चीन पिछले 40 सालों में कैसे बना आत्मनिर्भर

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बीजिंग, 4 जून (आईएएनएस)। कोरोना संकट के बीच अर्थव्यवस्था के सामने खड़ी हुई चुनौती को साधने के लिए मोदी सरकार ने भारत को आत्मनिर्भर बनाने की कवायद शुरू कर दी है। भारत को फिर से तेज विकास की राह पर चलने के लिए 5 चीजों इंटेंट (इरादा), इंक्लूजन (समावेश), इन्वेस्टमेंट (निवेश), इन्फ्रास्ट्रक्च र (बुनियादी संरचना) और इनोवेशन (नवाचार) का होना जरूरी बताया है। लेकिन यहीं सवाल उठता है कि आखिर चीन ने ऐसा क्या किया जो वह आत्मनिर्भर बना। चीन पिछले 40 सालों में आत्मनिर्भर बना और दुनिया की दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बन कर उभरा।

आज चीन दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक देश है। दुनिया को सुई से लेकर जहाज तक हर चीज निर्यात करता है। आज वह एक प्रमुख आर्थिक शक्ति बन चुका है। चीन ने पिछले तीन-चार दशक में जो हासिल किया है, वो काबिल-ए-तारीफ है। सबसे ज्यादा आबादी वाले देश चीन की अर्थव्यवस्था भारत की तुलना में चार गुनी बड़ी है, और कुछ ही सालों में इसके अमेरिका से भी आगे बढ़ जाने की उम्मीद है।


आखिर चीन ने ऐसा क्या किया जो वह आत्मनिर्भर बना और आर्थिक विकास के झंडे गाड़े। दरअसल, साल 1978 में चीन ने पहला कदम उठाया, जब विदेशी निवेश के लिए अपने दरवाजे खोले। चीन जिस आबादी को अपने विकास का रोड़ा मानता था, उसे अपनी शक्ति बनायी और सस्ते मजदूरों का लाभ दिखाते हुए विदेशी निवेशकों को लुभाया। चीन भांप गया था कि देश की अर्थव्यवस्था मजबूत करने के लिए विदेशी निवेश और तकनीकी मदद की जरूरत है, और यह विदेशी निवेशकों के आने से ही संभव हो सकता है।

चीनी नेता तंग श्याओ फिंग ने साल 1976 में चीनी चेयरमैन माओ त्से तुंग की मृत्यु के बाद देश की कमान संभाली। उनकी प्रबल आर्थिक सोच के साथ, चीन ने उत्पादन बढ़ाने पर खासा ध्यान दिया, साथ ही दुनिया के अन्य देशों के साथ संबंध सुधारने की शुरूआत की। उन्होंने अर्थव्यवस्था को समाजवादी नीतियों से अलग करने की शुरूआत की।

चीनी नेता तंग श्याओ फिंग ने आर्थिक सुधारों की शुरूआत के लिए स्पेशल इकोनॉमिक जोन (एसइजेड) बनाने का फैसला किया। दक्षिणी चीन के क्वांगतोंग प्रांत के शनचन शहर को पहला स्पेशल इकोनॉमिक जोन बनाने के लिए चुना गया। हांगकांग के सबसे पास होने की वजह से यह शहर प्रयोग के लिहाज से उत्तम था। आज शनचन आसमान छूती इमारतों से भरा हुआ सबसे युवा और तरक्की करने वाला शहर है। साल 1979 तक यह एक छोटा-सा गांव हुआ करता था, जहां सिर्फ मछुआरे रहा करते थे। तंग श्याओ फिंग ने यहां एसइजेड की शुरूआत की। यहां उन्होंने प्रायोगिक आधार पर कई सारी सुविधाएं दी, जो अव्वल दर्जे की थी। धीरे-धीरे शनचन में कुशल मजदूरों की भरमार होने लगी।


आज चीन का सामान लगभग हर देश में बिकता है, वो दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक है। इसी निर्यात की वजह से चीन के पास सबसे बड़ा विदेशी मुद्रा भंडार भी है। जिन्होंने भी चीन के विकास की कहानी लिखी, उन्होंने ऐसी आर्थिक नीतियां बनाईं जिससे ज्यादा से ज्यादा विदेशी निवेश हो और आय का मुख्य स्रोत निर्यात से होने वाली आमदनी हो। चीन के विकास के इस मॉडल में शनचन जैसे एसइजेड की अहम भूमिका रही है। शनचन आज चीन की अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा और सबसे मजबूत इंजन है।

शनचन की तरह चीन में कुल 6 स्पेशल इकोनॉमिक जोन हैं, जो काफी बड़े हैं। जहां भारत में सिर्फ 10 हेक्टेयर जमीन पर भी स्पेशल इकोनॉमिक जोन बनाया जा सकता है, वहीं चीन का कोई भी एसइजेड 30 हजार हेक्टेयर से छोटा नहीं है। यहां पर बिजली, सड़क, पानी आदि की कोई समस्या नहीं हैं। इसके साथ ही चीन ने अपने प्रांतों में स्पेशल डेवलपमेंट जोन बनाये। एक डेवलपमेंट जोन में एक तरह के उत्पाद बनाने वाली फैक्टरी होती है, इसलिये अगर चीन का एक प्रांत सिर्फ खिलौने बनाने के लिये मशहूर है तो दूसरा कपड़े के लिए।

अगर किसी निवेशक को चीन में निवेश करना है तो उसे वहां जाकर किसी को ढ़ूंढने की जरूरत नहीं होती। चीन सरकार में कुछ विभाग ऐसे है जो उन्हें आमंत्रित करते हैं, लगातार उनके संपर्क में रहते हैं। चीन में निर्णय भी जल्दी से लिए जाते हैं और ज्यादातर निर्णय स्थानीय स्तर पर ही ले लिये जाते हैं। चाहे मामला जमीन अधिग्रहण का हो या सड़क, बिजली, पानी का। विकास के शुरूआती दौर में चीन सरकार की नजर आर्थिक विकास पर रही। उसके सामने किसी भी तरह के विरोध को जगह नहीं दी गई।

चीन की राजनीति ने विकास के आगे विरोध और बहस को दरकिनार कर दिया। उसने आर्थिक निवेश को विचारधारा और राजनीति के चश्मे से नहीं देखा। आर्थिक सुधार के शुरूआती दिनों में चीनी नेता तंग श्याओ फिंग ने एक बड़ा कदम उठाया था, वो था भूमि सुधार का। उस समय तक जमीन किसी एक व्यक्ति या परिवार की सपंत्ति नहीं होती थी। भूमि सुधार के तहत जमीन किसानों को दी गई। जमीन एक हाथ से दी गयी और दूसरे हाथ से ले ली गयी। जैसे ही बिजली घर, बांध, स्पेशल इकोनॉमिक जोन और फैक्टरी लगाने की बात शुरू हुई तो सरकार ने बड़े पैमाने पर जमीन वापस लेकर निजी हाथों में दे दी।

चीन की प्रांतीय सरकार अपने अपने यहां छोटे और मझौले उद्योगों पर खासा ध्यान देती है। वह देखती है कि ज्यादा से ज्यादा लोन कैसे दिया जा सकता है, टैक्स में सब्सिडी कैसे दी जा सकती है। छोटे और मझोले उद्योगों को जमीन और बिजली कैसे दी जाए, ताकि बिजनेस के लिए बेहतर माहौल और सुविधा मिल सके। किसी भी विदेशी के लिए चीन में कंपनी खड़ी करना और बिजनेस शुरू करना थोड़ा आसान होता है। यही नहीं, कम्युनिस्ट देश होने के बावजूद चीन में भारत की तरह कड़े श्रम कानून नहीं हैं।

क्या भारत में ऐसे कानूनों की कल्पना की जा सकती है? चीन अगर आज दुनिया में एक आर्थिक महाशक्ति के तौर पर जाना जाता है तो उसकी वजह और भी हैं। सबसे बड़ी वजह विदेशी निवेशकों के लिए अनुकूल माहौल तैयार करना, अपने यहां कुशल मजदूर तैयार करना, ऐसी नीतियां बनाना जो कारोबार बढ़ाने में मददगार साबित हों और इन सबकी मदद से दुनिया की हर वो चीज बनाना जिसकी जरूरत लोगों को रोजमर्रा की जिंदगी में पड़ती है। यही वजह है कि दुनिया के बाजार मेड इन चाइना चीजों से भरे पड़े हैं। ‘

लगातार तीन दशक तक चीन की विकास दर 10 फीसदी से ज्यादा रही है। इसमें चीन सरकार की इन नीतियों का बड़ा हाथ रहा है। नीतियों में फेरबदल न के बराबर हुआ है। इतना ही नहीं हाई एंड टेक्नोलॉजी जिस पर कभी अमेरिका, जर्मनी और जापान जैसे देशों का कब्जा था, उसमें भी चीन ने महारत हासिल कर ली। चीन ने आर्थिक क्षेत्र में पिछले 40 सालों में जो हासिल किया है वो दुनिया के किसी भी देश ने नहीं किया।

पिछले 4 दशक के आर्थिक सुधार और खुलेपन और आधुनिकीकरण के बाद, चीन ने बुनियादी तौर से योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था से सामाजिक बाजार अर्थव्यवस्था में कदम रख लिया है। सामाजिक बाजार अर्थव्यवस्था भी लगातार मजबूत होती जा रही है। बाजार के खुलेपन का पैमाना लगातार बढ़ता जा रहा है और निवेश करने के माहौल में बराबर सुधार हो रहा है। इसके अलावा बैंकिग व्यवस्था का सुधार स्थिरता से आगे बढ़ रहा है। इन सभी ने चीनी अर्थव्यवस्था के निरंतर आगे बढ़ने की बुनियाद तैयार की है।

अब, सवाल है कि क्या चीन के विकास मॉडल से भारत ‘आत्मनिर्भर’ बनने के लिए कुछ सीख सकता है? यदि भारत चीन के साथ सहयोग करते हुए धीरे-धीरे अपने उद्योग, कारोबार, इन्वेस्टमेंट, इन्फ्रास्ट्रक्च र और इनोवेशन बढ़ाता है, तो उसका आत्मनिर्भर बनने का सपना दूर नहीं है।

वैसे भी वैश्वीकरण के युग में, सभी देश संसाधनों और आर्थिक अवसरों का दोहन करने के लिए निर्धारित प्रयासों के साथ एक दूसरे के साथ गहराई से जुड़े हैं। इस समय भारत को अपनी ‘मेक इन इंडिया’ मुहिम को मजबूत बनाने के लिए बुनियादी संरचना, तकनीक और कच्चे माल की आवश्यकता है, जिसके लिए कहीं न कहीं चीन और अन्य देशों पर निर्भर रहने की जरूरत है। भारत सहयोग के रास्ते से ही अपनी मंजिल पर पहुंच सकता है।

(लेखक : अखिल पाराशर, चाइना मीडिया ग्रुप में पत्रकार हैं। साभार- चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग )

–आईएएनएस

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