आज पुरे देश में ‘देवशयनी एकादशी’ (Devshayani Ekadashi) मनाई जा रही है। आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में गहन निद्रा में लीन हो जाते हैं। इसके साथ ही चातुर्मास शुरू हो जाता है और चार महीनों तक कोई भी शुभ कार्य नहीं होता।
हिंदू धर्म में इस एकादशी को काफी अहम माना जाता है। इसे ‘हरिशयनी एकादशी’ (HariShayani Ekadashi) और ‘आषाढ़ी एकादशी’ (Ashadhi Ekadashi) भी कहा जाता है। मान्यता के अनुसार एकादशी शुरू शुरू होते ही भगवान विष्णु क्षीरसागर स्थित शेषशय्या पर गहन निद्रा में लीन हो जाते हैं और लोगों के लिए चातुर्मास शुरू हो जाता है।
क्या होता है चातुर्मास?
हिंदू मान्यता के अनुसार, चातुर्मास वह समय होता है जब संत समाज लोगों को दिशानिर्देश देता है देवशयनी एकदशी के साथ ही यह समय शुरू हो जाता है इसके शुरू होते ही शुभ कार्यों पर रोक लग जाती है इस दौरान विवाह, नवीन गृहप्रवेश आदि जैसे मंगल कार्य नहीं होते हैं
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देवशयनी एकदशी से पहले भड़ली नवमी होती है, जो 10 जुलाई को थी इस एकादशी से पहले यह आखिरी शुभ मुहूर्त होता है, जिसके बाद चार मास तक कोई मंगल कार्य नहीं होता। कार्तिक शुक्लपक्ष के साथ यह प्रतिबन्ध हट जाता है। कार्तिक शुक्लपक्ष से पहले विवाह का यह आखिरी सुबह मुहूर्त होता है
चातुर्मास में क्यों नहीं होते मंगल कार्य?
हिंदू धर्म में इस समय को शुभ नहीं बताया गया है इस समय पूरी तरह भगवान की भक्ति में लीन रहने की सलाह दी जाती है, क्योंकि इस दौरान भक्ति करने से स्वयं के भीतर एक दिव्य शक्ति का आभास होता है इस दौरान नकारात्मक शक्तियों का पराभव ज्यादा होता है, इसलिए मंगल कार्य नहीं किये जाते हैं
विज्ञान की बात करें, तो चातुर्मास के दौरान बदलते मौसम के कारण शरीर में रोग प्रतिरोधक शक्ति कम हो जाती है इसे संतुलित करने के लिए व्रत, पूजा-पाठ करना चाहिए इस दौरान ज्यादा बारिश के कारण हवा में नमी बढ़ जाती है. जिससे बैक्टेरिया, कीड़े-मकोड़े, जीव जंतु आदि की संख्या बढ़ जाती है इनसे बचने के लिए खान-पान में परहेज जरूरी होता है