Feroze Gandhi death anniversary: इंदिरा और फिरोज के रिश्ते से खुश नहीं थे पंडित नेहरू, मुश्किल से हो पाई थी दोनों की शादी

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आम भारतीय समाज में जिस तरह की अवधारणा है यहां ज्यादातर देखा जाता है कि किसी महिला की पहचान उसके पति से होती है। लेकिन कई बार यह स्थिति इससे उलट भी हो जाती है। कई बार यह देखा गया है कि पुरूष चाहे कुछ भी हासिल कर लेकिन उसकी पहचान उसके पत्नी से ही होती है। ऐसा ही एक उदाहरण है फिरोज गांधी (Feroze Gandhi) का। फिरोज गांधी को अक्सर लोग इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) के साथ ही याद करते हैं। आम जन में भले ही लोग उन्हें इंदिरा गांधी के साथ याद करते हों लेकिन राजनीति के मैदान में उनकी एक अलग और मजबूत छवि थी।

फिरोज गांधी ने 12 सितंबर 1912 को मुंबई के एक पारसी परिवार में जन्म लिया था। उनका मूल जुड़ाव गुजरात से था और वहीं उनका पैत्रिक घर भी था। फिरोज गांधी के पिता एक इंजीनियर थे। फिरोज अपने पिता के पांच बच्चों में सबसे छोटे थे। पिता की जल्द ही मृत्यु हो गई जिसके वजह से फिरोज और उनके परिवार को मुंबई छोड़ कर इलाहाबाद आना पड़ा। उनकी स्कूल और कॉलेज की शिक्षा इलाहाबाद में ही पूरी हुई। इसके बाद फिरोज लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स पढ़ने चले गए।


लंदन में रहने के दौरान इंदिरा गांधी और फिरोज गांधी के बीच नजदिकीयां बढ़नीं शुरू हुईं और दोनों ने शादी करने का फैसला किया। मगर इंदिरा के पिता और आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू इनके रिश्ते खफा थे। जब उन्होंने इस रिश्ते को लेकर इंदिरा से नाराजगी जाहिर की तो इंदिरा ने कहा कि मैं शोर शराबे दूर अपना एक गृहस्थ जीवन बसाना चाहती हूं चहा शांति हो। इस घटना के बाद नेहरू ने अपनी डायरी में लिखा था कि ‘वह (इंदिरा) इतनी अपरिपक्व थी। या शायद मुझे ऐसा लगता है। इसीलिए वह चीजों को सतही तौर पर देख पाती है। उसे उनकी गहराई में जाना चाहिए, इसमें वक्त लगेगा। मेरा ख्याल है कि उस पर दबाव ज्यादा नहीं देना है, वरना झटके लग सकते हैं।’

साल 1942 में इलाहाबाद में इंदिरा और फिरोज ने शादी कर ली थी। शादी के बाद रजीव गांधी ने दोनों के बड़े बेटे के रूप में जन्म लिया। शादी के कुछ वर्ष बाद जब इंदिरा राजनीति में सक्रिय होने लगीं तब फिरोज और इंदिरा के रिश्तों में दरार आने लगी। इंदिरा अब राजनीति के कारण पिता को ज्यादा वक्त देनें लगीं थी। इसी वाकये पर इंदिरा की बायोग्राफी में पुपुल जयकर ने लिखा है, ‘पिता की जरूरतों के मद्देनजर आनंद भवन, इलाहाबाद और पति को छोड़ पिता के पास जाकर रहने का फैसला बड़ा फैसला था।’ इसके बाद दोनों के जीवन में कई उतार चढ़ाव आए और इन्ही उतार चढ़ाव के बीच 8 सितंबर 1960 को फिरोज ने दिल का दौरा पड़ने की वजह से इस दुनियां को अलविदा कह दिया।


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