बुंदेलखंड में जलस्रोत बचाने को समाज और संत हो रहे लामबंद

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सतना/बांदा, 9 दिसंबर (आईएएनएस)| बुंदेलखंड कभी जलसंचय और संरक्षण के मामले में संपन्न इलाका हुआ करता था, मगर वक्त गुजरने के साथ इसकी पहचान सूखा और अकाल वाले इलाके की बन गई। अब यहां के लोग इस बदनुमा दाग से मुक्ति चाहने लगे हैं, यही कारण है कि भगवान राम से जुड़े नगर चित्रकूट में समाज और संतों ने मिलकर जल संरचनाओं को पुनर्जीवित करने का संकल्प लिया है।

बुंदेलखंड उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के 14 जिलों में फैला हुआ है। यहां कभी 10 हजार से ज्यादा तालाब हुआ करते थे, मगर अब इसके मुकाबले महज 20 फीसदी ही तालाब नजर आते हैं। यहां के लगभग हर गांव में एक तालाब हुआ करता था और उसकी पहचान ही तालाब से होती थी, अब यही गांव जलसंकट के लिए पहचाने जाने लगे हैं।


सरकार उत्तर प्रदेश की रही हो या मध्य प्रदेश की या केंद्र की, सभी ने इस इलाके की तस्वीर बदलने के लिए हजारों करोड़ रुपये मंजूर किए, मगर यह राशि पानी की खातिर पानी की तरह बहा दी गई। यही कारण है कि पानी के संकट का स्थायी निदान नहीं निकल पाया। इसकी मूल वजह समाज की भागीदार का अभाव रहा है, सरकारी मशीनरी ने आवंटित राशि को कागजी तौर पर खर्च कर दी और उस पर किसी ने नजर नहीं रखी।

पानी के संकट से हर कोई वाकिफ है और सरकारी मशीनरी के रवैए से नाराज है। इसी के चलते यहां के जागरूक लोग लामबंद हो चले हैं। बीते दिनों चित्रकूट में समाज के जागरूक लोगों और संत समाज के प्रतिनिधियों की बैठक हुई। इस बैठक में तय हुआ कि आगामी दिनों में जल संचयन वाली संरचनाओं को पुनर्जीवित किया जाए।

आने वाले दिनों में बांदा जिले के बदौसा में होने वाले ‘नदी नारी नीर सम्मेलन’ के संयोजक रामबाबू तिवारी ने कहा कि बुंदेलखंड में जल के प्राकृतिक स्रोत छोटी नदी या तालाब विलुप्त होते जा रहे हैं। इस क्षेत्र से अकाल और दुष्काल मिटाने के लिए एक जनांदोलन की जरूरत है। इस दिशा में समाज और संत मिलकर प्रयास करेंगे।


चित्रकूट के संत स्वामी मदन गोपाल दास ने कहा, “पहले घर गांवों की सभ्यता और संस्कृति की पहचान तालाबों से होती थी, अब हम इनके उस महत्व को नहीं समझते। हम दुनिया के भाग्यशाली देशों में से एक हैं, जहां इंद्रदेव की कृपा होती है, लेकिन हम इसका 15 फीसदी से ज्यादा उपयोग नहीं कर पाते, क्योंकि आज हमारे पास पानी को रोकने के साधन ही नहीं बचे हैं।”

बुंदेलखंड में तालाब, कुआं और बावड़ी बड़ी संख्या में थे, जिससे पानी का संकट इस क्षेत्र में नहीं हुआ करता था। भूजल पर्याप्त मात्रा में था क्योंकि, जल संरचनाएं हमेशा भरी हुआ करती थीं, वर्तमान में ऐसा नहीं है, इसीलिए जलस्तर कई सौ फुट नीचे खिसक गया है।

प्रो. विवेक पटेल कहते हैं, “जीवन की उत्पत्ति ही पानी से हुई है, इसके बिना जीवन की कल्पना भी संभव नहीं है, लेकिन आज दुनिया की सारी नदियां संकट में हैं। हमारे देश की कोई भी नदी ऐसी नहीं, जिसे स्वस्थ व स्वच्छ कहा जा सके। विदेशों में इस संकट को दूर करने की दिशा में कारगर कदम उठाए जा रहे हैं, पर हमारे देश में तो इस मुद्दे पर कोई गंभीरता नहीं दिखाई देती।”

उन्होंने कहा, “अब भी समय है कि सामूहिक भागीदारी व सामाजिक जागरूकता से हम नदियों की बिगड़ती सेहत को सुधारने की पहल करें, वर्ना हमारे पाप धुलने तो दूर, दो बूंद पानी को भी तरस जाएंगे।”

इस क्षेत्र के लिए यह सुखद खबर है कि समाज ही समस्या के निदान के लिए आगे आने को आतुर है। अगर गर्मी आने से पहले जल संरक्षण के कारगर प्रयास हुए, तो आगामी संकट से राहत मिल सकती है, जरूरत है कि पानी की बर्बादी को रोकने के साथ अगले साल बारिश के पानी का संचय किया जाए।

(इस खबर को न्यूज्ड टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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