बाबाधाम के फेमस पेड़े को मिलेगी नई पहचान, जल्द मिलेगा जीआई टैग

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बाबाधाम के फेमस पेड़े को मिलेगी नई पहचान, जल्द मिलेगा जीआई टैग

देश के 12 ज्योर्तिलिंग में से एक बाबाधाम झारखंड के देवघर में स्थित है। यहां के पेड़े काफी मशहूर हैं। इस मशहूर पेड़े से जूड़ी एक अच्छी खबर आ रही है। बहुत जल्दी ही इस पेड़े को भौगोलिक संकेतक टैग (GI Tags) मिलने वाला है। इसके लिए जिला प्रशासन ने प्रयास शुरू कर दिया है।

इस मामले में देवधर के के डिप्टी कमिश्नर कमलेश्वर ने कहा है कि, “बाबाधाम पेड़ा की ब्रांडिंग और मार्केटिंग के लिए जिला प्रशासन ने जीआई टैग के लिए आवेदन करने का फैसला किया है। बाबाधाम का पेड़ा प्रसाद के तौर पर देश भर में प्रसिद्ध है और साल भर बाबा बैद्यनाथ मंदिर में दर्शन के लिए आने वाले करोड़ों भक्तों इसे खरीदते हैं और रिश्तेदारों के लिए ले जाते हैं। पेड़ा के लिए जीआई टैग का महत्वाकांक्षी प्रस्ताव काफी पुराना है, लेकिन इस बार जिला प्रशासन ने प्रस्ताव को जल्द से जल्द जमीन पर लागू करने के लिए कदम उठा रही है।”


जल्द ही जिला प्रशासन चेन्नई स्थित जीआई रजिस्ट्री में बाबाधाम पेड़ा के जीआई टैग के लिए अप्लाई करने वाला है। बता दें कि बाबा बैद्यनाथ मंदिर में इस पेड़े को प्रसाद के रूप में नहीं चढ़ाया जाता है, लेकिन वक्त के साथ यह मिठाई एक तरह की परंपरा बन गई है कि मंदिर और शहर में आने वाले अधिकतर श्रद्धालु इस पेड़े को खरीद कर घर ले जाते हैं।

जीआई टैग के सिलसिले में जिला प्रशासन ने बुधवार को बाबाधाम पेड़ा ट्रेडर्स एसोसिएशन (BPTA) के साथ विकास भवन में बैठक की थी। इस बैठक में प्रशासन ने नियमित पेड़ा व्यापारियों की सूची तैयार करने का निर्देश दिया।

देवघर के उप विकास आयुक्त (डीडीसी) शैलेन्द्र कुमार लाल ने कहा है कि, “जीआई टैगिंग से पेड़ा व्यापारियों की आय में वृद्धि होगी और उत्पाद को वैश्विक पहचान मिलेगी। कई पीढ़ियों से पेड़ा व्यापार में शामिल व्यापारियों की वित्तीय स्थिति को कई गुना बढ़ाया जाएगा।”


 

एक और अधिकारी ने कहा कि “जीआई टैग एक विशिष्ट चिन्ह है जिसका उपयोग उत्पाद पर किया जाता है। इसका उपयोग इसके अद्वितीय लक्षण वर्णन और ग्लोबल उत्पादन के आधार पर किया जा सकता है। किसी भी उत्पाद को जीआई टैगिंग मिलते ही वह उस भौगोलिक क्षेत्र से बाहर किसी की नकल करने पर भी जुर्माना लगा सकता है।”

क्या होता है GI Tags?

रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन एक्ट के तहत भारतीय संसद ने 1999 में ‘जियोग्राफिकल इंडिकेशंस ऑफ गुड्स’ लागू किया था। इसके अनुसार भारत के किसी भी क्षेत्र में पाए जाने वाली मशहूर वस्तु का कानूनी अधिकार उस राज्य को दे दिया जाता है। जैसे बनारसी साड़ी, मैसूर सिल्क, कोल्हापुरी चप्पल, दार्जिलिंग चाय आदि।

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