Hindi Diwas 2020: हिंदी भाषा का प्रचार प्रसार हो सके इसलिए देश में हर वर्ष 14 सितंबर के दिन हिंदी दिवस को धूम धाम से मनाया जाता है। हिंदी देश के ज्यादातर हिस्सों में बोला जाता है। यही कारण है कि देश में अन्य भाषा होने के बावजूद भी हिंदी भाषा में फिल्में ज्यादा बनती हैं और लोग पसन्द भी करते हैं।
बॉलीवुड (Bollywood) फिल्में हमेशा से हिंदी भाषा के प्रचार के लिए एक बेहतरीन माध्यम रही हैं। आपको बताने जा रहे हैं बॉलीवुड में 90 (90s Bollywood) के दशक में बनी कुछ फिल्मों के ऐसे डायलॉग्स जो कहीं न कहीं किसी महफ़िल में लोगों की ज़ुबान पर आ ही जाते हैं।
अग्निपथ (1990)
डायलॉग: विजय दीनानाथ चौहान पूरा नाम। बाप का नाम दीनानाथ चौहान। मां का नाम सुहासिनी चौहान। गांव मांडवा। उमर 36 बरस नौ महीने तीन दिन और ये सोलहवां घंटा चल रहा है।
सौदागर (1991)
डायलॉग: जानी, हम तुम्हें मारेंगे और जरूर मारेंगे। लेकिन उस वक्त बंदूक भी हमारी होगी। गोली भी हमारी होगी और वक्त भी हमारा होगा।
तिरंगा (1993)
डायलॉग: दिल्ली सिर्फ देखती रहती है, इमारतें ढह जाती है, लोग मारे जाते हैं दिल्ली खामोश देखती रहती है।
दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे (1996)
डायलॉग: बड़े-बड़े शहरों में ऐसी छोटी-छोटी बातें तो होती रहती हैं सैन्योरीटा।
यशवंत (1997)
डायलॉग: साला एक मच्छर, बस एक मच्छर आदमी को हिजड़ा बना देता है। एक मच्छर काटा कि खेल खत्म।
दिल तो पागल है (1997)
डायलॉग: मैंने दोस्ती को प्यार समझने की भूल की तुम प्यार को दोस्ती समझने की भूल कर रही हो।
मृत्युदंड (1997)
डायलॉग: पति हैं, पति ही बने रहिए। परमेश्वर बनने की कोशिश मत कीजिए।
दामिनी (1993)
डायलॉग: चड्ढा समझाओ इसे, ऐसे खिलौने बाजार में बहुत मिलते हैं। लेकिन इसे खेलने के लिए जो जिगर चाहिए ना, वो दुनिया के किसी बाजार में नहीं मिलता। मर्द उसे लेकर पैदा होता है। और जब ये ढाई किलो का हाथ किसी पर पड़ता है तो आदमी उठता नहीं उठ जाता है।
करण- अर्जुन (1995)
डायलॉग: मेरे करण अर्जुन आएंगे। धरती का सीना फाड़कर आएंगे। आकाश चीर कर आएंगे। मेरे करण अर्जुन आएंगे।
रिहाई (1997)
डायलॉग: औरतों से सीता बनने की आशा करने वाले पुरुष क्या खुद राम की तरह काम करते हैं।