बुंदेलखंड में होलिका दहन पर अब नहीं गाते ‘कबीरी’

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 बांदा (उप्र), 20 मार्च (आईएएनएस)| उत्तर प्रदेश के हिस्से वाले बुंदेलखंड के कई जिलों में एक दशक पूर्व तक होलिका दहन के वक्त ‘कबीरी’ (भद्दी गाली देने) गाने का रिवाज था, लेकिन यह रिवाज अब पूर्ण रूप से बंद है।

  होलिका में आग लगाने के पहले कबीरी गीत की शुरुआत गांव में तैनात चौकीदार से कराई जाती रही है।


बुंदेलखंड की ज्यादातर दलित बस्तियां गांवों के किनारे बसी हैं और इन्हीं बस्तियों से लगे स्थानों पर होलिका दहन का रिवाज था। दशकों पुरानी परंपरा के अनुसार गांव में तैनात चौकीदार होलिका में आग लगाने से पूर्व ‘होरी के आस-पास बल्ला परे ..छल्ला परे.. सुन ले कबीरा’ जब तक न गाए, तब तक गांव के लंबरदार उसे होलिका में आग नहीं लगाने देते थे।

बुंदेली लंबरदार इसे अपनी भाषा में ‘कबीरी’ कहा करते थे। घरों में बनाए गए गोबर के बल्ले भी कबीरी गाने के बाद ही होलिका में डालने का रिवाज था। इस कबीरी गीत में दलित और पिछड़े वर्ग की महिलाओं के नाम ले-ले कर गालियां दी जाती थीं।

सामाजिक कार्यकर्ता सुरेश रैकवार ने इस कथित कबीरी का बड़े पैमाने पर भी विरोध किया। उन्होंने समूचे बुंदेलखंड में इसके लिए अभियान चलाया। परिणामस्वरूप पिछले एक दशक से अब यह पूर्ण रूप से बंद है।


बकौल रैकवार, “किसी तीज-त्योहार में किसी वर्ग को गाली देने का उल्लेख वेद-शास्त्रों में भी नहीं है। लेकिन, गांवों में लंबरदारों ने दबे-कुचले लोगों को उनकी औकात बताने और अपना रूतबा कायम रखने के लिए ही ऐसी कबीरी को होली के रिवाज से जोड़ दिया था।”

वह बताते हैं, “कबीरी के विरोध में चलाए गए अभियान के दौरान बांदा जिले के पारा, डभनी, बाधा, सिकलोढ़ी, तेंदुरा और सिंहपुर माफी जैसे लंबरदारू गांवों के मामले पुलिस थाने तक ले जाने पड़े और वहां गरीबों की बस्ती के पास होने वाले होलिका दहन के स्थान भी बस्ती से काफी दूर निश्चित कराए गए।”

बांदा के अपर पुलिस अधीक्षक लाल भरत कुमार पाल का कहना है, “होली का त्योहार किसी वर्ग के लोगों को गाली देने या अश्लीलता करने की इजाजत नहीं देता है। यदि कोई ऐसी हरकत करता है तो असामाजिक तत्वों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। इसके लिए थानाध्यक्षों को सतर्क रहने के निर्देश दिए गए हैं।”

(इस खबर को न्यूज्ड टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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