Dr. Ramdayal Munda Birthday: शिक्षक, कलाकार, लेखक, कवि, आंदोलनकारी और नेता डॉ. रामदयाल मुंडा की जयंती 23 अगस्त को मनाई जाती है। तमाड़ के दिउड़ी गांव में 23 अगस्त 1939 को रामदयाल मुंडा का जन्म हुआ था। उन्होंने अपनी माध्यमिक शिक्षा खूंटी हाई स्कूल से और रांची विश्वविद्यालय, रांची से मानव विज्ञान में स्नातकोत्तर किया।
डॉ. मुंडा को अमेरिकन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडियन स्टडीज, भारत स्थित यूएसए एजुकेशन फाउंडेशन और जापान फाउंडेशन की तरफ से फेलोशिप भी प्राप्त हुई थी और 2010 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया। डॉ मुंडा ने आदिवासी लोक कला, विशेषकर पाइका नाच को विश्वस्तरीय पहचान दिलाई है।
मुंडा भाषाविद्, समाजशास्त्री और आदिवासी बुद्धिजीवी और साहित्यकार के साथ-साथ एक आदिवासी कलाकार भी थे। उन्होंने मुंडारी, नागपुरी, पंचपरगनिया, हिंदी, अंग्रेजी में गीत-कविताओं के अलावा गद्य साहित्य को भी रचा है। उनकी संगीत रचनाएं बहुत लोकप्रिय हुई हैं।
विश्व आदिवासी दिवस मनाने की परंपरा शुरू करने में डॉ मुंडा का सबसे अहम योगदान रहा है। 1960 के दशक में उन्होंने एक छात्र और नर्तक के रूप में संगीतकारों की एक मंडली स्थापित की। फिर 1977-78 में अमेरिकन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडियन स्टडीज से फेलोशिप हासिल की।
1980 के दशक में शिकागो में एक छात्र और मिनेसोटा विश्वविद्यालय में शिक्षक के रूप में डॉ मुंडा ने दक्षिण एशियाई लोक कलाकारों और भारतीय छात्रों के साथ प्रशंसनीय प्रदर्शन किया। डॉ मुंडा 1981 में रांची विश्विविद्यालय के जनजातिय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग रांची विश्वविद्यालय से जुड़े।
फिर साल 1983 में ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी कैनबरा में विजिटिंग प्रोफेसर बने। 1985-86 में रांची विश्वविद्यालय के उप-कुलपति पर पर भी आसीन रहे। फिर 1986-88 में रांची विश्वविद्यालय के कुलपति रहे. 1987 में सोवियत संघ में हुए भारत महोत्सव में मुंडा पाइका नृत्य दल के साथ भारतीय सांस्कृतिक दल का नेतृत्व किया।
1988 में आदिवासी कार्यदल राष्ट्रसंघ जेनेवा गए।1988 से 91 तक भारतीय मानव वैज्ञानिक सर्वेक्षण किया. 1989 में फिलीपिंस, चीन और जापान का दौरा किया। 1989-1995 में झारखंड विषयक समिति, भारत सरकार के सदस्य रहे. 1990 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति आकलन समिति के सदस्य रहे। 1991 से 1998 तक झारखंड पीपुल्स पार्टी के प्रमुख अध्यक्ष रहे।
साल 1996 में सिराक्यूज विश्वविद्यालय न्यूयार्क से जुड़े। 1997-2008 तक भारतीय आदिवासी संगम के प्रमुख अध्यक्ष और संरक्षक सलाहकार रहे। 1998 में केंद्रीय वित्त मंत्रालय के फाइनांस कमेटी के सदस्य भी बने। 2010 में रामदयाल मुंडा को पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया। 2010 मार्च में राज्यसभा सदस्य मनोनीत किए गए।
डॉ. मुंडा न हाेते ताे आदिवासी समाज की संस्कृति कभी समृद्ध न हाे पाती। आदिवासी समाज के लाेग शिक्षित न हाेते और ही उनकी काेई पहचान होती। रामदयाल मुंडा ने आदिवासी समाज को शिक्षित करने के लिए कई अथक प्रयास किए। अमेरिका में प्रधानाध्यापक की नौकरी को छोड़ भारत आए व आदिवासियों को शिक्षित करने के लिए रांची आ गए।
यहां आकर रांची विश्वविद्यालय में आदिवासी व क्षेत्रीय भाषा के विभाग की स्थापना की। वहीं प्रकृति से जोड़ते हुए आदिवासियों की पहचान के लिए आदि धर्म की स्थापना की। 30 सितंबर शुक्रवार, 2011 को उनका देहांत हो गया। डॉ मुंडा ने अपनी पारंपरिक सांस्कृतिक जे नाची से बांची के आदर्श को बनाए रखा।