भारतीय सिनेमा की पहली प्लेबैक सिंगर शमशाद बेगम संगीत जगत का एक बड़ा नाम हैं। भारतीय संगीत में धूम- धड़ाकों वाले गानों को पहचान दिलाने वाली शमशाद बेगम एक जानी मानी गायिका के साथ हर किसी के लिए एक प्रेरणा का स्रोत भी हैं।
अपने दौर की हाईएस्ट पेड प्लेबैक सिंगर रहीं शमशाद बेगम को खनकती आवाज़ की मल्लिका माना जाता है। उन्होंने कई सुपरहिट गाने गाए और लोगों के दिलों पर राज किया। मधुर आवाज़ और सुरों की गहरी पहचान वाली शमशाद बेगम का आज ही के दिन यानी 23 अप्रैल 2013 को निधन हो गया था।
शमशाद बेगम का जन्म 14 अप्रैल 1919 को पंजाब के अमृतसर में हुआ था। ग्रामोफ़ोन पर गानें सुन सुन कर संगीत सीखने वाली यह गायिका आगे चल संगीत जगत का चमकता सितारा बनीं। उन्होंने केवल 13 वर्ष की आयु में पंजाबी गाना ‘हथ जोड़ियां पंखियां दें गाया। मास्टर गुलाब अहमद के संगीत और शमशाद बेगम की आवाज़ से रचा यह गीत काफी लोकप्रिय हुआ। इसके बाद रिकॉर्ड कंपनी ने उनसे कई गवाए। इसी दौरान उन्हें पंजाबी फिल्मकार दिलसुख पंचोली की फिल्म ‘यमला जट’ में प्लेबैक सिंगिंग का मौका मिला जिसमें उन्होंने आठ गीत गाए।
शमशाद बेगम ने हिंदी फिल्मों में अपना कदम 1941 में आई फिल्म ‘खजांची’ से रखा, जिसमें उनके गानों को बहुत पसंद किया गया। इसके बाद उन्होंने फिल्म बाबुल, दीवार, बहार और आवारा जैसी फिल्मों में बड़े गाने गाए। उन्होंने अपने दौर के सभी बड़े संगीतकार नौशाद, गुलाम हैदर, ओपी नैय्यर, श्री रामचंद्र आदि के साथ काम किया साथ ही सभी बड़े गायकों के साथ गायकी में हाथ आज़माया।
शमशाद बेगम दिखने में भी काफी खूबसूरत थीं। प्लेबैक सिंगिंग के दिनों उन्हें एक्टिंग के भी ऑफर आए लेकिन परिवार की रुढ़िवादी सोच होने के वजह से उन्होंने ये ऑफर ठुकरा दिए। वह बहुत साधारण जीवन जीती थीं। उन्हें लाइमलाइट में रहना और इंटरव्यू देना पसंद नहीं था।
उनके मशरूर नग्मों में लेके पहला पहला प्यार, संइयाँ दिल में आना रे, रेशमी सलवार कुर्ता जाली का, कजरा मोहब्बत वाला, तेरी महफ़िल में किस्मत आज़मा कर हम भी देखेंगे, मेरे पिया गए रंगून किया है वहां से टेलीफून, कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना, कभी आर कभी पार आदि प्रमुख गानें हैं जो काफी लोकप्रिय हुए और इनमें से ज़्यादातर गानों के रिमिक्स भी बनाये गए।
शमशाद बेगम के अतुल्य योगदान को देखते हुए उन्हें 2009 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।