, पुलवामा अटैक्स, बालाकोट इत्यादि।


एक अन्य ट्रेड मैगजीन की मानें तो इस दिन पुलवामा अटैक, पुलवामा: द सर्जिकल स्ट्राइक, वॉर रूम, हिंदुस्तान हमारा है, पुलवामा टेरर अटैक, द अटैक्स ऑफ पुलवामा, विद लव, फ्रॉम इंडिया और एटीएस- वन मैन शो जैसे टाइटल रजिस्टर किए गए। इनमें से कुछ टी सीरीज और अबंडेंशिया एंटरटेनमेंट ने लिए हैं।

टाइटल का धंधा

अब आप सोच रहे होंगे कि टाइटल को लेकर अभी से इतनी हायतौबा क्यों? तो मसला ये है कि टाइटल रजिस्टर कराना भी एक धंधा है। IMPPA के दफ्तर में एक फार्म पर अपने मनपसंद टाइटल को ढाई-तीन सौ रुपए में रजिस्टर करवाया जा सकता है। प्रोडक्शन हाउस टाइटल रजिस्टर करवाने के बाद उन पर फिल्में बनाते हैं। जो किसी कारण से खुद फिल्में नहीं बना पाते हैं वह इसे दूसरे प्रोडक्शन हाउसेज को मोटी रकम में बेच देते हैं।

हाल ही का एक उदाहरण लेते हैं। कुछ दिन पहले प्रीतीश नंदी और अनुराग कश्यप एक फिल्म के टाइटल को लेकर भिड़ गए थे। अनुराग कश्यप की फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर का एक गाना था ‘ओ वुमनिया’। फिल्म की रिलीज के बाद लेखक और फिल्म निर्माता प्रीतीश नंदी ने ‘वुमनिया’ नाम से एक टाइटल रजिस्टर करा लिया था। कश्यप ने जब एक नयी फिल्म का टाइटल वुमनिया रखने का सोचा तो प्रीतीश नंदी ने उनसे वो टाइटल देने के लिए 1 करोड़ रुपए मांगे। अनुराग कश्यप ने  मजबूरन अपनी फिल्म का कुछ और नाम रख लिया। तो सारी मारा-मारी पैसे कमाने की है।

ट्रेजडी की कमाई

अब सवाल यह भी उठता है कि पुलवामा हमले जैसी दुखद घटना को भुनाने वाले कौन लोग हैं? अपने आस-पास नज़रें घुमाकर देखिये तो पता चलेगा कि सिर्फ फिल्म इंडस्ट्री वाले ही नहीं बल्कि ‘पाकिस्तान मुर्दाबाद’ के पोस्टर लगाकर माल बेचने वाला और बूथ मजबूत कर सीटें गिनने वाला भी इस ट्रेजडी की कमाई खाने को लालायित है।


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