सुप्रीम कोर्ट में मायावती ने किया कई मूर्तियों का जिक्र, कहा- जनसेवा के लिए शादी नहीं की

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बीएसपी अध्यक्ष मायावती ने  उत्तर प्रदेश में अपनी प्रतिमाओं के निर्माण में ख़र्च का बचाव करते हुए सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर हलफनामे में कहा कि देश में मूर्तियां लगाने की पुरानी परंपरा रही है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में भगवान राम, शिवाजी महाराज, सरदार पटेल, जवाहर लाल नेहरू से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी तक की मूर्तियों का जिक्र किया। मायावती ने कहा कि लोगों की इच्छाओं के अनुरूप ही अपनी और पार्टी के चुनाव चिह्न हाथी की प्रतिमाओं का निर्माण कराया गया।

बीएसपी के चुनाव चिह्न हाथी और अपनी मूर्तियों पर सुप्रीम कोर्ट के कड़े तेवर से बिफरीं पार्टी सुप्रीमो मायावती ने अपनी दलील में भगवान राम से लेकर कई पूर्व प्रधानमंत्रियों तक की मूर्तियों का हवाला दिया है। बहुजन समाज पार्टी अध्यक्ष ने उल्टा सवाल दागते हुए पूछा कि अयोध्या में भगवान राम की प्रस्तावित 221 मीटर ऊंची मूर्ति का ऐसा ही विरोध क्यों नहीं हो रहा है?


नेहरू से नरसिम्हा राव तक का उल्लेख

मायावती ने न्होंने अपने वकील शैल द्विवेदी के मार्फत सर्वोच्च अदालत से कहा, ‘भारत में स्मारिकाएं बनवाना और मूर्तियां लगवाना कोई नया फलसफा नहीं है। कांग्रेस के शासन काल में केंद्र और राज्य सरकारों ने देशभर में सरकारी खजाने से जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, पी वी नरसिम्हा राव की मूर्तियां लगवाईं। लेकिन, इन मूर्तियों को लेकर न तो मीडिया और न ही याचिकाकर्ता ने कोई सवाल उठाया।’

सरदार पटेल भगवान राम, शिवाजी की मूर्तियों का जिक्र

मायावती ने इसी क्रम में गुजरात सरकार द्वारा 3,000 करोड़ रुपये की लागत से सरदार पटेल की 182 मीटर ऊंची मूर्ति और मुंबई में शिवाजी महाराज की मूर्तियों का भी जिक्र किया। साथ ही उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार भी भगवान राम की मूर्ति बनाने की योजना पर आगे बढ़ रही है। इसके लिए जमीन अधिग्रहण, डिजाइन डिवेलपमेंट और प्रॉजेक्ट रिपोर्ट आदि पर 200 करोड़ रुपये की शुरुआती लागत आएगी।

उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री ने लखनऊ में अटल बिहारी वाजपेयी, संयुक्त आंध्र प्रदेश में वाई एस राजशेखर रेड्डी की मूर्तियों के अलावा कर्नाटक के मांड्या में मां कावेरी की प्रस्तावित 350 फीट ऊंची मूर्ति, अमरावती में 155 करोड़ रुपये की एनटी रामाराव की मूर्ति और चेन्नै के मरीन बीच पर 50 करोड़ रुपये की जे. जयललिता की मूर्ति का भी जिक्र किया।


मूर्तियों के निर्माण के पीछे की मंशा आदर्शों का प्रचार

मायावती ने अपने हलफनामे में मूर्तियों के निर्माण में ख़र्च धनराशि पर स्पष्टीकरण देते हुए कहा, ‘इन मूर्तियों और स्मारकों के निर्माण के पीछे की मंशा जनता के बीच विभिन्न संतों, गुरुओं, समाज सुधारकों और नेताओं के मूल्यों एवं आदर्शों का प्रचार करना है, न कि बसपा के चुनाव चिह्न का प्रचार या खुद का महिमामंडन करना।

जनता की सेवा के लिए अविवाहित रही : मायावती

उन्होंने कहा कि आम जनता की सेवा के लिए वह अविवाहित रहीं और दलित उत्थान के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। बदले में लोगों का जो प्यार मिला और उनकी जो इच्छा थी, उसी से प्रेरित होकर राज्य विधानसभा को स्मारिकाओं एवं मूर्तियों के लिए बजटीय आवंटन करना पड़ा।

मायावती ने प्रतिमाओं के निर्माण में सार्वजनिक निधि का दुरुपयोग किये जाने का आरोप लगाने वाली याचिका को खारिज करने की मांग करते हुए इसे राजनीति से प्रेरित और कानून का घोर उल्लंघन बताया

गौरतलब है कि मायावती सरकार ने राज्य में 2007 से 2012 के दौरान कई दलित स्मारकों का निर्माण कराया था, जिनमें बसपा संस्थापक कांशीराम और बसपा के चुनाव चिह्न हाथी की प्रतिमाएं भी थीं. इन स्मारकों और प्रतिमाओं का निर्माण लखनऊ, नोएडा और राज्य के कुछ अन्य स्थानों पर  2,600 करोड़ रुपये में कराया गया।

आपकों बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने आठ फरवरी को कहा था कि प्रथम दृष्टया ऐसा लगता है कि बसपा सुप्रीमो मायावती को लखनऊ और नोएडा में अपनी और पार्टी के चुनाव चिह्न हाथी की मूर्तियों के निर्माण में ख़र्च धनराशि लौटानी चाहिए। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के नेतृत्व वाली पीठ ने कहा था कि यह अस्थाई विचार है और इस मामले पर अंतिम सुनवाई दो अप्रैल को होगी।

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