पद्म श्री और पद्म भूषण से सम्मानित थे अभिनेता गिरीश कर्नाड, जानें उनके सफर की कहानी

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देश के जाने माने समकालीन लेखक, नाटककार, अभिनेता और फिल्म निर्देशक गिरीश कर्नाड (Girish Karnad ) का सोमवार को निधन हो गया। वह लंबे समय से बीमार चल रहे थे और कई बार अस्पताल में भर्ती कराए जा चुके थे। सोमवार की सुबह बंगलूरू स्थित अपने आवास पर उन्होंने अंतिम सांस ली।

पद्म श्री और पद्म भूषण से सम्मानित थे अभिनेता गिरीश कर्नाड, जानें उनके सफर की कहानी


गिरीश कार्नाड  का जन्म 19 मई 1938 को महाराष्ट्र के माथेरान में हुआ था। एक कोंकणी भाषी परिवार में जन्में कार्नाड ने 1958 में धारवाड़ स्थित कर्नाटक विश्वविद्यालय से स्नातक उपाधि ली थी। इसके पश्चात वे एक रोड्स स्कॉलर के रूप में इंग्लैंड चले गए जहां उन्होंने ऑक्सफोर्ड के लिंकॉन तथा मॅगडेलन महाविद्यालयों से दर्शनशास्त्र, राजनीतिशास्त्र तथा अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की थी। वे शिकागो विश्वविद्यालय के फुलब्राइट महाविद्यालय में विज़िटिंग प्रोफेसर भी रह चुके हैं।

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फ़िल्मी सफ़र की शुरुआत

गिरीश कार्नाड ने अपने दमदार अभिनय की झलक अपनी  पहली फ़िल्म में ही दिखा दिया। 1970 में कन्नड़ फ़िल्म ‘संस्कार’ से अपना फ़िल्मी सफ़र शुरू किया। उन्हें पहली फिल्म में कन्नड़ सिनेमा के लिए राष्ट्रपति का गोल्डन लोटस पुरस्कार मिला। आर के नारायण की किताब पर आधारित टीवी सीरियल मालगुड़ी डेज़ में उन्होंने स्वामी के पिता की भूमिका निभाई। 1990 की शुरुआत में विज्ञान पर आधारित एक टीवी कार्यक्रम टर्निंग पॉइंट में उन्होंने होस्ट की भूमिका निभाई।

उनकी आखिरी फिल्म कन्नड़ भाषा में बनी अपना देश थी, जो 26 अगस्त को रिलीज हुई। बॉलीवुड की उनकी आखिरी फ़िल्म टाइगर ज़िंदा है (2017) में डॉ. शेनॉय का किरदार निभाया था।


उनकी मशहूर कन्नड़ फ़िल्मों में से तब्बालियू मगाने, ओंदानोंदु कलादाली, चेलुवी, कादु और कन्नुड़ु हेगादिती रही हैं।

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हिंदी सिनेमा में गिरीश की चमक

हिंदी में उन्होंने ‘निशांत’ (1975), ‘मंथन’ (1976) और ‘पुकार’ (2000) जैसी फ़िल्में कीं। नागेश कुकुनूर की फ़िल्मों ‘इक़बाल’ (2005), ‘डोर’ (2006), ‘8×10 तस्वीर’ (2009) और ‘आशाएं’ (2010) में भी उन्होंने काम किया। इसके अलावा सलमान ख़ान के साथ वो ‘एक था टाइगर’ (2012) और ‘टाइगर ज़िंदा है’ (2017) में अहम किरदार में दिखे।

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गिरीश का नाटकों से लगाव

गिरीश कर्नाड की कन्नड़ और अंग्रेज़ी दोनों भाषाओं में उनकी समान पकड़ थी। उन्होंने अपना पहला नाटक कन्नड़ में लिखा जिसे बाद में अंग्रेज़ी में भी अनुवाद किया गया। साथ ही उनके नाटकों में ‘ययाति’, ‘तुग़लक’, ‘हयवदन’, ‘अंजु मल्लिगे’, ‘अग्निमतु माले’, ‘नागमंडल’ और ‘अग्नि और बरखा’ काफी प्रसिद्ध रहे हैं।

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पद्म श्री और पद्म भूषण से सम्मानित

गिरीश कर्नाड को अनेक पुस्कारों से सम्मानित किया गया। 1994 में साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1998 में ज्ञानपीठ पुरस्कार, 1974 में पद्म श्री, 1992 में पद्म भूषण, 1972 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, 1992 में कन्नड़ साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1998 में ज्ञानपीठ पुरस्कार और 1998 में उन्हें कालिदास सम्मान से सम्‍मानित किया गया है।

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