Ganesh Shankar Vidyarthi birth anniversary: एक ऐसा निड़र पत्रकार जो दंगे रोकने निकला और मारा गया

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Ganesh Shankar Vidyarthi birth anniversary

Ganesh Shankar Vidyarthi birth anniversary: विख्यात पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी ने अपनी लेखनी के जरिए देश की पत्रकारिता को नई दिशा दी। 26 अक्टूबर को गणेश शंकर विद्यार्थी का जन्मदिन है। बतौर एक पत्रकार राष्‍ट्रीय आंदोलन में विद्यार्थी का योगदान वाकई अतुल्नीय है।

गणेशशंकर विद्यार्थी जीवनभर धार्मिक कट्टरता और उन्माद के खिलाफ आवाज मुखर रहे। आजादी आंदोलन के दौर में दंगाई भीड़ के बीच भाईचारा कायम करने के लिए उन्होंने अपनी जान कुर्बान कर दी। 25 मार्च, 1931 की तारीख को कानपुर में हुए हिंदू-मुस्लिम दंगे के दौरान हिंसक भीड़ की चपेट में आ उन्होंने जान गंवा दी।


देश के प्रसिद्ध साहित्यकार अमृतलाल नागर ने गणेशशंकर विद्यार्थी की मृत्यु के बाद कहा था, ‘वे अपने ही घर में शहीद हो गए।’ विद्यार्थी अपने ही लोगों के बीच दंगे के दौरान धार्मिक उन्माद का शिकार बने थे। एक ऐसा इंसान जिसने दंगे के दौरान भी हजारों लोगों की जान बचाई थी और खुद धार्मिक उन्माद का शिकार हो गए।

गणेश शंकर ‘विद्यार्थी’ के पिता जयनारायण गरीब, धार्मिक प्रवित्ति वाले इंसान थे। गणेश की प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा उर्दू और अंग्रेजी माध्यम में हुई। हाईस्कूल और प्राइवेट परीक्षार्थी के रूप में एंट्रेंस परीक्षा पास करने के बाद जब उन्होंने इलाहाबाद के कायस्थ पाठशाला में दाखिला लिया, तो उनका झुकाव पत्रकारिता की ओर बढ़ता चला गया।

इसके बाद वे प्रसिद्ध लेखक पंडित सुन्दर लाल के साथ हिंदी साप्ताहिक ‘कर्मयोगी’ के संपादन में उनकी सहायता करने लगे। पृथ्वीनाथ हाई स्कूल में अध्यापन के दौरान उन्होंने सरस्वती, कर्मयोगी, स्वराज्य (उर्दू) और हितवार्ता जैसे प्रकाशनों में कई लेख लिखे।


गणेश शंकर ‘विद्यार्थी ने उसी दौर में अपनी लेखनी की बदौलत महाबीर प्रसाद द्विवेदी का ध्यान अपनी ओर खींचा। द्विवेदी जी ने उनसे प्रभावित होकर 1911 में उन्हें अपनी साहित्यिक पत्रिका ‘सरस्वती’ में उप-संपादक के पद पर कार्य करने का प्रस्ताव दिया, पर विद्यार्थी ने समाचार, सम-सामयिक और राजनीतिक विषयों में ज्यादा थी, इसलिए उन्होंने हिंदी साप्ताहिक ‘अभ्युदय’ में नौकरी की।

एक क्रांतिकारी पत्रकार के तौर पर उन्होंने उत्पीड़न और अन्याय के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की। वह पीड़ितों, किसानों, मिल-मजदूरों और दबे-कुचले गरीबों का दुख उजागर करने लगे। नतीजतन अंग्रेज सरकार ने उन पर कई मुकदमे करने के  साथ भारी जुर्माना लगाया और कई बार जेल भी भेजा।

साल 1916 में महात्मा गांधी से मुलाकात के बाद उन्होंने अपने आप को स्वाधीनता आन्दोलन के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने साल कपड़ा मिल मजदूरों की पहली हड़ताल का नेतृत्व किया। उन्हें रायबरेली के किसानों की लड़ाई लड़ने के लिए 2 साल के कठोर कारावास की सजा भी हुई।

विद्यार्थी जेल से रिहा हुए पर सरकार ने उन्हें फिर से  भड़काऊ भाषण देने के आरोप में फिर गिरफ्तार कर लिया। साल 1924 में उन्हें रिहा जब तक रिहा किया गया तब तक उनका स्वास्थ्य बेहद खराब हो चुका था। साल 1929 में ही उन्हें यू.पी. कांग्रेस समिति का अध्यक्ष चुना गया और राज्य में सत्याग्रह आन्दोलन के नेतृत्व की जिम्मेदारी दी गई।

इसके बाद 1930 में उन्हें गिरफ्तार कर फिर जेल भेज दिया गया, जिसके बाद उनकी रिहाई गांधी-इरविन पैक्ट के बाद 9 मार्च, 1931 को हुई। कानपुर शहर में सांप्रदायिक दंगों की वजह से 25 मार्च, 1931 को विद्यार्थी को अपने प्राण गंवाने पड़े।  उनकी कलम में कमाल का जादू था।

गणेश शंकर विद्यार्थी  का अखबार ‘प्रताप’ आज भी पत्रकारों और पत्रकारिता के लिए आदर्श माने जाते हैं।  गणेश शंकर विद्यार्थी एक महान क्रांतिकारी, निडर और निष्पक्ष पत्रकार, समाजसेवी और स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ-साथ एक उम्दा पत्रकार थे, जिन्होंने अपनी लेखनी की ताकत से भारत में अंग्रेजी शासन की जड़े हिला कर रख दी।

गणेश शंकर विद्यार्थी ने अपने छोटे से जीवन-काल में उत्पीड़न क्रूर व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाई। अन्याय की खिलाफत में हमेशा आवाज़ बुलंद करना ही उनके जीवन की पहली प्राथमिकता रही, चाहे वह नौकरशाह, जमींदार, पूंजीपति, उच्च जाति, संप्रदाय और धर्म की ही क्यों न हो, वह हमेशा सिर्फ लोगों के लिए हक के लिए जिए।

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