भारतीय सेना के पहले कमांडर-इन-चीफ जिन्हें पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान करते थे सलाम

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भारतीय सेना के पहले कमांडर-इन-चीफ केएम करिअप्पा जिन्हें पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान करते थे सलाम indian army day field marshal km cariappa pakistani president ayub khan | Newsd - Hindi news

नई दिल्ली। भारत के इतिहास में 15 अगस्त और 26 जनवरी के अलावा 15 जनवरी की तारीख को भी बेहद अहम माना जाता है। ये वो दिन है जब भारतीय सेना पूरी तरह आजाद हुई और सेना की कमान पहली बार एक भारतीय को सौंपी गई। 70 साल पहले आज ही के दिन कोडंडेरा मडप्पा करिअप्पा (केएम करिअप्पा) को भारत का पहला सेना प्रमुख बनाया गया था। 28 जनवरी 1899 को कर्नाटक के कुर्ग में जन्मे करिअप्पा फील्ड मार्शल के पद पर पहुंचने वाले पहले भारतीय हैं। फील्ड मार्शल सैम मानेकशा दूसरे ऐसे अधिकारी थे, जिन्हें फील्ड मार्शल का रैंक दिया गया था। करिअप्पा ने 1947 में पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में अदम्य साहस और दमदार नेतृत्व का परिचय दिया था। पाकिस्तान के युद्ध के समय उन्हें पश्चिमी कमान का जी-ओ-सी-इन-सी बनाया गया था। उनके नेतृत्व में भारत ने जोजीला, द्रास और करगिल पर पाकिस्तानी सेना को हराया था।

प्री-कमीशन के लिए चुने जाने वाले पहले भारतीय

महज 20 वर्ष की आयु में ब्रिटिश इंडियन आर्मी में नौकरी शुरू करने वाले फील्ड मार्शल करिअप्पा ने अपनी सर्विस के दौरान कई कारनामे किए। उन्होंने सेंकेंड लेफ्टीनेंट पद पर सेना में नौकरी की शुरूआत की थी। वह राजपूत रेजीमेंट में थे। प्रथम विश्व युद्ध के बाद भारतीय ने ब्रिटिश सरकार से सेना में स्थाई कमीशन देने की मांग की, जिसे मान लिया गया। इसके बाद कड़ी जांच और प्रशिक्षण के दम पर करिअप्पा को उस पहले दल में शामिल किया गया, जिसे कठोर प्री-कमीशन प्रशिक्षण दिया जाना था। वर्ष 1919 में वह KCIO (King’s Commissioned Indian Officers) के पहले दल में सम्मिलित किये गए। इस दल को इंदौर के डैली कॉलेज में कड़ा प्रशिक्षण दिया गया। इसके बाद 1922 में उन्हें स्थाई कमीशन देकर सेकेंड लेफ्टिनेंट बनाया गया। उन्होंने इराक में भी सेवाएं दी। 1941-42 में वह इराक, सीरिया और ईरान में तैनात रहे। 1943-44 में वह म्यांमार में पोस्ट हुए।


ब्रिटिश सम्मान दिया गया

इससे ठीक पहले 1942 में किसी यूनिट का कमांड पाने वाले पह पहले भारतीय सैन्य अधिकारी बने थे। उन्होंने म्यामांर से जापानी सेना को निकालने में अहम योगदान दिया। इसके लिए अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी एस ट्रूमैन ने उन्हें ‘ऑफिसर ऑफ दि ऑर्डर ऑफ दि ब्रिटिश एम्पायर’ सम्मान से नवाजा था। 1946 में वह ब्रिगेडियर बने। अगले साल उन्हें इम्पीरियल डिफेंस कॉलेज यूनाइटेड किंगडम में एक प्रशिक्षिण के लिए चुना गया। इस कोर्स के लिए चुने वाले भी वह अकेले भारतीय थे।

भारत-पाक सेना का बंटवारा

देश की आजादी के बाद करिअप्पा को मेजर जनरल रैंक के साथ डिप्टी चीफ ऑफ दि जनरल स्टॉफ बनाया गया। इसके बाद उन्हें लेफ्टिनेंट जनरल बनाकर ईस्टर्म आर्मी का कमांडर बना दिया गया। 1947 में भारत-पाक युद्द के समय वह पश्चिमी कमान संभाल रहे थे। इसके बाद ही 15 जनवरी 1949 को उन्हें आजाद भारत का पहला चीफ ऑफ आर्मी स्टॉफ नियुक्त किया गया था। भारत-पाक आजादी के वक्त उन्होंने दोनों देशों की सेनाओं के बंटवारे की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, जिसे उन्होंने पूरी ईमानदारी से निभाया था।

पाक राष्ट्रपति के बॉस और उससे जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा

फील्ड मार्शल केएम करिअप्पा बंटवारे से पहले पाकिस्तान के पूर्व सेना प्रमुख और राष्ट्रपति जनरल अयूब खान के भी सीनियर (बॉस) रह चुके थे। उन्हीं से जुड़ा करिअप्पा की जिंदगी का एक ऐसा प्रसंग है जिसे जानकर आपका सीना गर्व से चौड़ा हो जाएगा। बात वर्ष 1965 के भारत-पाक युद्ध की है। उस वक्त करिअप्पा रिटायर होकर कर्नाटक में रह रहे थे। करिअप्पा का बेटा केसी नंदा करिअप्पा उस वक्त भारतीय वायुसेना में फ्लाइट लेफ्टिनेंट था। युद्ध के दौरान उसका विमान पाकिस्तान सीमा में प्रवेश कर गया, जिसे पाक सैनिकों ने गिरा दिया। करिअप्पा के बेटे ने विमान से कूदकर जान तो बचा ली, लेकिन वो पाक सैनिकों के हत्थे चढ़ गए।


1965 युद्ध के दौरान पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान थे, जो कभी करिअप्पा के जूनियर थे और भारतीय सेना में नौकरी कर चुके थे। उन्हें जैसे ही करिअप्पा के बेटे नंदा के पकड़े जाने का पता चला उन्होंने तुरंत उन्हें फोन किया और बताया कि वो उनके बेटे को रिहा कर रहे हैं। इस पर करिअप्पा ने बेटे का मोह त्याग कर कहा कि वो सिर्फ मेरा बेटा नहीं, भारत मां का लाल है। उसे रिहा करना तो दूर कोई सुविधा भी मत देना। उसके साथ आम युद्धबंदियों जैसा बर्ताव किया जाए। करिअप्पा ने अयूब खान से कहा कि या तो आप सभी युद्धबंदियों को रिहा करें या फिर किसी को नहीं। हालांकि युद्ध खत्म होने के बाद सभी युद्धबंदियों को रिहा कर दिया गया।


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