Delhi Violence: दंगा भड़कने के 6 खुफिया इनपुट होने के बावजूद हाथ पर हाथ धरे बैठी रही पुलिस, नाकामी पर उठ रहे सवाल

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Delhi Violence: दंगा भड़कने के 6 खुफिया इनपुट होने के बावजूद हाथ पर हाथ धरे बैठी रही पुलिस, नाकामी पर उठ रहे सवाल

दिल्ली के उत्तर-पूर्वी इलाके में नागरिकता संशोधन कानून के विरोध प्रदर्शनों के हिंसक होने और दंगा भड़कने से 39 लोगों की मौतों के बाद दिल्ली पुलिस सवालों के घेरे में है। खुद को हाईटेक बताने वाली दिल्ली पुलिस जब दंगे भड़के तो मूकदर्शक बन कर तमाशा देखती रही। दिल्ली हिंसा को रोकने में पुलिस की नाकामी और चुप्पी पर लगातार सवाल उठ रहे हैं। पीड़ितों का कहना है कि पुलिस लगातार तीन दिन तक दंगा प्रभावित क्षेत्रों में नहीं आई और उपद्रवी जान-माल को आग लगाते रहे।

दिल्ली पुलिस को मिले थे छह इंटेलिजेंस अलर्ट

सूत्रों का कहना है कि रविवार को दिल्ली पुलिस को हिंसा भड़कने की संभावना वाले कम से कम छह इंटेलिजेंस अलर्ट भेजे गए थे। भाजपा नेता कपिल मिश्रा द्वारा पूर्वोत्तर दिल्ली के मौजपुर में एक सभा बुलाए जाने की घोषणा के बाद पुलिस बल की तैनाती बढ़ाने की बात कही गई थी। उसी शाम झड़पें शुरू हुईं और अगले दिन पूरी तरह से दंगों में बदल गईं और पुलिस समय पर कार्रवाई करने में विफल रही।


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रिपोर्ट के मुताबिक, विशेष शाखा और खुफिया विंग ने वायरलेस रेडियो संदेशों के जरिये पूर्वोत्तर जिले के आला पुलिस अधिकारियों को कई अलर्ट भेजे थे। पुलिस को तैनाती और सतर्कता बढ़ाने के लिए पहला अलर्ट तब भेजा गया था जब कपिल मिश्रा ने दोपहर 1.22 बजे एक ट्वीट पोस्ट कर नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के समर्थन में लोगों को 3 बजे मौजपुर चौक पर इकट्ठा होने के लिए कहा था।

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मौजपुर में दोनों गुटों के टकराव की आशंका को देखते हुए खुफिया विभाग ने स्थानीय पुलिस को क्षेत्र में सतर्कता बढ़ाने की सलाह दी थी। सूत्रों ने कहा कि इलाके में पथराव शुरू होने और कॉलोनियों में भीड़ इकट्ठा होने के बाद और भी अलर्ट भेजे गए। हालांकि, दिल्ली पुलिस ने इस बात से इंकार किया है कि उसने इन अलर्ट्स को ध्यान में रखते हुए एक्शन नहीं लिया। एक अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर टाइम्स ऑफ़ इंडिया से कहा कि पुलिस ने अलर्ट मिलने के बाद सभी संभव उपाय किए।

हिंसा का तांडव चल रहा था और पुलिस रही नदारद

वहीं मंगलवार को हुई हिंसा के दौरान उत्तर-पूर्वी दिल्ली के एक इलाके में डूयूटी पर तैनात एक अधिकारी का कहना है कि मामला लगातार बिगड़ रहा था और पुलिस हाथ बांधे बैठी रही। एक रिपोर्ट के मुताबिक, मौके पर भीड़ उग्र होती जा रही थी। दोनों ही पक्षों से पत्थरबाजी लगातार बढ़ती जा रही थी। कई वाहनों को आग लगाई जा चुकी थी। लेकिन हिंसा पीड़ितों का आरोप है कि उस वक्त पुलिस मौके से नदारद थी । जब लोगों को पत्थर मारे जा रहे थे, उनके साथ मारपीट की जा रही थी, दुकान, वाहन और घर जलाए जा रहे थे, तब कोई उनकी सुनने वाला नहीं था।


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हैरानी की बात ये है कि ये इलाके दिल्ली पुलिस के मुख्यालय से कुछ किलोमीटर की दूरी पर ही स्थित हैं। अधिकतर पीड़ितों का यही कहना था कि जब यहां हिंसा का माहौल था, तब पुलिस गायब थी। ये भी आरोप हैं कि पुलिस अपने आला अफसरों के आर्डर का इंतजार कर रही थी। सोमवार की शाम जब हिंसा भड़की तो दिल्‍ली पुलिस कंट्रोल रूम में हर मिनट में लगभग 4 कॉल आए। ये सभी कॉल अपने-अपने इलाकों में सांप्रदायिक हिंसा की रिर्पोट करने और मदद के लिए किए गए थे। अधिकारी के मुताबिक अगर फायरिंग की इजाजत मिल गई होती, तो दंगों में इतने लोगों की जान नहीं जाती। अधिकारियों ने अंतिम समय तक स्थिति को संभालने के लिए शांतिपूर्ण तरीकों के इस्तेमाल पर ही जोर दिया।

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सूत्रों का कहना है कि पुलिस अधिकारियों ने वरिष्ठ अधिकारियों को स्थिति बिगड़ने की सूचना दी थी और हालात पर काबू पाने के लिए फायरिंग करने की इजाजत मांगी थी, लेकिन अधिकारियों ने भीड़ पर फायरिंग करने का आदेश देने से साफ मना कर दिया। जानकारी के मुताबिक दिल्ली पुलिस को हालात बिगड़ने का अंदेशा तो था। लेकिन स्थिति इस हद तक बिगड़ सकती है, यह भांपने में उच्च अधिकारी पूरी तरह नाकाम रहे। अगर इसी समय कुछ विशेष लोगों को काबू में कर लिया गया होता तो दिल्ली में दंगों की आग नहीं भड़कती और कई लोगों की जान बच जाती।


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