HBD Gulzar: “दर्द हल्का है साँस भारी है, जिए जाने की रस्म जारी है” गुलज़ार साहब के इन चुनिंदा शेरों को पढ़कर दिल बाग-बाग हो जाएगा

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HBD Gulzar: "दर्द हल्का है साँस भारी है, जिए जाने की रस्म जारी है" गुलज़ार साहब के इन चुनिंदा शेरों को पढ़कर दिल बाग-बाग हो जाएगा

Gulzar Birthday Special: बॉलीवुड के सबसे मशहूर गीतकार और निर्देशक गुलज़ार (Gulzar) यानी सम्पूर्ण सिंह कालरा (Sampooran Singh Kalra) का आज जन्मदिन है। मखमली एहसासों को रेशमी शब्दों के साथ गीतों में पिरोने वाले गुलजार साहब को न केवल उनके लिखे गानों के लिए बल्कि उनकी शायरी के लिए भी खूब जाना जाता है। गुलजार गीतकार से पहले एक शायर हैं। उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था कि शायरी उनका पहला प्यार है।

18 अगस्त, 1934 में पाकिस्तान के दीना में जन्मे गुलजार साहब (Gulzar Sahab) ने विभाजन की त्रासदी को बड़े करीब से देखा और उनके गीतों-नज़्मों में आज भी इसका दर्द साफ़ झलकता है। गुलज़ार ने अपने करियर की शुरुआत एस.डी बर्मन के साथ एक लीरिक्स राइटर के तौर पर की थी। उन्होंने जब अपने करियर का पहला फ़िल्मी गीत ‘मोरा गोरा अंग लई ले’ लिखा तब वो फ़िल्मों के लिए गाने लिखने को लेकर ज़्यादा उत्सुक नहीं थे। हालांकि इसके बावजूद उन्हें गाने लिखने का मौका मिलता रहा और वो गाने लिखते चले गए।


अपने फ़िल्मी करियर में गुलजार साहब (Gulzar Sahab) को कई बार अंतरराष्ट्रीय व राष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। इनमें ऑस्कर, ग्रैमी, पद्म भूषण और कई फिल्मफेयर अवॉर्ड्स भी शामिल हैं। गुलजार (Gulzar) को 2002 में साहित्य अकादमी, 2004 में पद्म भूषण और 2008 में आई ‘स्लमडॉग मिलेनियर’ के गाने ‘जय हो’ के लिए ग्रैमी अवॉर्ड मिला। गुलज़ार साहब गानों के अलावा, आशीर्वाद (1968), खामोशी (1969), सफर (1970) , घरोंदा , खट्टा-मीठा (1977) और मासूम (1982) जैसी फ़िल्मों की पटकथा भी लिख चुके हैं। इसके अलावा आंधी, अंगूर, मेरे अपने, हू तू तू, माचिस, मीरा और नमकीन जैसे कई फिल्मों का निर्देशन भी कर चुके हैं।

गुलज़ार साहब (Gulzar) ने हर रंग के गीत लिखे हैं। उनके गीतों का कलेवर और फ्लेवर सबसे जुदा और सबसे निराला है। उनकी कई शायरी ऐसी हैं, जिन्हें पढ़कर या सुनकर किसी का भी दिल बाग-बाग हो जाएगा।। तो क्यों ना आज गुलजार साहब के 85 वें जन्मदिन के मौके पर उनकी शानदार शायरी से अपना दिन बनाया जाए।

शाम से आंख में नमी सी है
आज फिर आप की कमी सी है


दर्द हल्का है साँस भारी है
जिए जाने की रस्म जारी है

ज़िंदगी यूं हुई बसर तन्हा
क़ाफ़िला साथ और सफ़र तन्हा

वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर
आदत इस की भी आदमी सी है

कभी तो चौंक के देखे कोई हमारी तरफ़
किसी की आंख में हम को भी इंतिज़ार दिखे

हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते
वक़्त की शाख़ से लम्हे नहीं तोड़ा करते

जिस की आंखों में कटी थीं सदियां
उस ने सदियों की जुदाई दी है

कोई अटका हुआ है पल शायद
वक़्त में पड़ गया है बल शायद

तुम्हारे ख़्वाब से हर शब लिपट के सोते हैं
सज़ाएं भेज दो हम ने ख़ताएँ भेजी हैं

ख़ुशबू जैसे लोग मिले अफ़्साने में
एक पुराना ख़त खोला अनजाने में

भरे हैं रात के रेज़े कुछ ऐसे आंखों में
उजाला हो तो हम आँखें झपकते रहते हैं

राख को भी कुरेद कर देखो
अभी जलता हो कोई पल शायद


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