पुण्यतिथि विशेष : फील्‍ड मार्शल सैम मानेकशॉ, जिनके नेतृत्व में भारत ने 1971 का युद्ध जीता था!

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फील्‍ड मार्शल सैम मानेकशॉ भारतीय सेना के उस शेर का नाम है जो कभी किसी के सामने नहीं झुका। 3 जनवरी 1973 को सैम मानेकशॉ को भारतीय सेना का फील्‍ड मार्शल बनाया गया था। उनका पूरा नाम सैम होर्मूसजी फ्रेमजी जमशेद जी मानेकशॉ था। उन्हें भारतीय सेना का सबसे चहेता जनरल कहा जाता है। ऐसा इसलिए क्‍योंकि वह हमेशा ही अपने जवानों के बीच अपनों की ही तरह रहते थे। उनसे हाल-चाल लेते समय किसी सिपाही को इस बात का अहसास भी नहीं होता था कि उनके सामने सेना का प्रमुख खड़ा है। उनकी इस खूबी के तो पाकिस्‍तान के लाखों बंदी सैनिक भी कायल थे।

बांग्‍लादेश को पाकिस्‍तान के चंगुल से मुक्‍त कराने के लिए जब 1971 में तत्‍कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सैन्‍य कार्रवाई करने का मन बनाया तो तत्‍काल ऐसा करने से सैम ने साफ इंकार कर दिया था। 27 जून 2008 को 94 साल की उम्र में उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया। आइए जानते हैं उनके जीवन से जुड़े कुछ पहलू।


सेना में सैम मानेकशॉ ने गुजारे चार दशक

उनका जन्म 3 अप्रैल 1914 को पंजाब के अमृतसर में हुआ था। सैम ने करीब चार दशक फौज में गुजारे और इस दौरान पांच युद्ध में हिस्सा लिया। फौजी के रूप में उन्होंने अपनी शुरुआत ब्रिटिश इंडियन आर्मी से की थी। दूसरे विश्व युद्ध में भी उन्होंने हिस्सा लिया था। 1971 की जंग में उनकी बड़ी भूमिका रही। इस जंग में भारतीय फौज की जीत का खाका भी खुद मानेकशॉ ने ही खींचा था।

अनुशासन के पक्के थे मानेकशॉ

सैम मानेकशॉ शरारतें करने की आदत के लिए मशहूर थे, लेकिन जब अनुशासन या सैनिक नेतृत्व और नौकरशाही के बीच संबंधों की बात आती थी तो सैम कोई समझौता नहीं करते थे। कहा जाता है कि एक बार सेना मुख्यालय में एक बैठक हो रही थी। रक्षा सचिव हरीश सरीन भी वहाँ मौजूद थे। उन्होंने वहां बैठे एक कर्नल से कहा, यू देयर, ओपन द विंडो। वह कर्नल उठने लगा। तभी सैम ने कमरे में प्रवेश किया। रक्षा सचिव की तरफ मुड़े और बोले, सचिव महोदय, आइंदा से आप मेरे किसी अफ़सर से इस टोन में बात नहीं करेंगे। यह अफ़सर कर्नल है। यू देयर नहीं”।

फौजियों से बेहद लगाव और प्यार

दरअसल, सैम मानेकशॉ एक ऐसे अफसर थे जो अपने फौजियों को बेहद प्यार किया करते थे और उनकी हर खुशी और दुख में शरीक होते थे। फिर चाहे वह मोर्चे पर हों या कहीं और, किसी से मिलने में उन्हें कोई परहेज नहीं था। इसी दम पर वह अपनी फौज में सबके चहेते थे। रिटायरमेंट के बाद उन्‍होंने नीलगिरी की पहाडि़यों के बीच वेलिंगटन को अपना घर बनाया। अंतिम समय तक वह यहीं पर रहे। इस दौरान उनके ड्राइवर रहे कैनेडी 22 वर्षों तक उनके साथ रहे। सैम के निधन के बाद सामने आए कैनेडी ने बताया था कि हर रोज जब वह सैम को लेने के लिए घर पहुंचते थे तो वह खुद अपने साथ बिठाकर उनके लिए चाय बनाते और ब्रेड खाने को देते थे। उनकी सादगी को लेकर हर कोई सैम का दिवाना था।


सैम ने किया इंदिरा का विरोध

सैम ने एक इंटरव्यू के दौरान बताया था कि पूर्वी पाकिस्तान को लेकर तत्कालीन प्रधानमंत्री काफी चिंतित थीं। उन्होंने अप्रैल 27 को एक आपात बैठक बुलाई, जिसमें पूर्वी पाकिस्तान को लेकर उनकी चिंता साफ जाहिर हुई। उस बैठक में सैम भी आमंत्रित थे। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सैम को कहा कि कुछ करना होगा। उनके पूछने पर इंदिरा गांधी ने उन्हें पूर्वी पाकिस्तान में जंग पर जाने को कहा। लेकिन सैम ने इसका विरोध किया।

औपचारिक कपड़ों के शौकीन

मानेकशॉ को अच्छे कपड़े पहनने का शौक था। अगर उन्हें कोई निमंत्रण मिलता था जिसमें लिखा हो कि अनौपचारिक कपड़ों में आना है तो वह निमंत्रण अस्वीकार कर देते थे।

आपको बता दें कि अब जल्द ही सैम पर बॉलीवुड में एक फिल्‍म भी बनने वाली है, जिसमें रणवीर सिंह मुख्‍य किरदार में होंगे और इसको डायरेक्‍ट मेघना गुलजार करेंगी।

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