अपने संघर्ष से महिला न्यायधीशों के लिए सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे खोलने वाली फातिमा बीवी सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला जज बनी थी। फातिमा ने सामाजिक बाधाओं के बावजूद उस समय वकालत में अपना करियर बना कर इतिहास रचा। उनका जन्म आज ही के दिन हुआ था।
फातिमा बीवी की कहानी भारत की सभी महिलाओं के लिए एक प्रेरणा का स्रोत है। उस समय जब महिलाओं को बहुत कम मौके मिलते थे, तब फातिमा बीवी ने वकालत चुनी और अपने फैसले पर अड़ी रही। उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और भारत में वकालत के क्षेत्र में महिलाओं के लिए एक मिसाल कायम की।
फातिमा बीवी का जन्म 30 अप्रैल, 1927 को त्रावणकोर के पत्तनम्तिट्टा में हुआ। फातिमा ने अपनी पढ़ाई त्रिवेंद्रम लॉ कॉलेज से पूरी की। कॉलेज के पहले वर्ष में वह अपनी कक्षा की केवल पांच लड़कियों में से एक थीं। दुसरे वर्ष में फातिमा सहित केवल तीन ही लड़कियां रह गयी थीं। कॉलेज के बाद फातिमा 1950 में भारत के बार काउंसिल की परीक्षा को टॉप करने वाली पहली महिला बनी।
इसके बाद उन्होंने वकील के रूप में पंजीकरण कर केरल की सबसे निचली न्यायपालिका में अपनी प्रैक्टिस शुरू की। उस समय बहुत से लोग इस बात के पक्ष में नहीं थे और वह कोर्ट में एक हिज़ाब पहनी हुई लड़की को देख मुंह बना लेते थे। लेकिन फातिमा ने कभी इन बातों को अपने लक्ष्य के नीच में नहीं आने दिया।
उन्होंने केरल की कई अधीनस्थ न्यायिक सेवाओं में काम किया। इसके बाद वह मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, जिला एवं सत्र न्यायाधीश और आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण के न्यायिक सदस्य के रूप में भी कार्यरत रहीं। फातिमा साल 1983 में केरल हाई कोर्ट की जज बनी।
फातिमा बीवी ने इतिहास तब रचा जब केरल हाई कोर्ट की जज के पद से सेवानिवृत्त होने के छह महीने बाद साल 1989 में वह सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला न्यायधीश चुनी गयी। इस तरह फातिमा बीवी के संघर्ष से भारत की सर्वोच्च न्यायपालिका में सर्वोत्तम पदों पर भारतीय महिलायों के लिए रास्ते खुल गए।
फातिमा बीवी ऐसी पहली मुस्लिम महिला थी जो किसी उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीश बनी, साथ ही उन्हें एक एशियाई राष्ट्र के सर्वोच्च न्यायालय की पहली महिला न्यायाधीश का गौरव प्राप्त हुआ। कहा जाता है कि न्यायमूर्ति फातिमा बीवी अपने कार्यकाल के दौरान बहुत ही सुलझी हुई और हमेशा संतुलित रहीं। वह हर एक केस को बड़ी बारीकी से समझती थीं।
फातिमा का कार्यकाल 1992 में पूरा हुआ जिसके बाद उन्होंने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्य के रूप में कार्य किया। 1997 से 2001 तक वह तमिलनाडु की गवर्नर भी रही।
बता दें कि भारत में अब तक केवल 7 महिला न्यायधीश रहीं हैं, जिनमें से एक फातिमा बीवी हैं। भारतीय इतिहास में केवल दो बार एक ही समय में दो से अधिक महिला न्यायाधीश बैठी हैं। फातिमा बीवी न्यायधीशों के रूप में और महिलाओं को देखना चाहती हैं उन्होंने अपने एक साक्षात्कार में कहा था कि, ‘उच्च न्यायपालिका में महिलाओं की संख्या बढ़ाने के लिए आरक्षण पर विचार करना भी आवश्यक है। साथ ही न्यायधीशों के पद पर महिलाओं की संख्या बढ़ाने की भी जरूरत है।’