देश में शराबबंदी सामाजिक नहीं, बल्कि राजनीतिक मुद्दा बन गया है। बिहार में नीतीश कुमार की सरकार ने 2016 में शराबबंदी कानून लागू किया। बिहार सरकार शराबबंदी को सफल बताकर अपनी पीठ थपथपा रही है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, लगभग दो लाख लोग शराब पीने या बेचने के मामलों में जेल जा चुके हैं। तीन सालों में शराबबंदी से राज्य और इसके लोगों को क्या फायदा हुआ और क्या नुकसान, इस विषय पर न्यूज्ड ने प्रसिद्द समाजशास्त्री प्रोफेसर डी एम दिवाकर से बात की है।
प्रोफेसर डी एम दिवाकर का कहना है कि शराबबंदी से हुए जिन फायदों का ढ़ोल पीटा जा रहा है, दरअसल वो वास्तविकता से कोसो दूर हैं। शराबबंदी लागू होने से नया मकान बनना, बाइक खरीदारी का बढ़ना, दुध का सेवन अधिक होना जैसी बातों से प्रोफेसर एम दिवाकर इत्तफाक नहीं रखते। उनके अनुसार मनरेगा की आमदनी इतनी नहीं है की लोग शराबंदी के दौर में ये सब कर सकें। उन्होंने बताया कि शादियों में दुध का सेवन अधिक होना स्वाभाविक है। खेती-किसानी के हालात बदतर हुए हैं।
डी एम दिवाकर बताते हैं कि अब शराब माफिया नहीं, कैरियर पकड़े जा रहे हैं और जिनकी जेब भरी है वो आसानी से इस नियम को तोड़ सकते हैं। प्रोफेसर के अनुसार दूसरे राज्यों से शराब धड़ल्ले से आ रही है। सीमा सुरक्षा पर अधिक चौकसी की जरूरत है।
आपको बता दें कि बिहार में पूर्ण शराबबंदी कानून लागू है। जिसके तहत पहली बार शराब पीने पर पकड़े जाने की स्थिति में आरोपित पर 50 हजार रुपये का जुर्माना लगेगा या फिर उसे तीन महीने जेल की सजा काटनी होगी। इस कानून में जमानत का विकल्प भी जोड़ा गया है। हालांकि दूसरी बार इस कानून का उल्लंघन करने वालों के लिए एक लाख रुपये के जुर्माने और पांच साल की सजा का प्रावधान किया गया है।