मुजफ्फरपुर : बच्चों की मौत पर बोले लीची रिसर्च केंद्र के निदेशक- एनसेफेलाइटिस का लीची से कोई संबंध नहीं

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मुजफ्फरपुर : बच्चों की मौत पर बोले लीची रिसर्च केंद्र के निदेशक- एनसेफेलाइटिस का लीची से कोई संबंध नहीं

मुजफ्फरपुर | “यदि एक्यूट एनसेफेलाइटिस सिंड्रोम (AES) का संबंध लीची खाने से होता तो जनवरी, फरवरी में भी यह बीमारी नहीं होती। वास्तविकता यह है कि इस बीमारी का लीची से कोई संबंध नहीं है, और अभी तक कोई भी ऐसा शोध नहीं हुआ है, जो इस तर्क को साबित कर पाया हो। यह खबर पूरी तरह झूठी और भ्रामक है।” यह कहना है मुजफ्फरपुर स्थित राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र (एनआरसीएल) के निदेशक विशाल नाथ का।

विशाल नाथ ने लीची और एईएस के संबधों को लेकर पैदा हुए विवाद पर आईएएनएस के साथ विशेष बातचीत में कहा, “लीची पूरे देश और दुनिया में सैकड़ों सालों से खाई जा रही है। लेकिन यह बीमारी कुछ सालों से मुजफ्फरपुर में बच्चों में हो रही है। इस बीमारी को लीची से जोड़ना झूठा और भ्रामक है। ऐसा कोई तथ्य, कोई शोध सामने नहीं आया है, जिससे यह साबित हुआ हो कि लीची इस बीमारी के लिए जिम्मेदार है।”


बीमारी के पीछे की वजहों के बारे में विशाल नाथ ने कहा, “इस बीमारी की सही वजह ही अभी सामने नहीं आ पाई है। जो भी हैं, सब कयास और अनुमान हैं। फिर लीची को इसके लिए जिम्मेदार कैसे ठहराया जा सकता है।”

उन्होंने कहा, “मुजफ्फरपुर में कुछ परिस्थितियां हैं। गरीबी, कुपोषण और साथ में यहां गर्मी ज्यादा पड़ती है। साफ-सफाई की भी व्यवस्था ठीक नहीं है। हो सकता है ये सारी परिस्थितियां मिलकर खास वर्ग के बच्चों में इस बीमारी के वायरस को पनपने और पैदा होने का वातावरण पैदा कर रहे हों। लेकिन यह भी अभी सत्यापित नहीं है।”


मुजफ्फरपुर में एईएस के कारण बच्चे मर रहे हैं। पिछले 20 दिनों में अबतक 118 बच्चों की मौत हो चुकी है। मगर क्या इस विवाद से लीची पर भी कोई खतरा है?

विशाल नाथ कहते हैं, “खतरा तो है। कोई सटीक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है, लेकिन बाजार पर इसका काफी असर पड़ा है। देश के विभिन्न हिस्सों से खबरें आ रही हैं कि लीची और उसके उत्पादों की मांग काफी घट गई है। हिमाचल, ओडिशा, दक्षिण के कारोबारियों ने कहा है कि लोगों ने लीची की तरफ से मुंह फेर लिया है और कारोबार बहुत प्रभावित हुआ है।”

उल्लेखनीय है कि वर्ष 2013 में नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल और यूएस सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल ने इस मामले की एक जांच की थी। जांच के निष्कर्ष में कहा गया था कि खाली पेट लीची खाने के कारण बच्चों में एईएस बीमारी हुई थी। कुछ लोग उसी रपट के आधार पर इस बीमारी को लीची से जोड़ रहे हैं।

लेकिन विशाल नाथ इस तर्क को सिरे से खारिज करते हैं। उन्होंने कहा, “यदि लीची से एईएस बीमारी होती तो जनवरी, फरवरी में लीची नहीं होती है। जबकि यह बीमारी जनवरी, फरवरी में भी इस इलाके में सामने चुकी है। वैसे भी मुजफ्फरपुर में लीची बहुत पहले खत्म हो चुकी है। बीमारी अभी हो रही है। अब यह कहना कि पहले खाई हुई लीची का असर अब हो रहा है। यह तो अजीब बात है।”

मुजफ्फरपुर की लीची पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। यहां स्थित राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र इस मीठे और रसीले फल पर शोध और विकास का अपने तरह का अनूठा संस्थान है। तो क्या यह संस्थान कोई ऐसी किस्म विकसित कर रहा है, जो पूरी तरह सुरक्षित और स्वास्थ्यवर्धक हो?

विशाल नाथ ने कहा, “मौजूदा लीची अपने आप में सुरक्षित और स्वास्थवर्धक है। इसमें कोई बुराई और बीमारी नहीं है। रही नई किस्म के विकास की बात, तो यह हमारा काम है, जो यहां हमेशा चलता रहता है। हम नई और अच्छी किस्म की, अधिक उपज देने वाली लीची पर शोध करते रहते हैं। हां, यदि कोई साबित कर दे कि मौजूदा लीची में कोई गड़बड़ी है तो हम इस मुद्दे पर भी विचार करेंगे।”

हालांकि, इस बीच बिहार सरकार के स्वास्थ्य मंत्री प्रेम कुमार ने एईएस का लीची से संबंध होने की संभावना की जांच करने के शुक्रवार को आदेश दे दिए हैं।


(इस खबर को न्यूज्ड टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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