डिजिटल इकोसिस्टम के गवर्नेस के लिए कानूनी ढांचा जरूरी : रविशंकर प्रसाद

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नई दिल्ली, 25 नवंबर (आईएएनएस)। केंद्रीय कानून एवं न्याय मंत्री तथा संचार, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि कोविड-19 महामारी के दौरान और उसके बाद कानूनी शिक्षा का भविष्य प्रौद्योगिकी संबंधित कानूनों, डेटा संरक्षण, साइबर अपराधों और नैतिकता पर केंद्रित होना चाहिए। भारत को अंतर्राष्ट्रीय कानूनी प्रणाली में एक अग्रणी वैश्विक भूमिका निभानी चाहिए।

उन्होंने यह बात लॉ स्कूलों और कानूनी शिक्षा के भविष्य की पुनर्कल्पना और रूपांतरण : कोविड-19 के दौरान और इसके परे विचारों का संगम विषय पर वैश्विक शैक्षणिक सम्मेलन के लिए अपने उद्घाटन भाषण में यह बात कही।


केंद्रीय मंत्री ने कहा कि कानून शिक्षा के क्षेत्र में प्रौद्योगिकी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाने जा रही है और भारत को अंतर्राष्ट्रीय कानूनी प्रणाली में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र को गवर्नेस के लिए एक कानूनी ढांचे की आवश्यकता है, जिस पर भारत के कानून के युवा छात्रों को सफल कैरियर के लिए अवश्य अमल करना चाहिए।

रविशंकर प्रसाद ने कहा, महामारी के दौरान, डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र ने ही दुनिया को एक साथ रखा था। डिजिटल कनेक्टिविटी को सरल और प्रभावी बनाने के लिए चाहे यह इंटरनेट, आईटी सक्षम प्लेटफार्मो या मोबाइल फोन हो, हम इन डिजिटल सिस्टम के माध्यम से भारत में कार्य करना जारी रखते हैं। वैश्विक महामारी ने लोगों के जीवन, स्वास्थ्य और सुरक्षा के साथ तबाही मचाई है, लेकिन इसने हमें बहुत अवसर भी दिए हैं। इसने कई चुनौतियां पैदा की हैं, जिनके लिए कानूनी समाधान की आवश्यकता है।

उन्होंने कहा, हालांकि यह परिवर्तन डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र में महत्वपूर्ण है, लेकिन कानूनी शिक्षा का भविष्य प्रौद्योगिकी पर केंद्रित होना चाहिए। प्रौद्योगिकी अवसर पैदा करती है, लेकिन यह विशेष रूप से विनियमन के लिए चुनौतियां भी पेश करती है। लॉ स्कूलों को छात्रों को एक सफल कैरियर के लिए तैयार करने के लिए प्रौद्योगिकी से संबंधित कानूनी शिक्षा को अपनाने की आवश्यकता है। यह बहुत महत्वपूर्ण है कि इन चुनौतियों को लॉ स्कूलों में पढ़ाया जाना चाहिए। भारतीय छात्र किसी से पीछे नहीं हैं, लेकिन उन्हें वैश्विक प्लेटफॉर्मो पर उचित प्रदर्शन की आवश्यकता है। प्रौद्योगिकी से संबंधित कानूनों को समझना एक बहुत महत्वपूर्ण पहलू है, जिस पर लॉ स्कूलों को ध्यान केंद्रित करना चाहिए।


प्रसाद ने कहा, भारत में विशेष रूप से कल्याणकारी कार्यो के लिए प्रौद्योगिकी का व्यापक रूप से उपयोग किया गया है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) आदर्श बन गया है और हमें स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि और कई चीजों के लिए इसका उपयोग करने की आवश्यकता है, लेकिन एआई की सीमा क्या होनी चाहिए? क्या मानव नैतिकता की भूमिका होनी चाहिए? एआई के इस्तेमाल की कानूनी संरचना क्या होनी चाहिए? किसी भी डिजिटल-कानूनी प्रणाली को नैतिक मूल्यों के आधार पर मानव व्यवहार के बुनियादी समय-परीक्षणित गुणों से पूरी तरह से अनजान नहीं होना चाहिए। डेटा अर्थव्यवस्था अन्य समस्याओं को भी पैदा करेगी, जैसे- डेटा अर्थव्यवस्था और कराधान, साइबर-अपराध और अधिकार क्षेत्र, साइबर बुलिंग, दुष्ट तत्व, डेटा की हैकिंग आदि।

उन्होंने कहा कि इंटरनेट एक वैश्विक मंच है, लेकिन इसे स्थानीय विचारों, संस्कृति और संवेदनशीलता से जुड़ना होगा। इन क्षेत्रों में कानून की संरचना क्या होनी चाहिए? भारत एक वैश्विक शक्ति के रूप में उभर रहा है, इसलिए भारत को अंतर्राष्ट्रीय कानूनी प्रणाली में भी अपनी नियत भूमिका निभाने के लिए दमदार होने की आवश्यकता है।

वहीं, ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के संस्थापक कुलपति प्रो. (डॉ.) सी. राज कुमार ने कहा, कोविड-19 के फैलने के लगभग 10 महीने बाद भी, दुर्भाग्य से हम अभी भी महामारी के बीच में हैं, और विश्व स्तर पर कानूनी शिक्षा के भविष्य के अनुमानों के बारे में असंख्य सवालों से घिरे हैं। महामारी जितना अधिक हमारे उत्साह को हतोत्साहित कर रही है, इसने उतना ही हमारे भीतर एक उत्साहपूर्ण भावना को भी जगाया है, हमें रचनात्मक समाधान और नए विचारों को खोजने के लिए प्रेरित कर रही है, जिससे आगे बढ़ने का मार्ग प्रशस्त होगा। अतीत की सुख-सुविधाओं और नए अनुभवों की कल्पना करने और मौलिक विचारों को अपनाने के लिए लॉ स्कूलों की जरूरत है।

उन्होंने कहा कि विचारों के प्रति इस तरह का क्रांतिकारी खुलापन और चुनौतियों पर तेजी से प्रतिक्रिया कानूनी शिक्षा को संकट से उबारने में मदद कर सकती है। यह संदेह से परे है कि यह समय साहसी और असाधारण प्रयोगों का आह्वान करता है, और इस सम्मेलन का लक्ष्य लॉ स्कूल के डीनों, सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों, लॉ फर्म पार्टनर्स, वरिष्ठ अधिवक्ताओं, वकीलों, लॉ के प्रोफेसरों सहित दुनियाभर के कानूनी बिरादरी के शुभचिंतकों को एक साथ लाकर विश्व स्तर पर इस विचार प्रक्रिया को लागू करना है।

भारत की प्रमुख लॉ फर्मो में से एक- सिरिल अमरचंद मंगलदास के मैनेजिंग पार्टनर सिरिल श्रॉफ ने अपने मुख्य भाषण में कहा, यह सच है कि महामारी ने दुनिया और कानूनी पेशे को हमेशा के लिए बदल दिया है। जो नहीं बदला है, वह है न्याय की तलाश और सभी सभ्य समाजों और राष्ट्रों के लिए जल्द न्याय देने की जरूरत। मानवता को मानवीय लक्ष्य की तलाश करने में अभी भी न्याय और पेशेवरों की आवश्यकता है। कानून का नियम बुनियादी मानव स्थिति के साथ विशेष रूप से मुक्त समाजों में जुड़ा हुआ है।

उन्होंने कहा कि आधुनिक कानूनी शिक्षा में कानूनी ज्ञान के साथ भावनात्मक ज्ञान और कौशल के साथ व्यक्तिगत प्रभावशीलता और आर्थिक उद्यमशीलता की मानसिकता शामिल होनी चाहिए। कानूनी शिक्षा में टेक्नोलॉजी, सोशल मीडिया स्किल्स, डेटा एनालिटिक्स, डेटा सिक्योरिटी और डिजाइन थिंकिंग पर भी ध्यान देना चाहिए। कानून शिक्षा का पूर्व-महामारी संबंधी मॉडल अब डिफॉल्ट स्थिति नहीं है, लेकिन एक हाइब्रिड प्रणाली में विकसित होगा, जहां संकाय और छात्र एक सीमाहीन समुदाय बन जाएंगे।

सिरिल श्रॉफ ने कहा कि पिछले कुछ महीनों में कोविड-19 महामारी के कारण पैदा हुए व्यवधानों को कम करने के लिए दुनियाभर के लॉ स्कूलों को तेजी से कोशिश और कार्रवाई करनी पड़ी है। कई चुनौतियों का सामना करने वाले एजुकेशनल लीडर्स को एक साथ अपने सभी हितधारकों की जरूरतों को पूरा करना पड़ा और इस अनोखे संकट के दौरान उन्होंने भारी मानवता दिखाई। इसलिए, इस सम्मेलन ने कानूनी शिक्षा के भविष्य की पुनर्कल्पना करने के लिए 6 महाद्वीपों और 35 से अधिक देशों के करीब 170 विचारकों को 30 से अधिक विषयगत सत्रों और दो मुख्य संबोधनों के लिए एक साथ एक मंच पर लाया।

सम्मेलन में दुनियाभर के और भारत के अग्रणी लॉ स्कूलों के वरिष्ठ नेतृत्व के विभिन्न विचारों को एक मंच पर एक साथ साझा किया जाएगा, जिनमें शामिल होंगे – स्टैनफोर्ड लॉ स्कूल, कॉर्नेल लॉ स्कूल, मेलबर्न लॉ स्कूल, नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर (एनयूएस) फैकल्टी ऑफ लॉ, यूएनएसडब्ल्यू लॉ स्कूल, जॉर्ज टाउन लॉ स्कूल, फैकल्टी ऑफ लॉ-द चाइनीज यूनिवर्सिटी ऑफ हांगकांग, फैकल्टी ऑफ लॉ-द यूनिवर्सिटी ऑफ हांगकांग, स्कूल ऑफ लॉ-यूनिवर्सिटी ऑफ क्वींसलैंड, डरहम लॉ स्कूल, ऑकलैंड लॉ स्कूल, स्कूल ऑफ लॉ-सिटी यूनिवर्सिटी ऑफ हांगकांग, स्कूल ऑफ लॉ- ट्रिनिटी कॉलेज डबलिन, फैकल्टी ऑफ लॉ-अल्बर्ट-लुडविग्स-यूनिवर्सिटेट फ्रीबर्ग (एएलयूएफ), स्कूल ऑफ लॉ-यूनिवर्सिटी कॉलेज डबलिन, फैकल्टी ऑफ लॉ-पोंटिफिसिया यूनिवर्सिडेड जवेरियाना, बर्मिघम लॉ स्कूल, फैकल्टी ऑफ लॉ-यूनिवर्सिडेड एक्सटरनेडो डी कोलम्बिया, नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी (एनएलएसआईयू)- बेंगलुरु, गुजरात नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी-जोधपुर, नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी-रायपुर, नेशनल लॉ इंस्टीट्यूट यूनिवर्सिटी- भोपाल, नेशनल लॉ यूनिसर्सिटी- दिल्ली, निरमा यूनिवर्सिटी लॉ स्कूल, एनएएलएसएआर यूनिवर्सिटी ऑफ लॉ, स्कूल ऑफ लॉ-बीएमएल मुंजाल यूनिवर्सिटी, और दिल्ली विश्वविद्यालय।

इस सम्मेलन में ऑस्ट्रेलिया, बांग्लादेश, ब्राजील, कनाडा, कोलंबिया, कोस्टा रिका, क्रोएशिया, साइप्रस, फ्रांस, जर्मनी, हांगकांग एसएआर, इंडोनेशिया, आयरलैंड, इजरायल, इटली, जापान, कजाकिस्तान, मलेशिया, मैक्सिको, नेपाल, न्यूजीलैंड, नाइजीरिया, कतर, रूस, सिंगापुर, दक्षिण अफ्रीका, स्पेन, तंजानिया, चेक गणराज्य, नीदरलैंड, संयुक्त अरब अमीरात, यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका, तुर्की, युगांडा, उरुग्वे और भारत से वक्ता शामिल हो रहे हैं।

–आईएएनएस

एसजीके

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