Guru Gobind Singh Death Anniversary: ‘गुरु गोविंद सिंह जी’ सिखों के दसवें और अंतिम गुरु थे। इनकी मिसाल दुनिया के इतिहास में कम ही मिलती है। उन्होंने मुगलों के जुल्म के सामने कभी भी घुटने नहीं टेके। इन्होने खालसा पंथ की स्थापना की। आज यानी 7 अकुटूबर को उनका शहीदी दिवस है। 1708 में 7 अक्टूबर को वे मुगलों से लड़ाई में शहीद हुए थे।
गोविंद सिंह की वीरता को वाहे गुरु जी का खालसा, वाहे गुरु जी की फतेह और सवा लाख से एक लड़ाऊं, चिड़ियन ते मैं बाज तुड़ाऊं, तबै गुरु गोबिंद सिंह नाम कहाऊं जैसे वाक्य बयां करते हैं। 15वीं सदी में गुरु नानक जी ने सिख पंथ की स्थापना की। गोविंद सिंह जी के पिता गुरु तेग बहादुर भी इस पंथ के गुरु थे।
गुरु गोविंद सिंह ने आनंदपुर साहिब में वैशाखी के अवसर पर 1699 में खालसा पंथ की स्थापना की थी। एक धर्मसभा के दौरान उन्होंने पंच प्यारों को चुना। उनके ही निर्देश पर सिखों के लिए खालसा पंथ के प्रतीक के तौर पर केश, कंघा, कृपाण, कच्छ और कड़ा अनिवार्य हुआ।
‘गुरु गोविंद सिंह जी’ के 10 नेक विचार-
-हमे सबसे महान सुख और स्थायी शांति तभी प्राप्त हो सकती है जब हम अपने भीतर से स्वार्थ को समाप्त कर देते है।
-हमे सबसे महान सुख और स्थायी शांति तभी प्राप्त हो सकती है जब हम अपने भीतर से स्वार्थ को समाप्त कर देते है।
-ईश्वर ने हमें जन्म दिया है ताकि हम संसार में अच्छे काम करें और बुराई को दूर करें।
-निर्बल पर कभी अपनी तलवार चलाने के लिए उतावले मत होईये, वरना विधाता आप का ही खून बहायेगा।
-अगर आप केवल भविष्य के बारे में सोचते रहेंगे तो वर्तमान भी खो देंगे।
-मेरी बात सुनो जो लोग दुसरे से प्रेम करते है वही लोग प्रभु को महसूस कर सकते है।
-मैं उन लोगों को पसंद करता हूँ जो सच्चाई के मार्ग पर चलते हैं।
-भगवान स्वय उनके मार्ग बनाते है जो लोग अच्छाई का कर्म करते है।
-अच्छे कर्मों से ही आप ईश्वर को पा सकते हैं अच्छे कर्म करने वालों की ही ईश्वर मदद करता है।
-भगवान के नाम के अलावा कोई मित्र नहीं है, भगवान के विनम्र सेवक इसी का चिंतन करते और इसी को देखते हैं।