बजट 2019: पूर्ण बजट और अंतरिम बजट में क्या है अंतर? जानें इसके बारे में…

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हर साल वित्त मंत्री द्वारा संसद में बजट पेश किया जाता है। वित्त मंत्री अरुण जेटली बीमार हैं, इलाज के सिलसिले में यूएस में हैं, तो उनकी अनुपस्थिति में पीयूष गोयल मोदी सरकार का छठा बजट पेश करेंगे। ये अंतरिम बजट होगा।  परंपरा के अनुसार लोकसभा चुनाव वाले साल में केंद्र सरकार पूरे वित्त वर्ष की बजाय कुछ महीनों तक के लिए ही बजट पेश करती है और चुनाव होने के बाद नई गठित सरकार पूर्ण बजट पेश करती है। आइए जानते हैं कि अंतरिम बजट क्या है और यह पूर्ण बजट से कैसे अलग है।

क्या है अंतरिम बजट

जब केंद्र सरकार के पास पूर्ण बजट पेश करने के लिए समय नहीं होता है तो वह अंतरिम बजट पेश करती है। लोकसभा चुनाव के वक्त सरकार के पास वक्त तो होता है लेकिन परंपरा के मुताबिक चुनाव पूरा होने तक के समय के लिए बजट पेश करती है। यह पूरे साल की बजाय कुछ महीनों तक के लिए ही होता है। हालांकि, अंतरिम बजट ही पेश करने की बाध्यता नहीं होती है लेकिन परंपरा के मुताबिक इसे अगली सरकार पर छोड़ दिया जाता है। नई सरकार बनने के बाद वह आम बजट पेश करती है।


अंतरिम बजट और आम बजट में अंतर

दोनों ही बजट में सरकारी खर्चों के लिए संसद से मंजूरी ली जाती है लेकिन अंतरिम बजट आम बजट से अलग हो जाता है। अंतरिम बजट में सामान्यतः सरकार कोई नीतिगत फैसला नहीं करती। हालांकि, इसकी कोई संवैधानिक बाध्यता नहीं होती है। चुनाव के बाद गठित सरकार ही अपनी नीतियों के मुताबिक फैसले लेती है और योजनाओं का एलान करती है।

अंतरिम बजट और वोट ऑन अकाउंट में अंतर

जब केंद्र सरकार पूरे साल की बजाय कुछ ही महीनों के लिए संसद से जरूरी खर्च के लिए अनुमति मांगती है तो वह अंतरिम बजट की बजाय वोट ऑन अकाउंट पेश कर सकती है। अंतरिम बजट और वोट ऑन अकाउंट(लेखानुदान) दोनों ही कुछ ही महीनों के लिए होते हैं ,लेकिन दोनों के पेश करने के तरीके में अंतर होता है। अंतरिम बजट में केंद्र सरकार खर्च के अलावा राजस्व का भी ब्यौरा देती है जबकि लेखानुदान में सिर्फ खर्च के लिए संसद से मंजूरी मांगती है।


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