Guru Dutt Death Anniversary: जिसने कहा ‘देखी जमाने की यारी, बिछड़े सभी बारी बारी’

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Guru Dutt Death Anniversary: जिसने कहा 'देखी जमाने की यारी, बिछड़े सभी बारी बारी'

वसंत कुमार शिवशंकर पादुकोण यानी गुरु दत्त। वो कलाकार जो जीवन भर सुकून की तलाश में रहा और उसका सुकून उसे उसकी मौत में मिला। ज्यादा शराब और नींद की गोलियों ने गुरु दत्त के जीवन का हमेशा के लिए पैकअप कर दिया। हां वही गुरु दत्त जिन्होंने टेलीफोन ऑपरेटर से एक कालजयी डायरेक्टर और अभिनेता का सफर तय किया था। वही गुरु दत्त जिन्होंने वहीदा रहमान की सादगी को फ़िल्म का सबसे बड़ा नाम बना दिया।

वही गुरु दत्त जिनकी फ़िल्म प्यासा दुनियाँ की शीर्ष 100 फिल्मों में शामिल की गई थी। वही गुरु दत्त जिनकी फ़िल्म ‘कागज के फूल’ देखकर राज कपूर ने कहा था कि ‘ये 20 साल आगे की फ़िल्म है इसकी एहमियत लोग बाद में समझेंगे।’ गुरु दत्त अपनी निजी ज़िंदगी से खुश नहीं थे यही कारण है कि वो शादी शुदा होने के बावजूद वहीदा रहमान के प्यार में पड़ गए थे। गुरु दत्त अपने यारों के साथ मौत के तरीकों पर चर्चा किया करते थे।


उनकी फिल्म ‘प्यासा’ और ‘कागज के फूल’ के टॉप 100 फिल्मों में शामिल होने के बाद उनके बेटे अरुण दत्त ने कहा था कि “लोग उनकी फिल्मों को पसंद करते थे, उनकी फिल्में पैसा भी कमाती थीं पर फिल्म समीक्षकों को वो कभी पसंद नहीं आए। वो तो 80 के दशक में जब यूरोप में उनकी फिल्मों को दिखाया गया और वहां उनको लोकप्रियता मिली, तब जाकर लोगों का नज़रिया बदला।”

गुरु दत्त का जन्म 9 जुलाई 1925 को मंगलौर में हुआ था। गुरु दत्त को बचपन से ही नाचने का बहुत शौक था। इसलिए पंद्रह साल की उम्र में ही वो महान नर्तक उदयशंकर से नृत्य सीखने अल्मोड़ा चले गए। इसके बाद उन्होंने एक मिल में चालीस रुपए माह की टेलीफ़ोन ऑपरेटर की नौकरी की। कुछ दिन बाद गुरु दत्त मुंबई लौट गए।

वहां उन्होंने प्रभात फ़िल्म कम्पनी पूना में तीन साल के अनुबन्ध के तहत फ़िल्म में काम किया। वहीं प्रसिद्ध फ़िल्म निर्माता वी० शान्ताराम ने कला मन्दिर के नाम से अपना स्टूडियो खोला हुआ था। यहां रहते हुए गुरु दत्त की मुलाकात फ़िल्म अभिनेता रहमान और देव आनन्द से हुई जो आगे जाकर उनके बहुत अच्छे मित्र बन गये।


इसी दौरान का एक किस्सा बेहद मशहूर है। एक बार फिल्म के सेट पर धोबी ने ग़लती से गुरु दत्त की कमीज़ देव आनंद के यहाँ और उनकी कमीज़ गुरु दत्त के यहाँ पहुंचा दी। दोनों ने वो कमीज़ पहन भी ली। अगले दिन जब देव आनंद स्टूडियो में घुस रहे थे तो गुरु दत्त ने उनका हाथ मिलाकर स्वागत किया और अपना परिचय देते हुए कहा कि, “मैं निर्देशक बेडेकर का असिस्टेंट हूँ।”

इसी दौरान अचानक उनकी नज़र देव आनंद की कमीज़ पर गई। वो उन्हें कुछ पहचानी हुई सी लगी और उन्होंने छूटते ही पूछा, “ये कमीज़ आपने कहाँ से ख़रीदी?” देव आनंद थोड़ा आश्चर्य से बोले , “ये कमीज़ मेरे धोबी ने किसी की सालगिरह पर पहनने के लिए दी है। लेकिन जनाब आप भी बताएं कि आपने अपनी कमीज़ कहाँ से ख़रीदी?” गुरु दत्त ने शरारती अंदाज़ में जवाब दिया कि ये कमीज़ उन्होंने कहीं से चुराई है। दोनों ने एक दूसरे की कमीज़ पहने हुए ज़ोर का ठहाका लगाया, एक दूसरे से गले मिले। इस दिन के बाद से दोनो हमेशा के लिए एक दूसरे के दोस्त हो गए।

बतौर निर्देशक गुरु दत्त की फिल्म ‘बाजी’ हिट रही थी। इस फिल्म के दौरान उनकी मुलाकात गायिका गीता दत्त से हुई और आगे चल कर उन्होंने गीता दत्त से शादी कर ली।

गुरु दत्त की बहन ललिता ने एक इंटरव्यू में कहा था कि “उस ज़माने में भाभी अपने पिताजी को लेकर हमारे घर आई थी. उसके बाद गीता कई बार हमारे घर आईं पर उनके माता पिता को गीता का गुरु दत्त साब से मिलना पसंद नहीं था इसलिए वो भैया से चुपके-चुपके मिलती थीं और घर पर कहकर आती थीं कि वो लल्ली यानि मुझसे मिलने आ रही हैं।”

गुरु दत्त और गीता के जीवन में धीरे धीरे खटास आने लगी। वजह थी गुरु दत्त और वहीदा रहमान की नजदीकियों का बढ़ना। फिल्म प्यासा के सेट पर दोनों की नजदीकियां काफी बढ़ गईं थीं। इसी वजह से गुरु और गीता अब अलग रहने लगे थे।

गुरु दत्त की फिल्में कविताओं की तरह होती थीं। वो अपनी फिल्मों में लाइटिंग का भी खासा ध्यान रखते थे। उनके जानने वाले कहते थे कि गुरु दत्त अपने कामों में खो जाते थे। उनकी फिल्म कागज के फूल उनकी जीवनी बताई जाती है। इस फिल्म के फ्लॉप होने के बाद गुरु दत्त बेहद उदास रहने लगे थे।

उनकी जिंदगी काफी उठा पटक से भरी थी। 10 अक्टूबर 1964 को शराब में नींद की गोली मिलाकर पीने से गुरु दत्त की मृत्यु हो गई थी। शायद उनकी फिल्म का गाना ‘देखी जमाने की यारी, बिछड़े सभी बारी बारी’ उनके जीवन के हिसाब से बिल्कुल सटीक बैठता है।

गुरु दत्त ने एक बार अपने दोस्तों के बीच कहा था, “नींद की गोलियों को उस तरह लेना चाहिए जैसे माँ अपने बच्चे को गोलियाँ खिलाती है…पीस कर और फिर उसे पानी में घोल कर पी जाना चाहिए।”

गुरु दत्त की मौत सेउस वक्त के मशहूर शायर कैफी आजमी इतने आहत हुए थे कि उन्होंने उनके लिए  एक गजल लिख डाली थी-

“रहने को सदा दहर में आता नहीं कोई

तुम जैसे गए ऐसे भी जाता नहीं कोई

डरता हूँ कहीं ख़ुश्क हो जाए समुंदर

राख अपनी कभी आप बहाता नहीं कोई

इक बार तो ख़ुद मौत भी घबरा गई होगी

यूँ मौत को सीने से लगाता नहीं कोई

माना कि उजालों ने तुम्हें दाग़ दिए थे

बे-रात ढले शम्अ बुझाता नहीं कोई

साक़ी से गिला था तुम्हें मय-ख़ाने से शिकवा

अब ज़हर से भी प्यास बुझाता नहीं कोई

हर सुब्ह हिला देता था ज़ंजीर ज़माना

क्यूँ आज दिवाने को जगाता नहीं कोई

अर्थी तो उठा लेते हैं सब अश्क बहा के

नाज़-ए-दिल-ए-बेताब उठाता नहीं कोई”

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