जम्मू-कश्मीर: आखिर क्यों केंद्र सरकार ने जमात-ए-इस्लामी संगठन को किया बैन

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आखिर क्यों किया केंद्र सरकार ने जमात-ए-इस्लामी संगठन को बैन

14 फरवरी को पुलवामा में हुए आतंकी हमले के बाद सुरक्षा बलों ने अलगाववादी ताकतों के खिलाफ अभियान छेड़ रखा है। केंद्र सरकार ने भी आतंकवाद पर नकेल कसते हुए जम्मू-कश्मीर में काम कर रहे संगठन जमात-ए-इस्लामी पर 5 साल तक के लिए प्रतिबंध लगा दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में सुरक्षा के मुद्दे पर आयोजित एक उच्चस्तरीय बैठक में यह निर्णय लिए जाने के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इसकी अधिसूचना जारी की।

आखिर क्यों किया सरकार ने प्रतिबंधित

आतंकवादी घटनाओं के लिए जिम्मेदार माने जाने वाले संगठन जमात-ए-इस्लामी जम्मू कश्मीर में अलगाववादी विचारधारा एवं आतंकवादी मानसिकता के प्रसार के लिए प्रमुख जिम्मेदार संगठन है। इसे जमात-ए-इस्लामी जम्मू कश्मीर का मिलिटेंट विंग माना जाता है। खबरों की मानें तो जमात-ए-इस्लामी आतंकियों को ट्रेंड करना, उन्हें फंड करना, शरण देना, लॉजिस्टिक मुहैया करना आदि काम कर रहा था। हालांकि, संगठन ने हमेशा खुद को एक सामाजिक और धार्मिक संगठन बताया।


कैसे पड़ी नींव जमात-ए-इस्लामी संगठन की

माना जाता है कि जमात-ए-इस्लामी का गठन इस्लामी धर्मशास्त्री मौलाना अबुल अला मौदुदी ने किया था और यह इस्लाम की विचारधारा को लेकर काम करता था। आजादी से पहले साल 1941 में एक संगठन का गठन किया गया, जिसका नाम जमात-ए-इस्लामी था। हालांकि आजादी के बाद यह कई अलग-अलग संगठनों में बंट गया, जिसमें जमात-ए-इस्लामी पाकिस्तान और जमात-ए-इस्लामी हिंद शामिल है। जमात-ए-इस्लामी से प्रभावित होकर कई और संगठन भी बने, जिसमें जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश, कश्मीर, ब्रिटेन और अफगानिस्तान आदि प्रमुख हैं। जमात-ए-इस्लामी पार्टियां अन्य मुस्लिम समूहों के साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संबंध बनाए रखती हैं।

क्या है जमात-ए-इस्लामी (जम्मू-कश्मीर)

हिजबुल मुजाहिदीन का दाहिना हाथ माने जाने वाले इस संगठन पर पहली बार जम्मू कश्मीर सरकार ने 1975 में 2 साल के लिए बैन किया था, जबकि दूसरी बार केंद्र सरकार ने 1990 में इसे बैन किया था।

जमात-ए-इस्लामी (जम्मू-कश्मीर) की घाटी की राजनीति अहम भूमिका है और साल 1971 से इसने सक्रिय राजनीति में प्रवेश किया। पहले चुनाव में एक भी सीट हासिल नहीं करने के बाद आगे के चुनाव में अच्छा प्रदर्शन किया और जम्मू-कश्मीर की राजनीति में अहम जगह बनाई. हालांकि अब इसे जम्मू कश्मीर में अलगाववादी विचारधारा और आतंकवादी मानसिकता के प्रसार के लिए प्रमुख जिम्मेदार संगठन माना जाता है।


संगठन पर प्रतिबंध और सियासत

पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने हुर्रियत तथा जमात-ए-इस्लामी के नेताओं पर छापेमारी की वैधता पर सवाल उठाते हुए कहा कि “मनमाने कदम से राज्य में मामला जटिल ही होगा। आप एक व्यक्ति को हिरासत में रख सकते हैं लेकिन उसके विचारों को नहीं”।

हुर्रियत (एम) प्रमुख मीरवाइज उमर फारूक ने भी कहा कि “बल प्रयोग और डराने से स्थिति केवल खराब ही होगी”।

गौरतलब है कि शुक्रवार की रात (22 फरवरी) को पूरी घाटी में सुरक्षाबलों ने छापेमारी कर 150 से अधिक अलगाववादियों और पत्थरबाजों को हिरासत में लिया था। इनमें ज्यादातर जमात-ए-इस्लामी से जुड़े हुए थे, जिनमें संगठन के राज्य प्रमुख अब्दुल हमीद फयाज भी शामिल थे। संगठन ने दावा किया था कि शुक्रवार की रात पुलिस और अन्य एजेंसियों ने घाटी में कई स्थानों पर छापेमारी कर व्यापक गिरफ्तारी अभियान चलाया। इसमें उसके केंद्रीय और जिला स्तर के कई नेताओं को गिरफ्तार किया गया जिसमें अमीर (प्रमुख) डॉ. अब्दुल हमीद फयाज और वकील (प्रवक्ता) जाहिद अली शामिल थे।


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