पुण्यतिथि विशेष : गीतकार नहीं बल्कि पार्श्वगायक बनना चाहते थे आनंद बख्शी

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पुण्यतिथि विशेष : गीतकार नहीं बल्कि पार्श्वगायक बनना चाहते थे आनंद बख्शी

भारतीय सिनेमा के इतिहास में आनंद बख्शी का नाम गीतकार के रूप में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा हुआ है। अपने सदाबहार गीतों से सबको दीवाना बनाने वाले बालीवुड के मशहूर गीतकार आनंद बख्शी ने लगभग चार दशक तक श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया। लेकिन शायद ही लोगों को पता होगा कि वह गीतकार नहीं बल्कि पार्श्वगायक बनना चाहते थे।

आनंद बख्शी का जन्म 21 जुलाई 1930 को रावलपिंडी में हुआ था।  बॉलीवुड को बहुत ही रोमांटिक और शानदार गाने देने वाले आनंद बख्शी ने आज ही के दिन साल 2002 में इस दुनिया को अलविदा कह दिया। आनंद बॉलीवुड में बतौर गीतकार के रूप में दमदार पहचान बना चुके थे। आनंद बख्शी बचपन से ही फिल्मों में काम करके शोहरत की बुंलदियों तक पहुंचने का सपना देखा करते थे लेकिन लोगों के मजाक उड़ाने के डर से उन्होंने अपनी यह मंशा कभी जाहिर नहीं की थी। वह फिल्मी दुनिया में गायक के रूप में अपनी पहचान बनाना चाहते थे।


टेलीफोन ऑपरेटर की नौकरी और मायानगरी की चाह

आनंद बख्शी के पिता रावलपिंडी में बैंक मैनेजर थे। अपनी जवानी में आनंद ने सेना में टेलीफोन ऑपरेटर की नौकरी की। बम्बई और सिनेमा अभी उनसे बहुत दूर थे। लेकिन दिल में चाहत जरूर थी। जब देश का बंटवारा हुआ तो आनंद बक्शी का परिवार शरणार्थी बनकर हिन्दुस्तान आ गया। यहां जब मायानगरी में कुछ ना हुआ तो आनंद ने फिर से सेना जॉइन कर ली। उन्होंने 1956 में सेना की नौकरी छोड़ दी और फिल्मों में बतौर गीतकार काम करने आ गए।

उन्हें सिनेमा में पहला ब्रेक भगवान दादा ने फिल्म ‘भला आदमी’ में दिया। लेकिन उन्हें पहली बड़ी कामयाबी मिली फिल्म ‘जब जब फूल खिले’ से, जिसमें उनका लिखा ‘परदेसियों से ना अंखियां मिलाना’ गाना हिट हो गया। खबरों के मुताबिक इसी फिल्म ने कपूर खानदान के सुपुत्र शशि कपूर के डूबते करियर को चमकाया था। आनंद बक्शी के करियर का शुरुआती माइलस्टोन बनी ‘आराधना’, ‘अमर प्रेम’ और ‘कटी पतंग’ जैसी फिल्में, जिनसे राजेश खन्ना हिट हो गए और भारतीय सिनेमा के पहले सुपरस्टार बने।

4000 से ज़्यादा गीत लिखे हैं आनंद बख्शी ने

आनंद बख्शी का नाम 1967 की फिल्म ‘मिलान’ के बाद काफी फेमस हो गया और उसके बाद एक से बढ़कर एक प्रोजेक्ट आनंद को मिलने लगे। उसके बाद आनंद बख्शी ने एक से बढ़कर एक फिल्में ‘अमर अकबर एंथनी’, ‘एक दूजे के लिए’ ‘अमर प्रेम’ और ‘शोले’ जैसी फिल्में के लिए भी लिखा। आनंद बख्शी ने राज कपूर की फिल्म ‘बॉबी’, सुभाष घई की ‘ताल’ और अपने दोस्त यश चोपड़ा की फिल्म ‘दिल तो पागल है’ के लिए भी गीत लिखे। साहिर लुधियानवी के अलावा आनंद बख्शी ही एक ऐसे गीतकार थे जो अपने गानों की रिकॉर्डिंग के दौरान मौजूद रहते थे। साथ ही आनंद बख्शी ने 1973 की फिल्म ‘मोम की गुड़िया’ में लता मंगेशकर के साथ गाना भी गाया है।


अपने पांच दशकों में फैले फिल्मी करियर में बख्शी ने 4000 से ज़्यादा गीत लिखे, लेकिन कभी किसी डेडलाइन को नहीं तोड़ा। उनका कहना था कि ये अनुशासन उन्हें सालों की फौज की नौकरी ने सिखाया है। आनंद बख्शी को चार फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिले।

आज उनकी पुण्यतिथि पर सुनते हैं आनंद बख्शी के लिखे कुछ मशहूर गीत

परदेसियों से ना अखियां मिलाना (फिल्म: जब जब फूल खिले)

बिंदिया चमकेगी (फिल्म: दो रास्ते)

दम मारो दम (फिल्म: हरे कृष्णा हरे राम)

मैं तुलसी तेरे आंगन की (फिल्म: मैं तुलसी तेरे आंगन की)

दो लफ्जों की है (फिल्म: द ग्रेट गैम्बलर)

तू चीज बड़ी है मस्त मस्त (फिल्म: मोहरा)

हमको तुमसे हो गया है प्यार क्या करें (फिल्म: अमर अकबर एंथनी)

ताल से ताल मिला (फिल्म: ताल)

तुझे देखा तो ये जाना सनम (फिल्म: दिलवाले दुल्हनियां ले जाएंगे)

उड़ जा काले कावां (फिल्म : गदर)

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