Muharram 2020: देशभर में मोहर्रम आज, जानें इसका इतिहास और महत्व

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History Story and Significance of Muharram

Muharram 2020: आज देशभर में मोहर्रम मनाया जा रहा है। मुसलमानों के लिए मुहर्रम का महीना बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। इस्लामिक कैलेंडर में मुहर्रम पहला महीना होता है। इस  महीने को मुस्लिम समुदाय में ग़म के महीने के रूप में मनाया जाता है। ये माह शिया मुसलमानों के लिए काफी अधिक महत्वपूर्ण है।

साल 2020 में 21 अगस्त से मुहर्रम (Muharram)की शुरुआत हो चुकी है। हिजरी संवत के पहले महीने मुहर्रम की दसवीं तारीख को रोज-ए-अशुरा कहा जाता है। इस बार अशुरा आज है। आपको बता दें कि इस दिन को पैगम्बर मोहम्मद के नाती इमाम हुसैन की शहादत के याद में मनाया जाता है।


आइए जानते हैं विस्तार से –पैगम्बर-ए-इस्‍लाम हज़रत मोहम्‍मद के नाती हज़रत इमाम हुसैन समेत कर्बला के 72 शहीदों की शहादत की याद में मुस्लिम समाज खासकर शिया समुदाय मातम मनाता है और जुलूस निकालता है। मोहर्रम माह के नौवें या दसवें दिन को रोजा रखा जाता है। मोहर्रम के जुलूस के साथ ताजिए दफन किए जाते हैं।

माना जाता है शोक का दिन:-

इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार बगदाद से करीब 100 किलोमीटर दूर एक कस्बा है, जिसका नाम कर्बला है। इस कस्बे में खलीफा यजीद बिन मुआविया के लोगों ने मोहम्मद साहिब के नाती हजरत इमाम हुसैन के अलावा कई दूसरे मासूमों को शहीद कर दिया था।  यही कारण है कि इस पूरे महीने भर लोग मातम मनाते हैं और किसी भी तरह के जश्न से दूर रहते हैं।


क्‍यों मनाया जाता है मुहर्रम?

इस्लाम में जो मान्यता हैं उनके अनुसार इराक में यजीद नाम का जालिम बादशाह इंसानियत का दुश्मन था, यजीज खुद को खलीफा मानता था। हालांकि उसको अल्लाह पर भरोसा नहीं था औऱ वो चाहत रखता था कि हजरत इमाम हुसैन उसके खेमें में शामि हो जाए। लेकिन हुसैन को ये मंजूर नहीं था।

इसलिए उन्होंने यजीद के खिाफ युद्ध छेड़ दिया। पैगंबर-ए-इस्लाम हजरत मोहम्मद के नवासे हजरत इमाम हुसैन को कर्बला में परिवार औऱ दोस्तों के साथ शहीद कर दिया गया था। जिस महीने हुसैन औऱ उनके परिवार को शहीद किया गाय था वह मुहर्रम का ही महीना था। जिस दिन मुहर्रम का चांद नजर आ जाता है, तब से ही लोग गमगीन हो जाते हैं।

कैसे मनाया जाता है मुहर्रम:-

मुहर्रम मातम और आंसू बहाने का महीना है। शिया समुदाय के लोग 10 मुहर्रम के दिन काले कपड़े पहनकर हुसैन और उनके परिवार की शहादत को याद करते हैं। हुसैन की शहादत को याद करते हुए सड़कों पर जुलूस निकाला जाता है और मातम मनाया जाता है।

मुहर्रम (Muharram)की नौ और 10 तारीख को मुसलमान रोजे रखते हैं और मस्जिदों-घरों में इबादत की जाती है। वहीं सुन्‍नी समुदाय के लोग मुहर्रम के महीने में 10 दिन तक रोजे रखते हैं। कहा जाता है कि मुहर्रम के एक रोजे का सबाब 30 रोजों के बराबर मिलता है।

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