जॉर्ज फर्नांडिस का निधन: इंदिरा गांधी की नाक में दम कर दने वाला मजदूर नेता

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जॉर्ज फर्नांडिस का निधन: इंदिरा गांधी की नाक में दम कर दने वाला मजदूर नेता hero of emergency geroge fernandes political life indira gandhi Jaya jaitley Leila Kabir

नई दिल्ली। भारतीय राजनीति के कद्दावर नेताओं में से एक समाजवादी नेता और देश के पूर्व रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस ने दुनिया को अलविदा कह दिया। जॉर्ज फर्नांडिस ने मंगलवार 29 जनवरी को सुबह 7 बजे दिल्ली में अंतिम सांस ली। पिछले कुछ सालों से अल्जाइमर से पीड़ित होने के कारण जॉर्ज सार्वजानिक जीवन से दूर हो गए थे। हाल ही में स्वाइन फ्लू के शिकार हुए और चल बसे। अपने राजनीतिक करियर में 9 बार लोकसभा सांसद रहे जॉर्ज फर्नांडिस समता पार्टी के संस्थापक थे और केंद्र सरकार में रक्षा, रेल और उद्योग जैसे अहम मंत्रालयों की बागडोर संभाली।

पादरी बनने की शिक्षा लेने गए थे

3 जून, 1930 को मैंगलोर के एक ईसाई परिवार में जन्मे जॉर्ज देश की सियासत में अदबद कर घुसे और अपनी मुकम्मल पहचान बनाई। अपने माँ-बाप के 6 संतानों में से सबसे बड़े जॉर्ज को 16 साल की उम्र में क्रिश्चियन मिशनरी में पादरी बनने के लिए भेजा गया। लेकिन आंदोलनकारी स्वभाव वाले जॉर्ज को धर्म की बेड़ियाँ बाँध न सकीं और जॉर्ज का मिशनरी से मोहभंग हो गया। देश आजाद हो चुका था और जॉर्ज भी। इसके बाद 1949 में वे रोजगार की तलाश में मुंबई चले गए। वहां दर-दर की ठोकरें खाने और सड़कों पर कई रात गुजारने के बाद एक प्रूफरीडर की नौकरी मिली। लेकिन, नियति ने जॉर्ज के लिए कुछ और ही रच रखा था।


जायंट किलर जॉर्ज फर्नांडिस

विद्रोही तेवर वाले जॉर्ज फर्नांडिस मुंबई में समाजवादी ट्रेड यूनियन आंदोलन का हिस्सा बने और मजदूर नेता के तौर पर कई बड़े आंदोलन कराए। सोशलिस्ट पार्टी और ट्रेड यूनियन में सक्रियता के चलते जॉर्ज का कद बढ़ता चला गया और 1950 में उन्हें टैक्सी ड्राइवर यूनियन का बड़ा नेता बना दिया। जॉर्ज की लोकप्रियता इतनी बढ़ गयी थी कि साल 1967 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के भारी-भरकम नेता एसके पाटिल को दक्षिण मुंबई सीट से शिकस्त दे दी। इस जीत के बाद राष्ट्रीय राजनीति में जॉर्ज जायंट किलर के तौर पर उभरे। जॉर्ज प्रखर समाजवादी नेता डॉ राममनोहर लोहिया से काफी प्रभावित थे।

देशव्यापी रेल हड़ताल आंदोलन के शिल्पकार

जॉर्ज के क्रांतिकारी जीवन में एक महत्वपूर्ण दौर तब आया जब वे 1973 ऑल इंडिया रेलवे फेडरेशन के अध्यक्ष चुने गए। इस दौरान रेलवे कामगारों की मांगों का मुद्दा बनाकर उन्होंने 1974 में देशव्यापी रेल आंदोलन का आह्वान किया, जिसके चलते रेल का संचालन कई दिनों तक ठप रहा। सरकार की तरफ से हड़ताल के प्रति सख्त रुख अपनाया गया। कई जगह रेलवे ट्रेक खुलवाने के लिए सेना को भेजा गया। एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट के मुताबिक हड़ताल तोड़ने के लिए 30,000 से ज्यादा मजदूर नेताओं को जेल में डाल दिया गया। इस बृहत् हड़ताल की वजह से जॉर्ज देश की राजनीति में फायरब्रांड मजदूर नेता के तौर पर स्थापित हो गए। बदन पर खादी का साधारण कुर्ता-पायजामा, आँखों पर मोटे फ्रेम का चश्मा और पैरों में हवाई चप्पल जॉर्ज की पहचान बन गए।

इमरजेंसी की वो तस्वीर जो कल्ट बन गई

जॉर्ज ने 1975 में इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल लगाने का पुरजोर विरोध किया। वे जगह और वेश बदल-बदलकर आपातकाल के खिलाफ मुहिम चला रहे थे। कहा जाता है कि आपातकाल की घोषणा के बाद जॉर्ज फर्नांडिस ने हिंसक प्रतिरोध का रास्ता अख्तियार करने की योजना बनायी। जॉर्ज और उनके साथियों ने तय किया कि इंदिरा गांधी की सभा के दौरान पास ही की सरकारी इमारत के टॉयलेट में धमाका किया जाए और अफरातफरी का माहौल बनाया जाए। हालांकि, उनका मकसद इस धमाके में किसी भी व्यक्ति की जान लेना का नहीं था।


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तमाम सरकारी एजेंसियां जॉर्ज व उनके साथियों के पीछे हाथ धोकर पड़ गईं और 1976 में कोलकाता से गिरफ्तार कर लिए गए। देश में हिंसा को बढ़ावा देने के आरोप में जॉर्ज और उनके साथियों पर सीबीआई ने मुकदमा दर्ज किया। जॉर्ज कलकत्ता से दिल्ली लाये गए और भारी सुरक्षा के बीच तीस हजारी कोर्ट में पेश किये गए। इस दौरान हथकड़ी लगे हाथों को उठाए हुए जॉर्ज फर्नांडिस की तस्वीर काफी मशहूर हुई और आपातकाल के खिलाफ प्रतिरोध के लिए कल्ट बन गयी। इस घटना को अंजाम देने के लिए विस्फोटक गुजरात के बड़ौदा (वड़ोदरा) से लाए गए थे, इसलिए इस कांड को बड़ौदा डायनामाइट केस के नाम से जाना गया।

बिहार से रहा खास नाता

1977 में इंदिरा गांधी द्वारा चुनावों की घोषणा के साथ आपातकाल समाप्त हुआ। जॉर्ज फर्नांडिस ने जेल में रहते हुए बिहार के मुजफ्फरपुर से चुनाव लड़ा और रिकॉर्ड मत से जीते। मोरारजी देसाई के नेतृत्व में बनी जनता सरकार में जार्ज फर्नांडिस को उद्योग मंत्री के पद से नवाजा गया। उद्योग मंत्री के तौर पर जॉर्ज ने फेरा कानून (FERA – Foreign Exchange Regulation Act) के तहत कई विदेशी कंपनियों पर कार्रवाई की, जिसके चलते दो बड़ी विदेशी कंपनिया कोका कोला और आईबीएम ने भारत में कारोबार बंद कर दिया।

कालांतर में जनता पार्टी में विघटन के बाद जॉर्ज फर्नांडिस ने समता पार्टी का गठन किया और भारतीय जनता पार्टी का समर्थन किया। अपने राजनीतिक जीवन में जॉर्ज ने उद्योग, रक्षा और रेल मंत्रालय का कार्यभार संभाला। रेल मंत्री के तौर पर कोंकण रेलवे के विकास और विस्तार में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही।

पोखरण परमाणु परीक्षण

वहीं, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में रक्षा मंत्री के तौर पर पोखरण परमाणु परीक्षण और ऑपरेशन पराक्रम में उनका अहम योगदान रहा। बतौर रक्षा मंत्री उन्होंने सियाचीन के 18 दौरे किये। हालांकि, रक्षा मंत्री के तौर पर जॉर्ज का कार्यकाल विवादों के घेरे में भी आया जब ताबूत घोटाला और तहलका खुलासे में उनका नाम घसीटा गया। लेकिन बाद में अदालत ने उन्हें क्लीन चिट दे दी।

साल 2004 के लोकसभा चुनाव में जब एनडीए गठबंधन की हार हुई, लेकिन जॉर्ज फर्नांडिस ने बिहार के नालंदा सीट से जीत दर्ज की। अगला चुनाव आते- आते स्थितियां बदलने लगी थी। जॉर्ज अब धीरे-धीरे बुजुर्ग हो चले थे। ऐसे में 2009 के लोकसभा चुनाव में जेडीयू ने उन्हें टिकट देने के इनकार कर दिया। लेकिन जॉर्ज नहीं माने और निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर मुजफ्फरनगर से पर्चा भर दिया। इस चुनाव में जॉर्ज की बुरी हार हुई। इसके बाद उन्होंने राज्यसभा के चुनाव में पर्चा भरा और निर्विरोध राज्यसभा के सदस्य चुने गए। कहा जाता है कि नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट करने में जॉर्ज की काफी बड़ी भूमिका थी, इसलिए जेडीयू ने राज्यसभा में उनके खिलाफ कोई उम्मीदवार नहीं खड़ा किया और वे संसद पहुँच गए।

समय का चक्र कुछ ही आगे बढ़ा था कि जॉर्ज अलजाइमर नाम की बीमारी से पीड़ित हो गए और उनकी याददाश्त धीरे-धीरे क्षीण होने लगी। बीमारियों से जूझते, बिस्तर पर पड़े जॉर्ज फर्नांडिस राजनीतिक परिदृश्य से ओझल होते चले गए। लगभग नौ साल तक शून्य को तकते-तकते जॉर्ज आखिरकार 29 जनवरी 2019 को मृत्यु की आगोश में समा गए।


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