Coronavirus in Bihar: कोरोना वायरस ने यूंं तो पूरी दुनिया में कहर बरपाया हुआ है। लेकिन भारत में कोरोना के तेजी से बढ़ते प्रकोप ने देश की बेहाल स्वास्थ्य सुविधाओं की पोल भी खोल दी है। बीबीसी में नीरज प्रियदर्शी की छपी इस रिपोर्ट पर गौर करेंगे तो आपको मालूम हो जाएगा कि शुरू में बिहार सरकार कोरोना संक्रमण की रोकथाम को लेकर जिस तरह के दावे कर रही थी आखिर वो क्यों खोखले साबित हुए।
बिहार के समस्तीपुर ज़िले के सिंधिया प्रखंड के ग्राम पंचायत बारी में स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में पिछले 20 सालों से ना तो कोई चिकित्सक है और ना ही कोई कर्मचारी। पंचायत के लोग बताते हैं कि साल 2000 तक वहां चिकित्सक भी थे और कर्मचारी भी। लेकिन उसके बाद फिर कभी कोई नहीं आया।
कोरोना वायरस महामारी की स्थिति में पंचायत के लोगों ने स्थानीय अधिकारियों से कई बार इसकी शिकायत की। हर बार जवाब मिलता है कि यहां कोई पदस्थापना ही नहीं है। बारी पंचायत के शुभम झा और शशिभूषण झा ने स्वास्थ्य केंद्र पर डॉक्टरों की ड्यूटी लगाने की माँग करते हुए समस्तीपुर के डीएम को आवेदन भी दिया। मगर अब तक वहां डॉक्टरों की तैनाती नहीं हो सकी है।
पूरे बिहार का हाल बेहाल
डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ़ नहीं होने की यह समस्या केवल समस्तीपुर के एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की नहीं है। स्टेट हेल्थ सोसाइटी, बिहार के आँकडों की मानें तो राज्य के 534 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में से एक भी चालू हालत में नहीं है। रेफ़रल अस्पतालों और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या 466 है, मगर कार्यरत सिर्फ़ 67 हैं।
अनुमंडल अस्पतालों और सदर अथवा ज़िला अस्पतालों का भी हाल बुरी ही है। राज्य के 13 मेडिकल कॉलेजों में से भी केवल 10 ही फंक्शनल हैं। साल 2011 की जनगणना के हिसाब से देखें तो स्वास्थ्य केंद्रों और अस्पतालों की ज़रूरत लगभग दोगुनी ज़्यादा हैं। लेकिन यहां ज़रूरतों की बात करना भी बेमानी लगता है! जो केंद्र और अस्पताल पहले से हैं वे भी नहीं चल पा रहे हैं क्योंकि डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ़ की 60 फ़ीसद से भी अधिक कमी है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के आँकड़ों के मुताबिक़ प्रति एक हज़ार की आबादी पर एक डॉक्टर होना चाहिए। वहीं इंडियन मेडिकल काउंसिल भी कहता है कि 1681 लोगों के लिए एक डॉक्टर की आवश्यकता है। इस लिहाज़ से 2011 की जनगणना के मुताबिक़ बिहार में एक लाख से अधिक डॉक्टर होने चाहिए।
लेकिन नेशनल हेल्थ प्रोफ़ाइल के आँकड़ों के अनुसार बिहार में 28 हज़ार 391 लोगों पर सिर्फ़ एक डॉक्टर हैं। राज्य में डॉक्टरों के जो स्वीकृत पद हैं वे राज्य के अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों के आधार पर बनाए गए हैं। ग़ौरतलब है कि अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों की संख्या आधी से भी कम है।
राज्य में कोरोना से बिगड़ते हालात अब किसी से छिपे नहीं है। इसलिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को आनन-फानन में कोविड टेस्ट संख्या बढ़ाने और कोविड अस्पतालों में बेहतर सुविधाओं के लिए कई फ़रमान जारी करने पड़े हैं लेकिन ज़मीन पर स्थिति उन फ़रमानों से अलग दिखती है।
बिहार में सबसे ज़्यादा डाक्टरों की मौत
जब इस मुश्किल दौर में देश को डॉक्टर्स की सबसे ज्यादा जरूरत है तब भी राज्य के अंदर डॉक्टरों की भारी कमी है। ऊपर से बिहार में डाक्टरों में संक्रमण के मामले सबसे ज़्यादा आ रहे हैं। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के प्रदेश सचिव डॉ सुनील कुमार ने बीबीसी को बताया कि यहां कोरोना वायरस के कारण डॉक्टरों की मौत का प्रतिशत भी देश के बाक़ी राज्यों की तुलना में अधिक है।
अब तक 250 से अधिक डॉक्टर कोरोना संक्रमित हो चुके हैं। डॉ सुनील कहते हैं, “बिहार में कोरोना वायरस की चपेट में आकर डॉक्टरों की मौत का प्रतिशत 4.42 है। जबकि राष्ट्रीय औसत 0.5 फ़ीसद है। सबसे बुरी तरह प्रभावित राज्य महाराष्ट्र में डॉक्टरों की मौत का प्रतिशत 0.15 है। दिल्ली में 0.3 फ़ीसद है। कर्नाटक में 0.6 फ़ीसद, आंध्र प्रदेश में 0.7 फ़ीसद और तामिलनाडु में 0.1 फ़ीसद है।”