डॉ. जाकिर हुसैन भारत के तीसरे राष्ट्रपति और पहले मुस्लिम राष्ट्रपति थे। उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में भी अहम योगदान दिया। जामिया मिलिया इस्लामिया के सह-संस्थापक जाकिर हुसैन की आज जन्मतिथि है।
जाकिर हुसैन 13 मई 1967 से 3 मई 1969 तक भारत के राष्ट्रपति रहे। उनका कार्यकाल 3 मई 1969 को उनके निधन के साथ समाप्त हुआ। हुसैन पहले ऐसे राष्ट्रपति थे, जिनका निधन कार्यकाल के दौरान हुआ। राष्ट्रपति बनने से पहले वह 1957 से 1962 तक बिहार का गवर्नर रहे और 1962 से 1967 तक भारत के उपराष्ट्रपति के तौर पर भी काम किया।
जाकिर हुसैन का जन्म 8 फरवरी 1897 को हैदराबाद में हुआ। हुसैन ने प्रारंभिक शिक्षा इतावाह की इस्लामिया हाई स्कूल से पूरी की और फिर उन्होंने मुहम्मदन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज (वर्तमान अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी) से आगे की पढ़ाई पूरी की। इस दौरान वह विद्यार्थी सेना के एक प्रसिद्ध लीडर थे। बाद में उन्होंने बर्लिन यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की।
केवल 23 वर्ष की उम्र में जाकिर हुसैन ने 1920 में ‘नेशनल मुस्लिम यूनिवर्सिटी’ की स्थापना अलीगढ में की, जिसे बाद में वर्ष 1925 में नई दिल्ली के करोल बाग में स्थानांतरित किया गया। अंत में 1 मार्च 1935 को इसे नई दिल्ली के जामिया नगर में स्थानांतरित किया गया और इसका नाम भी जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी (JMI) रखा गया। हुसैन ने 27 वर्ष तक जामिया के वाईस चांसलर बने रहते हुए सेवा की। उनके नेतृत्व में जामिया भारतीय स्वतंत्रता अभियान से अच्छी तरह जुड़ा था।
महात्मा गांधी और हकीम अजमल खान के मार्गदर्शन पर चलने वाले हुसैन ने भारत मे शिक्षा का प्रचार- प्रसार किया। इस तरह वह उस समय के मुख्य शैक्षणिक विचारको में से एक बन गए। स्वतंत्रता के बाद जाकिर हुसैन अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के वाईस चांसलर बने। 1956 में उन्हें भारतीय अपर हाउस का सदस्य चुना गया। इसके बाद 1957 से 1962 तक वह बिहार के गवर्नर रहे।
वर्ष 1962 में जाकिर हुसैन भारत के उपराष्ट्रपति बने और 1967 तक इस पद पर काम किया। 13 मई 1967 को जाकिर हुसैन की नियुक्ती भारत के राष्ट्रपति के रूप में की गयी।
जाकिर हुसैन के महान कार्यों के चलते उन्हें 1963 में भारत के सर्वोच्च अवार्ड भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। इलायांगुदी में उच्च माध्यमिक शिक्षा शुरू करने का श्रेय भी हुसैन को दिया जाता है और इसी वजह से 1970 में वहां उन्ही के नाम का एक कॉलेज भी शुरू किया गया। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के इंजीनियरिंग कॉलेज का नाम भी उन्ही के नाम पर रखा गया है।
3 मई 1969 को हुसैन के बाद, जामिया मिलिया इस्लामिया कैंपस में उन्हें उनकी पत्नी के साथ (जिनकी मृत्यु कुछ साल बाद हुई) दफनाया गया था।