भारत में निशानेबाज़ी को पहचान दिलाने वाले महान खिलाड़ी थे डॉ. कर्णी सिंह

  • Follow Newsd Hindi On  

भारत अन्य खेलों की तरह निशानेबाज़ी में भी नए आयाम हासिल कर रहा है। पिछले कुछ वर्षो में देश में कई शानदार निशानेबाज़ उभर कर आए हैं। लेकिन भारत में निशानेबाज़ी हमेशा से लोकप्रिय खेल नहीं था। निशानेबाज़ी को लोकप्रियता दिलाने का श्रेय बीकानेर के महाराजा और महान निशानेबाज़ महाराजा कर्णी सिंह को जाता है। उन्होंने निशानेबाज़ी को राष्ट्र में एक लोकप्रिय और प्रभावशाली खेल के तौर पर पहचान दिलाई।

बीकानेर के महाराजा कर्णी सिंह ने अपने जीवन काल में बहुत नाम कमाया। कर्णी सिंह को कई खेल और अन्य कईं क्षेत्रों में महारत हासिल थी। कर्णी सिंह ने सेंट स्टीफन, दिल्ली विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन की। निजी पायलेट का लाइसेंस प्राप्त करने वाले कर्णी सिंह एक सच्चे खेल प्रेमी थे। वह निशानेबाज़ी के साथ गोल्फ, टेनिस, क्रिकेट में भी उतने ही निपुण थे। इसके साथ- साथ उन्हें कला और सौंदर्यशास्त्र में भी गहरी रुचि थी साथ ही कर्णी सिंह पेंटिंग और फोटोग्राफी का भी अभ्यास करते थे। लेकिन कर्णी सिंह ने निशानेबाज़ी के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनाई।


उन्होंने निशानेबाज़ी में महारत हासिल की क्योंकि मिट्टी कबूतर ट्रैप और स्कीट प्रतियोगिता में उनकी विशेष निपुणता थी। सिंह, एक कबूतर ट्रैप और स्कीट निशानेबाज के रूप में चमके और ओलंपिक खेलों सहित कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश का प्रतिनिधित्व किया। ऐसे समय में जब कुछ ही लोग एक गंभीर पेशे के रूप में निशानेबाज़ी करते थे, महाराजा सिंह ने 1960-1980 के बीच पांच ओलंपिक में भाग लेके उदाहरण पेश किया। ऐसा कर वह पहले भारतीय बन गए जिन्होंने कई ओलंपिक खेलों में भाग लिया था। वह 17 बार राष्ट्रिय चैंपियन रहे।

एक महान खिलाड़ी के तौर पर अपना नाम बना चुके कर्णी सिंह ने एक राजनेता के रूप में भी अहम् भूमिका निभाई। वह 1952 में संसद सदस्य के रूप में चुने गए। उन्होंने खेल को लोकप्रिय बनाने में मदद की और लोगों ने उनकी अनगिनत खेल उपलब्धियों के लिए उनको श्रद्धा दी। सिंह ने 1960 में रोम के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक, टोक्यो (1964), मैक्सिको (1968), म्यूनिख (1972), मास्को (1980) में भाग लिया, जहाँ उन्होंने 1964 में शूटिंग दल की कप्तानी की और विशेष रूप से 1960 की श्रेणी में आठवें और 1968 में दसवें स्थान पर रहे।

रोम ओलंपिक से वापसी के बाद 1960 में उन्हें निशानेबाज़ी के लिए अर्जुन पुरस्कार पाने वाले पहले भारतीय बने। उन्होंने कईं चैंपियनशिप में रजत पदक और स्वर्ण पदक अपने नाम किये।


महान खिलाड़ी का सम्मान करने के लिए, 1982 में एशियाई खेलों के नई दिल्ली संस्करण के दौरान डॉ. करणी सिंह निशानेबाजी रेंज का निर्माण किया गया। सिंह ने अपनी ओलम्पिक यात्रा को अपनी किताब ’फ्रॉम रोम टू मॉस्को’ में बयान किया।

(आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम पर फ़ॉलो और यूट्यूब पर सब्सक्राइब भी कर सकते हैं.)