ब्रिटिश चुनाव में बोरिस जॉनसन की बड़ी जीत, जानें ब्रेक्जिट पर क्या असर पड़ेगा

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ब्रिटेन में हुए आम चुनाव में शानदार जीत के साथ बोरिस जॉनसन फिर से प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं। ब्रिटेन में 650 सीटों वाली संसद में कंजरवेटिव पार्टी ने बहुमत के लिए आवश्यक 326 सीटों का आंकड़ा पार कर लिया है। रुझान बता रहे हैं कि प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के खाते में 363 सीटें आ सकती हैं। वहीं विपक्षी लेबर पार्टी अपनी कई पारंपरिक सीटों पर भी हार गई है। इस जीत के साथ ही ब्रेग्जिट पर अनिश्चितता खत्म हो जाएगी।

पीएम बोरिस जॉनसन ने कहा है कि उन्हें अब एक नया जनादेश मिला है जिससे वह ब्रिटेन को यूरोपीय यूनियन से अलग करने वाली ब्रेक्जिट को लागू कर सकेंगे। उम्मीद की जा रही है कि ब्रिटेन की अगले महीने के अंत तक यूरोपीय संघ से अलग होने की राह आसान हो जाएगी।


बता दें कि शुक्रवार को आए एग्जिट पोल में भी जॉनसन की भारी जीत के संकेत मिले थे। बीबीसी/आईटीवी/स्काई एग्जिट पोल के अनुसार, जॉनसन की कंजर्वेटिव पार्टी ने लेबर पार्टी के गढ़ में भी सेंध लगाई है।

गौरतलब है कि जॉनसन ने कंजर्वेटिव पार्टी को बहुमत दिलाने और ब्रेग्जिट को लेकर हाउस ऑफ कॉमन्स में गतिरोध तोड़ने की कवायद के तहत मध्यावधि चुनाव की घोषणा की थी। यह तकरीबन एक सदी में ब्रिटेन के दिसंबर में हुए पहले आम चुनाव हैं और मतदाताओं ने कंपकंपाती ठंड में घरों से बाहर निकलकर वोट डाला।

क्या है ब्रेक्जिट?

ब्रेक्जिट दो शब्दों ‘ब्रिटेन+एक्जिट’ को मिलाकर बना है। ब्रेक्जिट का सीधा अर्थ है ब्रिटेन का यूरोपियन यूनियन से बाहर होना। पूरी दुनिया में इस बात को लेकर असमंजस की स्थिति थी कि ब्रिटेन अब EU में रहेगा या नहीं। लेकिन अब बोरिस जॉनसन की पार्टी को मिल रहे रुझानों से जाहिर हो रहा है कि वह ब्रिटेन को यूरोपियन यूनियन से अलग कर देंगे।


क्यों उठी ब्रेक्जिट की मांग

बता दें कि इसकी शुरुआत 2008 में हुई जब ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था मंदी की चपेट में आ गई थी। देश में महंगाई और बेरोजगारी बढ़ गई थी, जिसका समाधान निकालने और अर्थव्यवस्था को ठीक करने के प्रयास चल रहे थे। इसी बीच यूनाइटेड किंगडम इंडिपेंडेंस पार्टी (यूकेआईपी) ने 2015 में हो रहे चुनावों के दौरान यह मुद्दा उठाया कि यूरोपीय यूनियन ब्रिटेन की आर्थिक मंदी को कम करने के लिए कुछ नहीं कर रहा है। उनका कहना था कि इसकी वजह से ही ब्रिटेन की स्थिति लगातार खराब हो रही है।

उस दौरान आर्थिक मंदी को कारण मानते हुए वजह बताई गई कि ब्रिटेन को हर साल यूरोपियन यूनियन के बजट के लिए 9 अरब डॉलर देने होते हैं। इसकी वजह से ब्रिटेन में बिना रोक-टोक के लोग बसते हैं। फ्री वीजा पॉलिसी से ब्रिटेन को भारी नुकसान हो रहा है।

वहीं, इसके विपरीत ब्रिटेन के कई लोग यूरोपीय यूनियन से हो रहे फायदों का ज़िक्र करते हैं और ब्रेक्जिट के फैसले को गलत ठहराते रहे हैं। ब्रेक्जिट का विरोध करने वाले लोगों का तर्क है कि इससे अन्य यूरोपीय देशों के साथ कारोबार पर बुरा असर पड़ेगा। ब्रिटेन का सिंगल मार्केट सिस्टम खत्म हो जाएगा और ब्रिटेन की जीडीपी को बड़ा नुकसान झेलना पड़ेगा।


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