कम दाम में फसल बेचने पर मजबूर हुए किसान, राजधानी में भी नहीं मिल रहा न्यूनतम समर्थन मूल्य

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Farmers are not getting MSP in Delhi

केंद्र सरकार एक ओर जहां ये दावा कर रही है 10 अक्टूबर तक पूरे देश में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर पिछले साल के मुकाबले इस वर्ष 35 फीसदी ज्यादा धान खरीद की है। वहीं देश की राजधानी दिल्ली में किसान एमएसपी से कम दाम पर धान बेचने को मजबूर हैं। दिल्ली की नरेला मंडी में सामान्य धान 1650-1700 तो बासमती धान 2200-2300 रुपए कुंतल बिक रहा है।

गांव कनेक्शन में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक अलीगढ़ के किसान मनोज कुमार शर्मा 175 कुंतल धान लेकर दिल्ली की नरेला मंडी में इस उम्मीद के साथ पहुंचे कि शायद उन्हें यहां पर उनकी फसल का अच्छा रेट मिल जाए, लेकिन उन्हें अपना धान 1665 रुपए प्रति कुंतल बेचना पड़ा।


मनोज कुमार शर्मा की तरह ही उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान के किसान दिल्ली की नरेला मंडी में धान बेचने आ रहे हैं, लेकिन उन्हें  भी कम दाम पर धान बेचना पड़ रहा है। जब किसानों से इस बारे में बात की गई तो मालूम हुआ कि यहां अपनी फसल बेचने आए किसानों ने अलग-अलग दाम पर धान बेचा।

एक किसान ने बताया कि उसने अपनी फसल का 1830 रुपए प्रति कुंतल बेची,  तो दूसरे ने 1725 रुपए औऱ तीसरे ने 16665 रुपए प्रति कुंतल। दरअसल दिल्ली में न्यूनतम समर्थन मूल्य न होने की वजह से यहां किसान अपनी फसल आढ़तियों को बेचने को मजबूर हो रहे हैं। जिसका सीधा नुकसान किसानों को हो रहा है।

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने सोमवार, 12 अक्टूबर को जंतर-मंतर में किसानों के विरोध को सम्बोधित करते हुए केंद्र सरकार को एमएसपी के मुद्दे पर घेरा था। लेकिन उन्हीं के प्रदेश में किसानों को एमएसपी तक की गारंटी नहीं मिल रही है। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि देश के बाकी हिस्से में किसानों की क्या दुर्दशा होगी।


किसान अपनी फसल मंडी में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर नहीं बेच पा रहा है। मंडी में आढ़तियों की मनमानी के आगे किसान पूरी तरह से बेबस दिख रहे हैं। लेकिन उनके पास अपनी फसल को कम दाम में बेचना के अलावा कोई चारा नहीं दिख रहा क्योंकि न ही तो केंद्र सरकार इस समस्या पर ध्यान दे रही।

किसानों के लिए परेशानी का सबब ये भी है कि उन्हें खाद, बीज और मजदूर के बढ़े हुए दाम चुकाने पड़ रहे हैं। लेकिन इसके बावजूद उन्हें अपनी फसलों का उचित दाम नहीं पा रहा है। ऐसे में अपने पूरे-परिवार का खर्च निकालना आसान नहीं है। रोजमर्रा की बढ़ती मंहगाई ने किसानों को दिक्कतों में चौरतरफा इजाफा कर दिया है लेकिन सरकार किसानों की सुध नहीं ले रही।

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