दंगे में वक्त पर इलाज नहीं मिलने से गई गर्भवती की जान, लोगों ने 28 हजार चंदा कर शव को बिहार भेजा

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दंगे में वक्त पर इलाज नहीं मिलने से गई गर्भवती की जान, लोगों ने 28 हजार चंदा कर शव को बिहार भेजा

दिल्ली में दंगों की आग अब भले ही थम गई हो, लेकिन दर्द भरी कहानियों का कोई अंत नहीं है। हालात सामान्य होने के बाद भयावह कहानियां सामने आ रही हैं। हिंसा के दौरान जहां झड़पों में लोगों की जान गई वहीं वक्त पर इलाज नहीं मिलने के कारण भी कई लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। कच्ची खजूरी के सी ब्लॉक में मदीना मस्जिद के पास रहने वाले बुनकर नौशाद आलम की पत्नी परमिला बेगम (30) की मौत दंगों के दौरान समय पर अस्पताल नहीं पहुंच पाने के कारण हो गई।

बिहार के किशनगंज जिले के नौशाद पिछले एक साल से अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ खजूरी इलाके में रहकर रेशम के धागों से बनने वाले सजावटी सामान बनाने का काम करते हैं। उनकी पत्नी प्रेग्नेंट थीं। नौशाद ने बताया कि गुरुवार शाम जब खजूरी इलाके में उनके घर के पास ही दंगा-फसाद चल रहा था, उसी दौरान शाम 7:30 बजे के करीब उनकी पत्नी को लेबर पेन शुरू हो गया।


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उन्होंने बताया कि 7:30 बजे से लेकर सवा 8 बजे तक वह उन्होंने कई बार एंबुलेंस बुलाने के लिए कॉल की, लेकिन एंबुलेंस वाले उन्हें अभी आ रहे हैं, अभी पहुंच रहे हैं, कहकर टालते रहे। इस बीच उनकी पत्नी की हालत बिगड़ने लगी, तो उन्होंने मदद के लिए पास में रहने वाली एक दाई को बुला लिया और फिर उनकी पत्नी ने घर में ही एक बच्ची को जन्म दे दिया, लेकिन बच्ची की नाल परमिला बेगम के पेट में ही फंसी रह गई और उन्हें तेज दर्द होने लगा। हालत बिगड़ते देख नौशाद अपने कुछ रिश्तेदारों को साथ लेकर बाहर निकले और किसी तरह एक ऑटो वाले को मनाकर लाए। इसके बाद परमिला बेगम को ऑटो में डालकर घरवाले उन्हें लोकनायक अस्पताल लेकर आए।

नौशाद का आरोप है कि अस्पताल पहुंचने के बाद 15-20 मिनट तक तो डॉक्टरों ने मरीज को हाथ ही नहीं लगाया और इन्हें इधर-उधर भेजते रहे। नौशाद बताते हैं कि वे कभी एक तो कभी दूसरी खिड़की और डॉक्टर के पास चक्कर काट रहे थे, लेकिन उनकी कोई सुनवाई नहीं हुई। रात एक बजे जब एक महिला डॉक्टर ने देखा तो उन्होंने प्रमिला को मृत घोषित कर दिया।


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पत्नी की मौत के बाद हताश नौशाद ने परिजनों से बात कर शव को बिहार ले जाने का फैसला किया। लाश को 1400 किलोमीटर दूर किशनगंज ले जाने के लिए उन्हें फ्रीजर वाली एंबुलेंस की जरूरत थी। जब एंबुलेंस आई, तो ड्राइवर ने बताया कि लाश ले जाने के 28 हजार रुपये लगेंगे। यह सुनकर नौशाद चिंता में पड़ गए। मजदूरी करने वाले नौशाद के पास इतने पैसे नहीं थे। बृहस्पतिवार को पोस्टमार्टम के दौरान जब नौशाद ने अपनी आर्थिक स्थिति खराब होने का हवाला दिया तो कई लोगों ने उनकी मदद की और दिल्ली सरकार ने घर जाने के लिए एंबुलेंस उपलब्ध कराई।


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